जिन योगी आदित्यनाथ को विवादित छवि के कारण प्रधानमंत्री मोदी ने अपने केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह देने लायक नहीं समझा था, ढाई साल के बाद मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह उन्हें देश के सबसे बड़े सूबे की बागडोर सौंपने पर सहमत हो गए. सवाल ये है कि अब तक योगी के नाम पर ना-नुकुर करने वाले बीजेपी के एजेंडे में योगी सबसे ऊपर कैसे आ गए?
अब तक हर चुनावी नतीजों के बाद योगी की उग्र हिंदुत्व की छवि ही उनके सत्ता तक पहुचने के रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा बन जाती थी और योगी सत्ता की दावेदारी से बाहर हो जाते थे. चाहे वो यूपी में कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह की सरकारें हों या वाजपेयी और मोदी का केन्द्रीय मंत्रिमंडल. बीजेपी के लिए योगी की अहमियत एक प्रचारक से ज्यादा कभी नहीं रही.
योगी चुनाव के समय ज्यादा टिकटों के लिए अपनी भुजाएं फड़काते. बीजेपी नेतृत्व उन्हें शांत कराता, पर नेतृत्व देने के नाम पर योगी अछूत बन जाते. सत्ता तो छोड़िए, प्रदेश और केन्द्रीय संगठन में भी कभी योगी को जगह नहीं दी गई. न महासचिव बने, न उपाध्यक्ष, न प्रदेश अध्यक्ष, सीधे बन गए देश के सबसे बड़े सूबे यूपी के मुख्यमंत्री.
लोकसभा चुनाव की तैयारी की ओर BJP का पहला बड़ा कदम
यूपी में बीजेपी अगर 200 विधायकों के संख्या के बाद योगी का चुनाव लोकसभा के धुव्रीकरण के हिसाब से करती, तो ‘ये दिल मांगे मोर’ की बीजेपी रणनीति समझी जा सकती थी. पर 325 के आंकड़ों के साथ भी अगर बीजेपी को योगी को सत्ता सौंपनी पड़े, तो यह विकास की राजनीति की सीमाओं को भी दिखाता है और धुव्रीकरण की चुनावी लालसा भी.
शायद अमित शाह के जेहन में योगी को चुनते वक्त अखिलेश जरूर याद आए होंगे. काम तो अखिलेश ने भी किया था, लेकिन जनता ने अखिलेश से सहानुभूति रखते हुए भी उन्हें वोट नहीं दिया.
अमित शाह विकास की राजनीति का चुनावी रिस्क नहीं लेना चाहते थे और न ही अखिलेश बनना चाहते थे. योगी हिन्दुत्व की राजनीति के प्रणेता हैं और राम मंदिर आंदोलन के बाद के दौर के हिन्दुत्ववादी एजेंडों- गोरक्षा, पलायन, असुरक्षा जैसे मसलों पर सबसे मुखर राजनेता. योगी को न सेक्युलर बनने की चिंता है, न अपनी विवादित इमेज से परहेज. यही उनकी यूएसपी है और मिशन 2019 के लिए बीजेपी की बदली रणनीति के वो ट्रंप कार्ड हैं.
संभावित महागठबंधन से मुकाबले की तैयारी
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को अंदेशा है कि यूपी में करारी हार के बाद 2019 में बीजेपी से मुकाबले के लिए बीएसपी-एसपी-कांग्रेस हाथ मिला सकते हैं. ऐसी स्थिति में पिछड़ी जातियों का धुव्रीकरण 2019 में पलटी मार सकता है. ऐसे में हिन्दू धुव्रीकरण ही दलित, मुस्लिम व यादवों के जातीय ध्रुवीकरण को पछाड़ सकता है. 2017 में एसपी का 21 प्रतिशत, बीएसपी का 22 प्रतिशत और कांग्रेस के 6 प्रतिशत को जोड़ दिया जाए, तो बीजेपी को मिले 39 प्रतिशत को आसानी से पछाड़ सकता है.
केवल जातीय धुव्रीकरण पर बाजी लगाकर अमित शाह रिस्क लेने को तैयार नहीं थे, इसलिए धार्मिक ध्रुवीकरण के कार्ड को खेलने पर सहमति बनी. इस ध्रुवीकरण कार्ड में न तो मनोज सिन्हा फिट बैठते थे, न ही मौर्य.
पिछड़ों के धुव्रीकरण और अगड़ों के सशक्तिकरण के लिए मौर्य और दिनेश शर्मा को उपमुख्यमंत्री तो बना दिया गया है, पर मुख्यमंत्री के लिए आदित्यनाथ को चुना गया.
अपने फैसले पर अडिग रहने वाले बीजेपी अध्यक्ष को जब संघ के एक वरिष्ठ नेता ने किसी दूसरे नाम पर सहमति बनाने को कहा, तो बीजेपी अध्यक्ष ने पीएम से दो टूक कहा कि उन्हें ही 2019 जिताने की जिम्मेदारी दे दी जाए.
योगी पूर्वी और पश्चिमी यूपी में धुव्रीकरण की कुंजी हैं
वीर बहादुर सिंह के बाद पूर्वी उत्तर प्रदेश से निकलने वाले योगी दूसरे मुख्यमंत्री हैं. पिछले डेढ़ दशक में यूपी में मुख्यमंत्री का ताज पहनने वाले अखिलेश, मुलायम, मायावती पश्चिमी यूपी से निकलते रहे हैं. बीजेपी की रणनीति साफ है. पूर्वी यूपी योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने से और मजबूत होगा और पश्चिमी यूपी योगी के हिन्दुत्ववादी एजेंडे के कारण घुव्रीकृत रहेगा.
पश्चिमी यूपी में सबसे ज्यादा बूचड़खाने हैं और योगी सरकार की पहली प्राथमिकता बीजेपी संकल्प पत्र के मुताबिक इन अवैध बूचड़खानों को बंद करने की है. बीजेपी के मुताबिक, एंटी रोमियो स्क्वॉड की जरूरत पश्चिमी यूपी के मुस्लिम बहुल इलाकों में सबसे ज्यादा है.
योगी सरकार के ऐसे फैसले पश्चिमी यूपी में कानून-व्यवस्था की स्थिति में सुधार के साथ धुव्रीकरण की लौ को चुनाव तक जलाए रखेंगे.
2014 के लोकसभा और 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत की बड़ी वजह पश्चिमी यूपी में मुस्लिम वोटों के बंटवारा और पूर्वी यूपी में पिछड़ी जातियों का एकतरफा घुव्रीकरण रहा है. मुख्यमंत्री योगी बीजेपी के इन दो गढ़ों में बीजेपी की बढ़त बनाए रखने में मददगार साबित होंगे.
दबंग सीएम यूपी की मांग
यूपी में लचर कानून-व्यवस्था और पुलिस तंत्र में यादवों के प्रभुत्व का मुद्दा बीजेपी के चुनावी कैंपेन का एक प्रमुख हिस्सा रहा था. पिछले 15 साल में मायावती और मुलायम के सत्तासीन होने के कारण यूपी की कानून-व्यवस्था और प्रशासन में दलितों और यादवों का प्रभुत्व रहा है. इस गठजोड़ को तोड़कर संतुलन बनाने के लिए बीजेपी को एक दबंग छवि के मुख्यमंत्री की जरूरत थी.
योगी न केवल दबंग हैं, बल्कि अधिकारियों के लिए कल्याण सिंह की तरह कड़क भी. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के करीबी और मुख्यमंत्री चयन में अहम किरदार निभाने वाले बीजेपी के एक प्रमुख नेता ने एक खास बात कही. उन्होंने कहा कि अखिलेश के खिलाफ हाईपीच कैंपेन के बाद अपराध पर लगाम कसने और उत्तरदायी प्रशासन के लिए बीजेपी के मिशन 2019 में राजनाथ सिंह के मना करने के बाद योगी ही फिट बैठते थे.
बीजेपी धुव्रीकरण चाहती है, तो संघ सांस्कृतिक विस्तार
यूपी में योगी और उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह रावत, दोनों की जड़ें आरएसएस से जुड़ी रही हैं. योगी की स्वयंभू छवि के बाद भी संघ के सांस्कृतिक एजेंडे को पूरा करने में यूपी में योगी से बड़ा कोई पोस्टरबॉय नहीं हो सकता.
योगी कहते रहे हैं कि राम मंदिर बनाना उनकी प्राथमिकता है, हिन्दू राष्ट्र बनाना संकल्प है, गाय उनकी माता है. योगी की दिनचर्या गायों को चारा खिलाने से शुरू होती है. मुस्लिमों के प्रति उनकी कट्टर सोच संघ के ‘हिन्दू राष्ट्र’ से मेल खाता है. ऐसे में योगी का चुनाव सिर्फ बीजेपी के एजेंडे को पूरा नहीं करता, बल्कि यह आरएसएस के एजेंडे का भी विस्तार है.