मशहूर वकील प्रशांत भूषण ने जब उत्तर प्रदेश में ‘एंटी रोमियो दल‘ पर टिप्पणी करते उसमें श्रीकृष्ण का नाम लिया तो भाजपा नेताओं की जगह पर कांग्रेस के प्रवक्ता जीशान हैदर ने उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के हजरतगंज थाने में मुकदमा दायर कराया. जीशान हैदर से जब यह पूछा गया कि क्या यह कांग्रेस की तरफ से मुकदमा कायम कराया गया है? इस पर वह बोले कि मैं पार्टी का प्रवक्ता हूं. पार्टी की राय से अलग नहीं हो सकता. मुकदमा कायम होने के 3 दिन बाद तक कांग्रेस ने इस प्रकरण पर कोई दूसरी राय नहीं जाहिर की. जिससे यही साफ है कि यह मुकदमा पार्टी की सहमति से कायम कराया गया है. असल में ऐसे मुकदमों में नया कुछ नहीं है. तमाम बार ऐसे मुकदमें दायर कराये जाते है. इनमें बाद में होता कुछ नहीं है. प्रशांत भूषण खुद बड़े वकील हैं, उहोंने ऐसा कुछ नहीं कहा जिससे उनको अदालत में गलत ठहराया जा सके.
इस मुकदमें का सबसे खास प्वाइंट यह है कि पूरे देश में हार से बौखला गई कांग्रेस को अब अपने लिये मुद्दों की तलाश है. ऐेसे में उसे लगता है कि अगर भाजपा की तरह वह भी हिदुत्व की राह पर चलेगी तो उसको जनता का समर्थन मिल सकता है. श्रीकृष्ण के अपमान पर भाजपा या उससे जुड़े संगठनों की जगह पर जब कांग्रेस के प्रवक्ता की तरफ से मुकदमा दायर होता है तो यह साफ हो जाता है कि यह राय पार्टी की राय होगी. कांग्रेस को जिस तरह से एक के बाद एक प्रदेश में हार का सामना करना पड़ रहा है उससे वैचारिक रूप से पार्टी के भविष्य पर सवाल खड़े होने लगे हैं. ऐसे में पार्टी को जनाधार बढ़ाने के लिये नये मुद्दों की तलाश है. भाजपा ने विधानसभा चुनाव में धार्मिक ध्रुवीकरण के सहारे बड़ी जीत हासिल की. अब कांग्रेस उसी राह पर चलना चाहती है. कांग्रेस को यह सोचना चाहिये कि ऐसे मुद्दे उसे लाभ नहीं देंगे.
अपनी किसान खाट यात्रा के दौरान राहुल गांधी अयोध्या के हनुमानगढी मंदिर जाकर महंत ज्ञानदास से मिले थे. इसके बाद भी वह पार्टी को बचाने में सफल नहीं हुये. समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने के बाद भी कांग्रेस पिछले चुनाव के बराबर भी सीटे नहीं जीत पाई. राहुल गांधी ने पहले बिना किसी गठबंधन के चुनाव लड़ने की बात कह कर खाट यात्रा निकाली, फिर अखिलेश यादव का साथ ले लिया. कांग्रेस खुद यह नहीं समझ पा रही कि वह किस राह पर चले. उहापोह में फंसी भाजपा के मजबूत संगठन और प्रबंधतंत्र का मुकाबला नहीं कर पा रही है. जिस तरह से पार्टी का नेतृत्व सही फैसला नहीं ले पा रहा उससे साफ है कि वह देखादेखी में कदम उठा रही है.
विधानसभा चुनाव में कई कांग्रेस के नेता पार्टी का साथ छोड़कर भाजपा में गये. यह लोग आरोप लगाते हैं कि पार्टी नेतृत्व खुद सही फैसला नहीं ले पा रहा. विधानसभा चुनाव में प्रदेश से बाहर से नेताओं को लाकर यहां के लोगों की उपेक्षा की गई. युवाओं की बात करते हुये उम्रदराज नेताओं को चुनाव की कमान सौंपी गई. पहले अकेले चुनाव लड़ने की बात हुई, फिर गठबंधन हो गया. ऐसे में साफ है कि कांग्रेस हर तरह से हाशिये पर है. ऐसे में श्रीकृष्ण के अपमान के बहाने वह हिन्दुत्व को संदेश देना चाहती है. भाजपा के शब्दों में यह छद्म हिन्दुत्व है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. प्रदेश के लोग कांग्रेस की हकीकत जानते हैं.