सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टीगेशन (CBI) ने हाल ही में GTL लिमिटेड के निदेशकों और कुछ अन्य के खिलाफ धोखाधड़ी का केस दर्ज किया है. यह मामला 4,760 करोड़ रुपए के बैंक घोटाले से जुड़ा है. इस स्कैम को सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया गया था. आरोपियों ने पहले फर्जी कंपनियों का मायाजाल बुना और फिर बैंकों के पैसों को डायवर्ट कर लिया. अब सीबीआई धीरे-धीरे मामले की परतें उधेड़ रही है.
क्या करती है GTL लिमिटेड?
मीडिया रिपोर्ट्स में CBI के हवाले से बताया गया है कि GTL लिमिटेड ने हेराफेरी करके 20 से अधिक बैंकों वाले एक समूह से लोन हासिल किया था. फिर अधिकांश पैसे को सभी ने मिलकर हड़प लिया. इस घोटाले में कुछ अज्ञात बैंक अधिकारी और वेंडर भी शामिल हैं. घोटाले को बारीकी से समझने से पहले GTL के बारे में जानते हैं. GTL 1987 में एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के रूप में अस्तित्व में आई थी और 1991 में इसे एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी में बदल दिया गया. यह कंपनी भारत और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में दूरसंचार ऑपरेटरों को दूरसंचार नेटवर्क से जुड़ी सेवाएं, उनका संचालन और रखरखाव सेवाएं, पेशेवर सेवाएं, नेटवर्क योजना और डिजाइन सेवाएं और ऊर्जा प्रबंधन सेवाएं प्रदान करती है. सीबीआई की FIR में कहा गया है कि मनोज तिरोडकर और ग्लोबल होल्डिंग कॉरपोरेशन प्राइवेट लिमिटेड (जीएचसी) कंपनी के प्रमोटर हैं.
कैसे दिया घोटाले को अंजाम?
यह मामला बैंक लोन फ्रॉड से जुड़ा है, जिसे कथित रूप से 2009 से 2012 के बीच अंजाम दिया गया. सीबीआई के अनुसार, कंपनी ने बैंकों के एक समूह से धोखाधड़ी करके कई क्रेडिट सुविधाएं हासिल की और इस लोन का ज़्यादातर पैसा कुछ बैंक अधिकारियों और वेंडरों के साथ मिलीभगत करके डायवर्ट कर लिया. आरोपों के अनुसार, घोटाले की योजना को परवान चढ़ाने के लिए विभिन्न वेंडर कंपनियां बनाई गईं, और जीटीएल लिमिटेड की मिलीभगत से बैंकों के लोन के पैसों को डायवर्ट किया गया. GTL को लोन देने वाले बैंकों के समूह में करीब 24 बैंक शामिल हैं. कुल 4,760 करोड़ रुपए के लोन कंपनी को दिया गया था. अब ICICI बैंक का GTL पर 650 करोड़ रुपए, बैंक ऑफ इंडिया का 467 करोड़ और कैनरा बैंक का 412 करोड़ रुपए बकाया है.
स्कैम से अंजान थे डायरेक्टर्स?
इस घोटाले को बड़ी चालाकी से अंजाम दिया गया. GTL ने बैंकों के समूह से कुछ खास बिजनेस एक्टिविटीज के लिए लोन हासिल किए. बैंकों से वादा किया गया कि इन पैसों का इस्तेमाल बताए गए उद्देश्यों के लिए ही किया जाएगा. हालांकि, ऐसा किया नहीं गया. लोन का अधिकांश पैसा डायवर्ट कर दिया गया. डायरेक्टर्स का कहना है कि उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं है, लेकिन सवाल उठ रहे हैं कि क्या ये मुमकिन है? क्या कंपनी के निदेशक वास्तव में अपनी नाक के नीचे चल रहीं इन गतिविधियों से अंजान थे?
कैसे हुआ घोटाले का खुलासा?
GTL में कुछ गड़बड़ चल रहा है, इसका अंदेशा 2016 में उस समय हो गया था जब रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने IDBI बैंक को पत्र लिखकर जीटीएल लिमिटेड को चिह्नित करने और एक फॉरेंसिक ऑडिट कराने का निर्देश दिया था. IDBI को यह निर्देश इसलिए दिया गया, क्योंकि वो भी GTL को लोन देने वालों बैंकों के समूह में शामिल है. RBI के निर्देश पर GTL के खातों की फॉरेंसिक ऑडिट कराई गई और इसका जिम्मा चार्टर्ड अकाउंटेंसी फर्म NBS एंड कंपनी को सौंपा गया. इसके बाद पूरा घोटाला सामने आ गया.