इस गांव में जिंदगियां निगल रही खदानों की धूल

उत्तरी गोवा के धूलभरे खनन क्षेत्र सोंशी गांव के निवासी 10 वर्षीय वासुदेव गावड़े की वार्षिक परीक्षाएं करीब हैं, लेकिन पढ़ाई या परीक्षाओं की तैयारी का ख्याल तक उसके दिलों-दिमाग से कोसों दूर है। गावड़े जैसे और भी कई नाबालिग अपने माता-पिता के कैद से छूटने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं, जिन्हें गांव में ट्रकों के जरिए लौह अयस्क के परिवहन के कारण उड़ने वाली धूल और पानी की कमी का विरोध करने के कारण 11 अप्रैल को गिरफ्तार कर लिया गया था।

गावड़े ने कहा कि “हमारे इलाके में बहुत अधिक धूल है। ट्रकों की आवाजाही के कारण स्कूल आना-जाना बेहद मुश्किल है। हमें साफ हवा और पानी चाहिए.. मेरे माता-पिता मेरे लिए ही जेल चले गए हैं।” पिछले रविवार को गावड़े सहित 25 बच्चों ने अपने माता-पिता की रिहाई की मांग को लेकर वालपोई पुलिस थाने तक विरोध मार्च निकाला था। वालपोई पुलिस थाने के कर्मियों ने इस मामले में 23 महिलाओं और एक वरिष्ठ नागरिक समेत कई लोगों को आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत गिरफ्तार कर लिया है।

वालपोई पुलिस थाने के प्रभारी दीपक पेडणेकर ने कहा, “हमें कानून के अनुरूप काम करना पड़ता है। कंपनी के पास उच्च न्यायालय का आदेश है, जिसमें स्पष्ट है कि कोई भी उन्हें इलाके में खनन करने से रोक नहीं सकता। 2014 में ग्रामीणों ने कंपनी के ट्रकों को रोकने की कोशिश की थी, जिसके बाद कंपनी ने उनके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी।”

गिरफ्तार ग्रामीण उत्तरी गोवा की कोलवोले केंद्रीय जेल में कैद हैं, क्योंकि उनके रिहाई के लिए मुचलका भरने के लिए अलग-अलग 10,000 रुपये की राशि नहीं है। हालांकि बम्बई उच्च न्यायालय की पणजी पीठ ने उनके कैद और लौह अयस्क की धूल के मामले को स्वत: संज्ञान में लिया है।

अदालत ने पुलिस को ग्रामीणों के खिलाफ की गई कार्रवाई का ब्योरा देने और गोवा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को सत्तारी उप जिले में प्रदूषण पर रपट सौंपने का निर्देश दिया है। शहर के वकील और कार्यकर्ता आयरेस रॉड्रिग्स ने भी सोंशी के निवासियों के लिए साफ पानी और स्वच्छ हवा के अधिकार की मांग करते हुए गोवा मानवाधिकार आयोग (जीएचआरसी) में एक याचिका दायर की है। रॉड्रिग्स ने बताया, “मैंने जीएचआरसी का इस ओर ध्यान दिलाया है कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के मुताबिक पीने का पानी जीवन की बुनियादी जरूरत है और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों को साफ पानी मुहैया कराना राज्य का दायित्व है।”

लेकिन इन याचिकाओं के बीच, और भी कई जरूरी मुद्दे हैं, जो सोंशी गांव के निवासियों, खासतौर पर महिलाओं और वृद्धों के लिए बड़ी चिंता हैं। एक गृहिणी गीता नाइल ने कहा, “घर में कुछ भी खाने को नहीं है। मेरे बच्चे मुझसे अपने पिता के बारे में पूछते रहते हैं। मैं क्या करूं? पहले उन्होंने हमारी जमीन छीन ली और फिर हमारे गांव को प्रदूषित कर दिया। यह बंद होना चाहिए।” लौह अयस्क का खनन गोवा की अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न हिस्सा है, खासतौर पर भीतरी इलाकों में। हालांकि राज्य में 35,000 करोड़ रुपये के अवैध खनन घोटाले के बाद 2012-2014 तक दो सालों के लिए कई अरब रुपयों के इस उद्योग पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।

विडंबना यह है कि केंद्रीय खान मंत्रालय द्वारा राज्य के इस सबसे बड़े अवैध घोटाले के मामले में आरोपी गोवा की लगभग सभी खनन कंपनियों और साथ ही कई शीर्ष नौकरशाहों और नेताओं की जांच के लिए न्यायमूर्ति एम.बी. शाह आयोग गठित करने के बावजूद पुलिस ने इस उद्योग से जुड़ी किसी बड़ी हस्ती को गिरफ्तार नहीं किया। जब यह उद्योग अपने चरम पर था, तब गोवा ने करीब 5.5 करोड़ टन लौह अयस्क का निर्यात किया था। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने, जो अवैध खनन के इस मामले की सुनवाई कर रहा है, प्रतिबंध के बाद लौह अयस्क के खनन पर प्रति वर्ष 20 टन की सीमा तय कर दी है।

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