उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर के चलते आये एकतरफा नतीजों से बीजेपी बेहद उत्साहित है. पार्टी ने अब 2019 को लेकर सियासी चक्रव्यूह रचना शुरू कर दिया है. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने पार्टी कार्यकर्ताओं को अभी से आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट जाने को कहा है. लेकिन प्रदेश के मौजूदा राजनीतिक हालात को देखते हुए त्रिवेंद्र रावत सरकार के लिये आगे की राह मुश्किल भरी हो सकती है. सरकार में भागीदारी का सवाल हो, 13 जिलों के बीच संतुलन बनाना हो या फिर जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों को साधना, ऐसे कई मोर्चों पर सरकार और संगठन को जूझना पड़ सकता है.
राज्य सरकार में संसदीय क्षेत्रों के आधार पर भागीदारी को देखें तो 14 विधायकों वाले टिहरी संसदीय क्षेत्र से एक भी विधायक मंत्री नहीं बन पाया है. देहरादून भी टिहरी संसदीय क्षेत्र में है लेकिन सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत का विधानसभा क्षेत्र डोईवाला हरिद्वार संसदीय क्षेत्र में आता है. ऋषिकेश विधानसभा सीट भी हरिद्वार में है. यहां के विधायक प्रेमचंद अग्रवाल विधानसभा अध्यक्ष बनाए गए. हालांकि टिहरी जिले से सुबोध उनियाल को मंत्रिमंडल में जगह अवश्य मिली है लेकिन उनकी नरेंद्र नगर सीट भी पौड़ी लोकसभा सीट का हिस्सा है. इस तरह पूरे टिहरी संसदीय क्षेत्र को सरकार में शामिल करने से परहेज किया गया. उत्तरकाशी जिले को पूरी तरह छोड़ दिया गया है. देहरादून में 10 में से 9 सीटों पर बीजेपी चुनाव जीती है लेकिन मुख्यमंत्री के अलावा किसी भी दूसरे विधायक की लॉटरी नहीं खुल पाई है.
पौड़ी, नैनीताल, अल्मोड़ा और हरिद्वार संसदीय क्षेत्र से कई विधायक मंत्री पद से नवाजे गये हैं. हरिद्वार संसदीय क्षेत्र की डोईवाला सीट से मुख्यमंत्री, ऋषिकेश से विधानसभा अध्यक्ष और कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक हरिद्वार शहर से विधायक हैं. इसी तरह अल्मोड़ा संसदीय क्षेत्र की पिथौरागढ़ सीट से विधायक प्रकाश पंत कैबिनेट मंत्री और रेखा आर्य राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बनाये गये हैं. नैनीताल संसदीय क्षेत्र से अरविंद पाण्डेय और यशपाल आर्य कैबिनेट मंत्री हैं. सबसे ज्यादा लॉटरी पौड़ी लोकसभा सीट के विधायकों की लगी है. इनमें सुबोध उनियाल, सतपाल महाराज और हरक सिंह रावत को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है, जबकि धनसिंह रावत को राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) का दयित्व दिया गया है. सरकार में नज़र आ रहे इस असंतुलन से बीजेपी के कार्यकर्ता मायूस और हताश हैं. कांग्रेस छोड़ कर आये पांच नेताओं को मंत्रिमंडल में खासी तवज्जो मिलने से वो आक्रोशित भी है. इसे बरसों पुराने पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ताओं में पनप रहे असंतोष की बड़ी वजह माना जा रहा है. फिलहाल तो कैबिनेट में दो मंत्री पद खाली रख कर असंतोष को मुखर होने से रोकने की बिसात बिछायी गयी है. लगता है कि इन दोनों पदों को सरकार के कामकाज को लेकर जनता के मूड को भांपने के बाद ही भरा जायेगा. लेकिन 2019 तक नेताओं और कार्यकर्ताओं को संतुष्ट कर पाना आसान नहीं होगा.
उत्तराखंड की बीजेपी सरकार के सामने 2019 के लोकसभा चुनाव की संभावित चुनौतियों में से एक है निशंक, कोश्यारी और खंडूड़ी के साथ तालमेल बिठाना. प्रदेश की राजनीति के इन तीन दिग्गजों में से खंडूड़ी भले ही बड़ी उम्र की चपेट में आते हों, लेकिन कोश्यारी और निशंक को ज्यादा समय तक हाशिये पर रखना आसान नहीं होगा. बीजेपी भले ही ये दावा करती हो कि पार्टी में कोई गुटबाजी नहीं है लेकिन सच तो ये है कि पार्टी आज भी कई गुटों में बंटी हुई है. इन गुटों को त्रिमूर्ति का आशीर्वाद भी हासिल है. खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत को कोश्यारी गुट का माना जाता रहा है. पूर्व मुख्यमंत्री और सासंद कोश्यारी का प्रभाव मंत्रालयों के बंटवारे और मंत्री पदों पर भले ही दिखायी दे रहा हो लेकिन खुद कोश्यारी का राजनीतिक भविष्य असमंजस में है. वहीं पूर्व मुख्यमंत्री और हरिद्वार से सांसद रमेश पोखरियाल निशंक आम कार्यकर्ताओं में लोकप्रिय हैं और संगठन में पकड़ बनाये रखना अच्छी तरह जानते हैं. खंडूड़ी भले ही सियासत में उम्रदराज हो गये हों लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ वो बीजेपी का आक्रामक हथियार बन कर गाहे-बगाहे सामने आते रहते हैं. बीजेपी की मजबूरी और ज़रूरत दोनों रह चुके खंडूड़ी की आगामी लोकसभा चुनावों में गैर मौजूदगी पार्टी कार्यकर्ताओं के मनोबल पर कितना असर डालेगी ये भी देखने वाली बात होगी.
पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस से बीजेपी में आये विजय बहुगुणा का पार्टी में एक बड़े चेहरे के तौर पर उभरना भी बीजेपी के कई पुराने नेताओं और कार्यकर्ताओं को रास नहीं आ रहा है. विजय बहुगुणा को जल्दी ही केंद्र में बड़ी जिम्मेदारी दिये जाने के संकेत मिल रहे हैं. सूत्रों की मानें तो उन्हें राज्यसभा में भी भेजा जा सकता है. कुछ इसी तरह के संकेत राज्य के काबीना मंत्री सतपाल महाराज के बारे में भी मिल रहे हैं. सूत्रों के मुताबिक 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी सतपाल महाराज पर दांव खेलने का मन बना रही है. बड़े नेताओं को संतुष्ट करने के बावजूद बीजेपी और संघ के बीच वर्चस्व को लेकर चल रही खींचतान भी पार्टी के लिए नुकसान का सबब बन सकती है. बताया जा रहा है कि प्रेमचंद अग्रवाल को विधानसभा अध्यक्ष बनाने का फैसला बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) रामलाल के ही प्रयासों से वरिष्ठ नेता हरबंश कपूर को दरकिनार कर लिया गया. विधानसभा अध्यक्ष हरबंश कपूर 8 बार विधायक चुने जा चुके हैं. प्रेमचंद को प्रदेश बीजेपी के संगठन सह प्रभारी और राज्य सह प्रभारी का भी समर्थन हासिल था. बीजेपी कार्यकर्ताओं और नेताओं में संघी पृष्ठभूमि के नेताओं के दबाव में हो रही इस उपेक्षा को लेकर नाराजगी है. ऐसे में राज्य में बीजेपी की आगामी लोकसभा चुनाव में कामयाबी सरकार के कामकाज के अलावा संगठन के स्तर पर इन चुनौतियों से गुजर पाने की उसकी क्षमता पर भी निर्भर करेगी.