हिचकिचाहट को खत्म करने और आम लोगों के बीच खुद का स्टार्टअप लाने के लिए, पांच लड़कियों ने बीड़ा उठाया है कि वे कुछ अलग कर दिखाएंगी।
दिल्ली की इन 5 दोस्तों ने ओडीएस (ODS) नाम का एक स्टॉल शुरू किया है। सीमा, प्राची सिंह और शिवानी, स्टॉल को संभालती हैं और बाकी दो पीछे रहकर सोशल मीडिया और दुकान से जुड़े दूसरे काम देखती हैं।
सीमा अपने इस स्टार्टअप के बारे में बताते हुए कहती हैं, ”हमने इसे पिछले साल 23 सितंबर को दिल्ली के इंद्रलोक में शुरू किया था। हम पांच पार्टनर्स हैं, जिसमें से तीन लोग स्टॉल लगाते हैं। 5 महीने हमने अपना स्टॉल वहां लगाया, लेकिन फिर हमें वह जगह छोड़नी पड़ी, क्योंकि वहां शराब की दुकान थी और लड़कियां होने के नाते हमें दिक्कत आ रही थी और फिर हमने दिल्ली यूनिवर्सिटी के नॉर्थ कैंपस में स्टॉल शुरू किया।”
दिल्ली यूनिवर्सिटी, नॉर्थ कैंपस में ओल्ड लॉ फैकल्टी के पास ये सहेलियां सुबह 10 बजे से शाम को 7 बजे तक अपना स्टॉल लगाती हैं और अब आगे उनका प्लान, अलग-अलग तरह की चाय बनाना शुरू करना है।
प्राची अपने इस स्टॉल को शुरू करने के बारे में कहती हैं, ”हम पांचों कॉलेज के दोस्त हैं। हमने बहुत पहले से ही सोचा हुआ था कि हमें कुछ अच्छा और अलग करना है। लेकिन आर्थिक तौर पर हमारी कंडीशन अच्छी नहीं थी, तो पहले हमने जॉब की। लेकिन जॉब का अनुभव अच्छा नहीं था, तो हमने सोचा क्यों ना अपना कुछ शुरू किया जाए।”
हालांकि उन्हें अपना यह काम शुरू करने में काफी दिक्कतें भी आईं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। प्राची ने बताया, “लोग हमें ताने मारते थे कि क्या तुम्हारे माँ-बाप नहीं हैं, जो पटरी पर ठेला लगाने की नौबत आ गई। यह भी कहा जाता था कि ग्रेजुएशन करके सड़क पर मैगी बेच रही हैं। घर से भी हमें कुछ खास सपोर्ट नहीं मिला।”
घर से 6 महीने की मिली मोहलत
इन पांचों दोस्तों ने पहले तो घर पर किसी को बताए बिना ही मैगी स्टॉल शुरू कर दिया था, लेकिन बाद में जब घर पर पता चला, तो उन्हें सिर्फ छह महीने की मोहलत दी गई कि अगर 6 महीनों में सफल होते हो, तो यह काम करो वरना छोड़कर घर आ जाओ। स्टॉल चलाने वाली तीन दिल्ली लॉ फैकल्टी के पास किराए के मकान में घर से दूर रहती हैं और दो परिवार के साथ ही रहती हैं, क्योंकि वे स्टॉल पर काम नहीं करतीं। वे सोशल मीडिया और दुकान से जुड़े दूसरे काम देखती हैं।
उन्होंने कहा, “हमें कुल्हड़ वाइब लेकर आना था। वैसे भी देश में कई हैंडी क्राफ्ट खत्म होने की कगार पर हैं, ऐसे में हम कुल्हड़ का इस्तेमाल करते हैं, तो इससे पर्यावरण को तो फायदा होता ही है, साथ ही इसे बनाने वालों को रोज़गार भी मिल जाता है।”
सीमा आगे कहती हैं, ”हमारे पूर्वज मिट्टी के बर्तनों में खाया करते थे और ह्रष्ट-पुष्ट थे, तो हम चाहते हैं कि हमारे कस्टमर्स भी हेल्दी रहें। लेकिन फिर आप कहेंगे कि मैगी क्यों लेकर आए, यह तो नुकासनदायक होता है। लेकिन हमारी मैगी नुकसान नहीं करती, क्योंकि इसे हम अपने एक्सपेरीमेंटेड मसालों के साथ बैलेंस कर देते हैं। हम भारतीय हर चीज़ को अपने हिसाब से ढाल लेते हैं, तो बस हमने मैगी को अपने हिसाब से स्वादिष्ट और हेल्दी बना लिया है।”