(अरविन्द थपलियाल, NTI न्यूज व्यूरो, उत्तरकाशी)
जियोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार हिमालय में 9575 छोटे-बड़े ग्लेशियर हैं. इनमें से करीब 1200 ग्लेशियर उत्तराखंड में मौजूद हैं. उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और लद्दाख सहित नार्थ-ईस्ट से जुड़े हिमालय क्षेत्र में मौजूद ग्लेशियरों पर वातावरण के प्रदूषण के कारण खतरा बढ़ता ही जा रहा है.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जारी शोध यह बताता है कि हिमालय के ग्लेशियर लगातार सिकुड़ रहे हैं. वैज्ञानिक अपने दावों के पीछे अपने शोध का हवाला दे रहे हैं. हिमालय को एशिया का वाटर हाउस कहा जाता है. वैज्ञानिक और धार्मिक दृष्टि से हिमालय पूरे विश्व में अलग स्थान रखता है.
अब सवाल उठता है कि क्या हिमालय में मौजूद हजारों ग्लेशियर खत्म हो जाएंगे? क्या हिमालय से निकलने वाली सदानीरा नदियों का अस्तित्व खत्म हो जाएगा? तापमान में हो रही बढ़ोतरी से क्या हिमालय केवल पत्थरों और बड़े बोल्डरों का समुद्र रह जाएगा?
ये हैं प्रमुख ग्लेशियर
उत्तराखंड में वैसे तो हिमालय के करीब 1200 ग्लेशियर हैं, लेकिन इनमें मौजूद हैं- गंगोत्री ग्लेशियर समूह, ढोकरानी-बमक ग्लेशियर, चोराबाड़ी ग्लेशियर, द्रोणागिरी-बागनी ग्लेशियर, पिण्डारी ग्लेशियर, मिलम ग्लेशियर, कफनी, सुंदरढुंगा, सतोपंथ, भागीरथी खर्क, टिप्रा, जौन्धार, तिलकू और बंदरपुंछ ग्लेशियर.
गंगा का अस्तित्व भी खतरे में
गंगा नदी करोड़ों हिंदुओं के लिए आस्था को केंद्र है. वह उनके लिए केवल नदी नहीं बल्कि एक संस्कृति है, जो सदियों से सदानीरा बहते हुए मनुष्यों के पापों को धोती आ रही है. गढ़वाल हिमालय में स्थित गंगोत्री ग्लेशियर समूह पर वर्षों से शोध हो रहा है. गंगोत्री ग्लेशियर गंगा नदी का उद्गम स्थल है. हजारों श्रद्धालु गंगोत्री दर्शन के बाद प्रति वर्ष गोमुख पहुचते हैं. गोमुख से ही गंगा की प्रमुख सहायक नदी भागीरथी नदी निकलती है.
वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने इस ग्लेशियर समूह पर कई विषयों को लेकर शोध किया है. गंगोत्री ग्लेशियर पर हो रहे शोध से स्पष्ट है कि यह प्रतिवर्ष 18 मीटर की दर से सिकुड़ रहा है. वाडिया के वैज्ञानिक लगातार सिकुड़ रहे गंगोत्री ग्लेशियर पर शोध कार्य कर रहे हैं.
हाल ही में गंगोत्री ग्लेशियर पर शोध कर लौटे वैज्ञानिक डॉ. तिवारी ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग का असर गंगोत्री ग्लेशियर समूह पर पड़ रहा है. यह ग्लेशियर करीब 300 छोटे-बड़े ग्लेशियर से निर्मित है और यह खतरा केवल गंगोत्री ग्लेशियर पर नहीं बल्कि हिमालय में स्थित सैकड़ों ग्लेशियर पर बना हुआ है. डॉ. समीर तिवारी कहते हैं कि वे लम्बे समय से गंगोत्री ग्लेशियर के मुहाने पर शोध कर रहे हैं जो अब धीरे-धीरे काला और मटमैला दिखाई देने लगा है.
गंगोत्री ग्लेशियर को वातावरण के प्रदूषण ने बनाया काला
वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान उत्तराखंड में पांच बड़े ग्लेशियरों पर शोध कार्य कर रहा है. इनमें गंगोत्री ग्लेशियर समूह, ढोकरानी ग्लेशियर, चोराबाड़ी ग्लेशियर और पिण्डारी ग्लेशियर है. संस्थान में ही ग्लेशियरोलॉजी सेंटर की स्थापना के बाद वैज्ञानिकों की टीमें अलग-अलग ग्लेशियर पर शोध कार्य में जुटी हैं. डॉ. समीर तिवारी ने जानकारी दी कि हिमालय में बर्फबारी गर्मियों और सर्दियों में आने वाले मानसून से होती है. 2002 में गंगोत्री ग्लेशियर में 24 फीट बर्फबारी दर्ज हुई लेकिन धीरे-धीरे गंगोत्री ग्लेशियर पर बर्फबारी कम हो रही है.
डॉ. समीर तिवारी ने बताया कि गंगोत्री ग्लेशियर का रंग काला होना शुरू हो गया है और यह और भी ज्यादा बढ़ेगा. वे कहते हैं कि उनका शोध इसी विषय पर केन्द्रित है कि इस ग्लेशियर में सदियों से जमी बर्फ कैसे बनी. डॉ. तिवारी ने कहा कि वाडिया संस्थान के निदेशक डॉ. अनिल गुप्ता के निर्देशन में उनका शोध कार्य जारी है और ग्लेशियर के मुहाने से वे कई सैम्पल भी एकत्रित करके लाए हैं. हिमालय में बर्फबारी जून से सितम्बर में काफी कम होती है, लेकिन सर्दियों में साउथ वेस्ट मानसून द्वारा ज्यादा बर्फबारी होती है.
मंडरा रहे हैं कई और खतरे
वाडिया संस्थान के ग्लेशियरोलॉजी सेंटर में कई अन्य वैज्ञानिक भी शोध कार्य कर रहे हैं. डॉ. अमित कुमार कहते है कि गंगोत्री ग्लेशियर ही नहीं बल्कि उत्तराखंड के सभी ग्लेशियर सिकुड रहे हैं. डॉ. अमित ने जानकारी दी कि ग्लेशियरों के सिकुड़ने और ग्लोबल वार्मिंग के खतरों पर अभी काफी शोध होना बाकी है. इसके साथ ही सबसे पहले वायु प्रदूषण की जांच करने के लिए एयर क्वालिटी मॉनिटिरिंग सिस्टम हरिद्वार से गंगोत्री तक स्थापित किए जाने आवश्यक है. डॉ. अमित कहते हैं कि सर्दियों में एवलांच और गर्मियों में भूस्खलन के बाद भारी मात्रा में छोटे-बडे बोल्डर टूटकर ग्लेशियर के ऊपर आ जाते हैं जिसके कारण भी ग्लेशियर का रंग काला दिखाई देने लगता है.
…तो और तेजी से पिघलेंगे ग्लेशियर
गढ़वाल विश्वविद्यालय का भूविज्ञान विभाग भी ग्लेशियरों पर शोध कार्य कर रहा है. डॉ. एसपी सती ने कहा कि यह एक कड़वी सच्चाई है कि ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं और वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों का प्रतिशत भी बढ़ रहा है. हिमालय में ईंधन के जलने, जंगलों में आग के कारण कार्बन के कण वायुमंडल में बादलों के साथ मिश्रित होकर हिमपात के रूप में ग्लेशियरों की ऊपरी सतह पर जमा हो जाते हैं. इससे ग्लेशियरों का रंग काला हो जाता है, जो ऊष्मा को तेजी से सोखता है और गर्मियों में ग्लेशियर तेजी से पिघलने लगते हैं. डॉ. सती ने बताया कि वायु प्रदूषण का प्रभाव साल दर साल बढ़ रहा है और अभी इस पर और शोध की आवश्यकता है.