एक तो पहाड़ की दुभर परिस्थितियां और उसपर अस्पताल में न डॉक्टर, न दवा। नतीजतन सर्दी-जुकाम की दवा के लिए भी पहाड़ी लोगों को शहरी इलाकों की दौड़ लगानी पड़ती है। पर्वतीय इलाकों में सेहत भगवान भरोसे है। लाख कोशिशों के बाद भी महकमा डॉक्टरों को पहाड़ चढ़ाने में नाकाम रहा है।

बीमार पड़ा युवा प्रदेश
उत्तराखंड में कई सरकारें आईं और गईं, लेकिन शराब और खनन तक ही सीमित रहीं। मूलभूत जरूरतों पर किसी भी हुकुमरान की नजर नहीं पहुंच पाई। 16 साल का ये युवा प्रदेश के हुक्मरान पहाड़वासियों के मर्ज का इलाज नहीं खोज पाए।
पहाड़ पर जाना नहीं चाहते डॉक्टर्स
आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो सूबे में सरकारी अस्पतालों की संख्या 993 है और इनमें डॉक्टरों के 2711 पद स्वीकृत हैं। मगर, 1615 पद वर्षों से खाली पड़े हैं और वह भी अधिकांश पर्वतीय इलाकों के सरकारी अस्पतालों में। पहाड़ में न सिर्फ चिकित्सक बल्कि अन्य स्टाफ व दवाओं की भी कमी बनी हुई है। साफ शब्दों में कहें तो सरकारी अस्पताल महज उपस्थिति दर्ज कराने तक सीमित हैं। डीजी हेल्थ डीएस रावत की मानें तो सब जल्द ठीक होगा।
डॉक्टरों के सामने खड़ा हो रहा पारिवारिक संकट
सूबे में चिकित्सकों की कमी को पूरा करने के लिए सरकारी स्तर पर भावी डॉक्टरों को बांड की शर्तों में बांधने से लेकर तमाम प्रयास किए गए, मगर सफलता नहीं मिली। यहां तक की स्वास्थ्य सुविधाओं के आधारभूत ढांचे में भी कोई बड़ा बदलाव नहीं आया। इसकी वजह भी साफ है की सरकार दूरस्त क्षेत्रों में डॉक्टरों को इसलिए भी नहीं पहुंचा पा रही है कि जिन डॉक्टरों की पोस्टिंग पर्वतीय इलाकों में होनी है उनके सामने पारिवारिक संकट खड़ा हो जाता है।
डॉक्टरों की राय
वरिष्ठ फिजीशियन डॉ एसडी जोशी की मानें तो डॉक्टर तब ही पहाड़ चढ़ेगा जब उनको और उनके परिवार के लिए सरकार कोई नीति निर्धारण करेगी और हर तीसरे साल ट्रांसफर की व्यवस्था करे और हर अस्पताल में तमाम साजो सामान की भी जरूरत पूरी करे ताकि सर्जन भी हर अस्पताल में सर्जरी कर सके।
ठगा महसूस कर रहे पहाड़वासी
उत्तराखंड के जन मानस भी अपने को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। 16 सालों में सरकारें स्वास्थ्य जैसे अहम विभाग को दुरुस्त नहीं कर पाईं। सरकारी चिकित्सा सेवाओं की बदहाल स्थिति के कारण निजी अस्पतालों और डॉक्टरों की शरण में जाना लोगों की मजबूरी बन गई है।
कार्पोरेट हाथों में हैं स्पेशिलिटी स्वास्थ्य सेवाएं
प्रदेश में इस वक्त छोटे-बड़े करीब 600 निजी अस्पताल व नर्सिंग होम हैं। निजी चिकित्सकों की तादाद तकरीबन ढाई हजार है। बीते वर्षों में सरकारी क्षेत्र में चिकित्सीय सेवाओं का लगातार विस्तार तो हुआ है, मगर अधिकतर अस्पताल मैदानी क्षेत्रों तक सीमित हैं। यहां भी सुपर स्पेशिलिटी स्वास्थ्य सेवाएं कार्पोरेट हाथों में हैं, जहां इलाज कराना आम आदमी के बूते से कोसों दूर है।