(मोहन भुलानी, NTI न्यूज़ व्यूरो, उत्तराखंड)
ब्रांड का नाम तभी बड़ा होता है जब उसके प्रचार के लिए बड़े से बड़े लोकप्रिय चेहरों का इस्तेमाल किया जाए। जब महेंद्र सिंह धोनी ने साल 2009 में मैक्स मोबाईल के साथ करार कर उनके ब्रांड एम्बेसडर बने तब सभी लोग जान गए कि वे प्रोडक्ट की सफलता के लिए मील का पत्थर साबित होकर रहेंगे। टी-20 विश्व कप के दौरान इसका प्रचार -प्रसार इतना जोर-शोर से हुआ कि यह सभी की नजरों में आ गया और उसकी बिक्री में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई जैसा कि अजय अग्रवाल चाहते थे। परन्तु इस स्थिति को प्राप्त करने के लिए उन्होंने बिज़नेस की फील्ड में महारत हासिल की।
मैक्स मोबाइल के संस्थापक और प्रबंध निदेशक अजय अग्रवाल आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उन्होंने चौदह वर्ष की उम्र में अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी। चिल्ड्रन अकादमी स्कूल में पढ़ते हुए जब वे नवमीं कक्षा में फेल हो गए तब उन्होंने इस औपचारिक शिक्षा प्रणाली को छोड़ने का तय किया। बाद में वे मुंबई स्थित अपने पिता के इलेक्ट्रॉनिक ट्रेड बिज़नेस के साथ काम करने लगे। इसलिए नहीं कि कोई आर्थिक संकट था या परिस्थितियों के दबाव में आकर, बल्कि अजय को बिज़नेस से लगाव था और वे अपना पूरा समय इसे देना चाहते थे।
वे अपने पिता के बिज़नेस में एकाउंट्स सँभालते थे और उन्हें इसके लिए महीने में 4000-5000 रूपये दिए जाते थे। वे समझते थे कि आज के तकनीकी क्रांति के समय वे अपने पिता की मदद करें और उनके बिज़नेस को बढ़ाने के लिए म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स, मोबाइल फ़ोन एक्सेसरीज, गैजेट्स आदि की शुरुआत करें। बिज़नेस को सीखने और समझने के लिए उन्होंने मलेशिया और चीन का दौरा भी किया।
2004 में अजय ने यह निश्चय किया कि वे उत्पादन के क्षेत्र में हाथ आज़माएंगे और उन्होंने मोबाइल एक्सेसरीज जैसे चार्जर, बैटरीज, इयरफोन आदि का उत्पादन करना शुरू किया। पहले साल उनकी कमाई पाँच लाख रूपये हुई जो अजय को यह महसूस कराने के लिए काफ़ी था कि इस इंडस्ट्री में क्षमता और अवसर दोनों हैं। उन्होंने अपनी सारी बचत, लाभ और अपने दोस्तों, परिवार वालों और पिता से उधार लेकर बड़े स्तर पर उत्पादन शुरू किया। 2006 में उनका लाभ 50 करोड़ रूपये था। सभी के लिए यह आश्चर्य का विषय था कि उन्होंने दो वर्ष के भीतर ही 5 लाख रूपये से 50 करोड़ बना लिए।
उन्होंने एक बड़ा निर्णय लिया कि वे मोबाइल फ़ोन का उत्पादन शुरू करेंगे और उन्होंने 2008 में मैक्स मोबाइल की नींव रखी। उस समय बहुत कम ही भारतीय इस उद्योग में थे। शुरू के 6 महीने उन्होंने अपने वितरण चैनल्स और ग्राहकों से फीडबैक लेने में लगा दिया। इस फीडबैक के आधार पर उन्होंने अगले 6 महीनों में मोबाइल के 20 मॉडल्स बाजार में उतारे। उन्होंने दो सिम स्लॉट वाले फ़ोन लांच किये जो उस समय नया-नया था। यह लोगों के बीच बहुत ही लोकप्रिय रहा।
बिज़नेस करते-करते उन्होंने यह सीखा कि अगर उसमें उपयोग के सामान की कीमत कम हो जाये तो लाभ ज्यादा मिलेगा। शुरू में 95% पुर्जा आयात किया जाता था पर धीरे-धीरे वे देश के भीतर ही इन सामानों को खरीदने लगे और बाद में तो अजय लगभग 50% पुर्जों का उत्पादन खुद ही करने लगे। अजय ने अपनी पहली फैक्ट्री मुंबई में शुरू की, उसके बाद उन्होंने हरिद्वार में खोली और उनकी तीसरी फैक्ट्री 2009 में फिर से मुंबई में ही शुरू की। धीरे -धीरे पूरे भारतीय बाज़ार में उन्होंने अपनी पकड़ मजबूत कर ली। अब इनके उत्पाद की बिक्री भारतीय उप महाद्वीप, दक्षिण एशिया और अफ्रीका में भी शुरू हो गई। अब वे भारतीय बाज़ार के धुरंधर खिलाड़ी बन चुके हैं। उनके फ़ोन की 80% बिक्री उनके फीचर फ़ोन की वजह से हुई है।
मैक्स मोबाइल को उस व्यक्ति ने ईजाद किया जो हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली के पैमाने पर दसवीं कक्षा में पढ़ने के काबिल नहीं थे। उनका लगाव बिज़नेस से था और वे उससे ज्यादा लाभ कमाना चाहते थे और उन्होंने यह कर दिखाया। अजय की कंपनी का यह विश्वास है कि 2017 के अंत तक उनका टर्न-ओवर 1500 करोड़ रूपये का हो जायेगा।