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‘नफ़रत की मार्केटिंग’ का चेहरा बनी गाय

(प्रकाश मैठाणी, न्यूज़ ब्यूरो )

कहते हैं मानवीय हृदय प्रकृति की तमाम कृतियों के लिए संवेदनाओं से युक्त होता है। हे ईश्वर! मनुष्य को वो समझ दे जिससे वह मनुष्य को भी प्रकृति की कृति समझे। प्रेम कभी भी नफ़रत फैलाने का कारण नहीं हो सकता, यदि प्रेमावेश में आप किसी से घृणा करने लगे हैं तो अपने प्रेम की जांच ज़रूर कर लें।

ख़ैर, राजनीति के बाज़ारीकरण ने प्रचारतंत्र को जिस तरह से बढ़ाया है, वह किसी से छिपा नहीं। प्रचार पहले भी हुआ करते थे, लेकिन बीते कुछ सालों में राजनीतिक प्रचारों ने सारी परिभाषाएं बदलने का काम किया है। वर्तमान राजनीति प्रचार के मामले में पहले से अधिक जागरुक भी दिखती है और रचनात्मक भी, हां नैतिकता के मामले में वर्तमान राजनीतिक प्रचार व्यवस्था के कदम कदाचित थोड़े पीछे रह गए हैं।

वर्तमान राजनीति प्रचार के लिए या तो एक व्यक्ति पर निर्भर रहने लगी है (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल) या किसी ऐसे मॉडल पर जो सभी के सोच से परे हो और कारगर भी। केंद्र की सत्ता पर काबिज़ भारतीय जनता पार्टी ऐसे अनोखे मॉडल (श्रीराम, गंगा, योगा) को उतारने में अन्य प्रतिद्वंद्वियों से मीलों आगे है। हाल-फिलहाल में गाय को प्रचार के मैदान पर दौड़ाया जा रहा है। गाय की तेज़ी बीजेपी की परंपरागत राजनीति को लाभ पहुंचाती भी दिख रही है। दरअसल बीजेपी गाय को नफ़रत का चेहरा बनाकर रख देना चाहती है।

पशुधन बाज़ार विनियमन नियम (Regulation of Livestock Markets Act)

23 मई 2017 को भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु मंत्रालय द्वारा एक अधिसूचना ज़ारी की गई। अधिसूचना पशुधन बाज़ार विनियमन नियम, 2017 से संबद्ध थी। अधिसूचना में विभिन्न प्रकार के मवेशियों को पारिभाषित करते हुए वध के उद्देश्य से उनके खरीद-फरोख़्त पर रोक लगाई गई है। अधिसूचना के साथ ही राजनैतिक गलियारे में शोर मचने लगा। सर्वाधिक मुखर दिखे केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन।

चारों ओर विरोध

पिनरई विजयन ने सरकार के इस फैसले को राष्ट्र के संघीय ढ़ांचे पर प्रहार बताया। संविधान का हवाला देते हुए पिनरई ने कहा कि केरल में केंद्र सरकार का ये आदेश नहीं माना जाएगा। धीरे-धीरे विरोध के सुर बढ़ने लगे। ममता बनर्जी ने पिनरई का साथ देते हुए सरकार के इस आदेश को असंवैधानिक बताया। जनता दल युनाइटेड ने केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों को विश्वास में न लेने की बात कही। अलग-अलग जगहों पर विरोध होने लगे।

नफ़रत का विस्तार- समाज का विखंडन

लेकिन केरल में युवा कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने रविवार 28 मई को विरोध स्वरूप जिस कार्य को अंजाम दिया वो नैतिकता की दृष्टि से अस्वीकार्य था। दरअसल, इस फैसले के ज़रिए बीजेपी जिस तरह के राजनीतिक फ़ायदे की अपेक्षा कर रही होगी, युवा कांग्रेस के उस कृत्य से उसे उद्देश्यपूर्ति में लाभ ही मिलेगा।

IIT मद्रास के छात्रों द्वारा आदेश के विरोध में बीफ पार्टी का आयोजन किया गया, जिसकी प्रतिक्रिया स्वरूप इस पार्टी में शामिल हुए छात्रों पर गौभक्तों ने हमला किया और हानि पहुंचाई।

कुल मिलाकर समाज दो भागों में बंटता दिख रहा है। एक तरफ संवैधानिक अधिकारों और व्यापारिक हितों का हवाला देकर आदेश का विरोध कर रहे लोग और दूसरी तरफ गौप्रेम में मनुष्यों की हत्या से भी बाज़ न आने वाले गौभक्त। बीजेपी का उद्देश्य शायद पूर्ण हो गया। आगामी गुजरात विधानसभा चुनावों में गौ के नाम पर नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी सत्ता हासिल कर लें तो ताज़्जुब नहीं होनी चाहिए।

गाय जिसके नाम पर ये पूरी राजनीति खेली जा रही है, असल में उसकी फिक्र किसी को नहीं। सड़कों पर बेसहारा और आवारा घूमती हुई गायों को देखकर उनके लिए उचित व्यवस्था का ख़याल किसी के मन में नहीं आता। गाय को नफ़रत की मार्केटिंग के लिए चेहरे के तौर पर प्रयोग किया जा रहा है। गांधी की तस्वीर के सामने सिर झुकाने वाले राजनेता गांधी की शिक्षाओं का दम घोंटने में लगे हुए हैं। आइए जागें और न फंसे नफ़रत के इस जाल में।

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