भ्रष्टाचार के खिलाड़ियों के सहारे कब तब चलेगी सरकार ?

(योगेश भट्ट, वरिष्ठ पत्रकार )

ओमप्रकाश, मृत्युंजय और बीसीके आदि कुछ अफसरों को लेकर सरकार सवालों के घेरे में हैl काश! जनप्रतिनिधि चुनने के अधिकार की तरह नौकरशाह चुनने का अधिकार भी जनता को होता। तब शायद जनता द्वारा, जनता की, जनता के लिए चुनी सरकार की परिकल्पना साकार हो पाती। जनता चाहे कितना बड़ा जनमत क्यों न दे, लेकिन आखिरकार सरकार जनता की नहीं बल्कि ‘चंद’ लोगों की ही होती है। ये चंद चेहरे सिर्फ चंद चेहरों के लिए ही सरकार चलाते हैं। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि जो चंद चेहरे सरकार चलाने वाले हैं, वो या तो नौकरशाह हैं या फिर ‘पावर ब्रोकर’। जनता द्वारा चुने गए चेहरे या तो मोहरे भर है या फिर हाशिए पर हैं। बहरहाल उत्तराखंड में जो कुछ इन दिनों चल रहा है, उससे यह साफ हो गया है कि सरकार चलाने के लिए ‘जन नायक’ नहीं, बल्कि कोई बड़ा नौकरशाह या सत्ता का ‘दलाल’, शिष्ट भाषा में कहें तो ‘पावर ब्रोकर’ का होना जरूरी है। उत्तराखंड के सोलह साल के इतिहास में कई अफसर सरकार चलाने वाले नौकरशाह के रूप में चर्चित रहे हैं। एम रामचंद्रन, एनएन प्रसाद, संजीव चोपड़ा, प्रभात कुमार सारंगी, उमाकांत पंवार, राकेश शर्मा आदि वो प्रमुख नाम हैं, जो अलग अलग दौर में सरकार की धुरी रहे। इन अफसरों से प्रदेश को क्या हासिल हुआ यह कोई नहीं बता सकता, लेकिन सरकारों को राजनैतिक तौर पर कितना नुकसान हुआ यह किसी से छिपा नहीं है। हर शासन काल में कोई न कोई नौकरशाह ऐसा रहा है, जिसके नाम सरकार की ‘कलंकगाथा’ लिखी गई। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि राज्य ने ‘पावर सेंटर’ बनने वाले ऐसे अफसरों को ‘पावर’ दिए जाने की बड़ी कीमत चुकाई है। सवाल यह उठता है कि जब निर्वाचित सरकार एक सिस्टम से चलती है तो अचानक उसमें चंद चेहरे पावर सेंटर कैसे बन जाते हैं? खोट किसमें है, सिस्टम में या फिर लीडरशिप में? अभी तक कमजोर जनादेश का बहाना बनाकर राजनैतिक नेतृत्व खुद को बचाता रहा है, लेकिन इस बार तो ऐसी कोई मजबूरी नहीं है। मुख्यमंत्री और उनके सहयोगी मंत्री फिर क्यों पुराने ढर्रे पर हैं? क्यों कुछ नौकरशाह रातों रात ‘खास’ हो जा रहे हैं? ऐसा संदेश क्यों गया कि नई सरकार में ओम प्रकाश ही सर्वेसर्वा यानी ‘पवार सेंटर’ होंगे ? आखिर किसी भी सरकार के बारे में यह खुशफहमी या गलतफहमी किसी को भी कैसे हो सकती है, या होन दी जा सकती है कि सरकार ‘वह’ चला रहा हैं? वह से तात्पर्य किसी ‘नौकरशाह’ के साथ ही किसी ‘पावर ब्रोकर’, किसी मीडिया हाउस, पत्रकारों के समूह या कारपोरेट से भी है। उत्तराखंड में जिस तरह वरिष्ठ अधिकारी ओम प्रकाश को तरजीह मिली है, उससे साफ संदेश यह गया है कि ‘सरकार’ ओम प्रकाश चलाएंगे। ओम प्रकाश उत्तराखंड की नौकरशाही में पुराना और खासा चर्चित नाम है। सरकार पर लाख सवाल उठते रहें, लेकिन उन्होंने अपनी टीम को एडजस्ट करना शुरू कर दिया है। मृत्युंजय मिश्रा जैसे विवादित अधिकारी को जिस तरह वे खुला संरक्षण दे रहे हैं, उससे यह साबित होता है कि वे खुद को ‘पावर सेंटर’ मान चुके हें। वर्ना ऐसे कैसे हो सकता है कि मूल रूप से एक शिक्षक, जिससे कि महाविद्यालय में पठन-पाठन कराया जाना चाहिए, ‘पावर ब्रोकर’ बन जाए। तमाम मौकों पर सरकार की किरकिरी कराने, भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे शख्स को ‘ओम प्रकाश’ अगर मुख्यमंत्री सचिवालय में बैठाने की फिराक में है तो यह बेहद ही दुर्भाग्पूर्ण है। यह कहीं न कहीं उस भारी जनादेश का भी अपमान है, जो सुशासन के नाम पर जनता ने भाजपा को दिया है। सनद रहे कि राजनेताओं का नौकरशाहों के इशारों पर चलना, उनके हाथों में खेलना एक खतरनाक परिपाटी है। डेढ़ दशक से उत्तराखंड इस दंश झेल रहा है। सचिवालय से लेकर महकमों तक में अफसर ‘पावर सेंटर’ बन राजनेताओं का मनमाफिक इस्तेमाल करते रहे हैं। इसी परिपाटी ने प्रदेश को हाशिए पर धकेल दिया है। न जाने उत्तराखंड के राजनेता कब परिपक्व होंगे? सरकार कब उनके कौशल से चलेगी? कब वो दिन आएगा जब सरकार पर ‘बाहरी’ ताकतें हावी नहीं होंगी? किस दिन चुनी हुई ‘सरकार’ सही मायनों में सरकार चलाएगी ?

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