5 साल की AAP – कितना भरोसा और कितनी निराशा !

भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन के गर्भ से निकली आम आदमी पार्टी ने 26 नवंबर, 2017 को अपने पांच वर्ष पूरे कर लिए. स्थापना दिवस के पांचवें साल का उत्सव मनाने के लिए रामलीला मैदान में विशाल जनसभा का आयोजन किया गया. देश भर के कार्यकर्ताओं के जमावड़े के बीच नेताओं के संबोधन हुए. एक तरफ जहां भाषणों में सब कुछ अच्छा और बेहतर दिखाने की कोशिश होती रही वहीं मंच पर उपस्थित नेताओं के रिश्तों में जमी बर्फ की ठंडक और तरंगों में प्रेषित हो रहा तनाव भी महसूस होता रहा.

भीड़ समय-समय पर भारत माता की जय और इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगा रही थी. राष्ट्रगान भी हुआ. लंबे वक्त से शांत चल रहे मुख्यमंत्री केजरीवाल ने भाजपा पर खुलकर हमला बोला. गुजरात चुनावों में भाजपा को हराने के लिए उन्होंने यहां तक कह दिया कि- जो भी पार्टी भाजपा को हरा सके उसे वोट करना.

लंबे अरसे बाद पार्टी के मंच पर नज़र आए कुमार विश्वास ने भी कार्यकर्ताओं को संबोधित किया. उन्होंने जो कहा उसके निहितार्थ है. कुमार के मुताबिक- “देश सबसे पहले है, उसके बाद पार्टी है. व्यक्ति सबसे बाद में आता है.” इस पर भीड़ के एक हिस्से ने जमकर नारेबाजी की और तालियां बजाई. जाहिर है उनके इस बयान से कहीं न कहीं मुख्यमंत्री केजरीवाल असहज हो सकते थे. हालंकि तब तक अरविंद केजरीवाल मंच पर पहुंचे नहीं थे. इस दौरान मंच पर मौजूद मनीष सिसोदिया और दूसरे नेताओं के माथे पर तनाव पसरा रहा. हालांकि मनीष लगातार कुमार के संबोधन के दौरान उनकी हौसलाअफजाई करते दिखे. विश्वास ने पार्टी से अलग हो गए पुराने साथियों को फिर से पार्टी में लाने की जरूरत पर जोर दिया. उनका इशारा प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव की ओर था. कुमार ने पत्रकार गौरी लंकेश, गौरक्षकों और जस्टिस लोया की हत्या के मुद्दे उठाकर भाजपा पर सवालिया निशान लगाए लेकिन सभा के अंत में वे बाकी नेताओं से अलग मंच के दूसरी तरफ से नीचे उतरे.

केजरीवाल ने अन्ना हजारे को याद करते हुए अपने संबोधन की शुरूआत की. पहले मनीष सिसोदिया और बाद में केजरीवाल ने दिल्ली सरकार के कामकाज और ‘आप’ के आने से बाकी दलों की राजनीति में आए बदलाव के बारे में बताया.

NTI ने देशभर से आए कार्यकर्ताओं से बातचीत में एक बात दर्ज की वो ये कि वे मेनस्ट्रीम मीडिया को लेकर बहुत ज्यादा उत्साहित नहीं हैं. उन्हें लगता है कि मीडिया आम आदमी पार्टी के मामलों को बहुत बढ़ा चढ़ाकर पेश करता है.

क्या पार्टी की कामकाजी संस्कृति में किसी तरह का बदलाव आया है? इस सवाल का जवाब नकारात्मक मिलता है. उनका मानना है कि पार्टी जैसे पांच साल पहले थी वैसे ही आज भी है.

पांच साल में ऐतिहासिक राजनीतिक कामयाबी हासिल करने वाली इकलौती पार्टी है आप. लेकिन अंदरूनी उठापटक और व्यक्तित्वों का टकराव पांच साल के सफर में बड़ी मुसीबत साबित हुआ है. एक नजर डालते हैं आम आदमी पार्टी के पांचवीं वर्षगांठ के आयोजन पर.

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