साल 2005 की बात है. जयपुर के सेंट जेवियर सीनियर सेकंडरी स्कूल में वार्षिक पत्रिका एक्सरे के प्रकाशन की तैयारियां चल रही थीं. स्कूल प्रबंधन ने पत्रिका के प्रकाशन के लिए 12 संपादकों की एक सूची बनाई. इस सूची में 12वीं कक्षा के सभी छह सेक्शन से दो-दो टॉपर स्टुडेंट शामिल थे. जब यह सूची बोर्ड पर चस्पां की गई तो इसे देखकर एक बच्चा स्कूल के फादर के कक्ष में पहुंचा.
फादर ने जब बच्चे से वहां आने का कारण पूछा तो वह बोला, ‘मुझे भी एक्सरे का संपादक बनना है.’ फादर ने पूछा, ’11वीं कक्षा में आपके कितने मार्क्स हैं.’ स्टुडेंट ने कहा, ’70 प्रतिशत.’ फादर ने कहा, ‘जो संपादक बने हैं, उनके नंबर तुमसे बहुत ज्यादा हैं, अब तक उन्हें ही संपादक बनाया जाता रहा है जो अपनी कक्षा के टॉपर हों.’ इतना कहकर फादर ने बच्चे को बाहर भेज दिया.
पूरे स्कूल में यह अकेला बच्चा था जो खुद आगे बढ़कर पत्रिका के प्रकाशन से जुड़ना चाहता था. फादर को शायद लगा होगा कि उसकी बात अनसुनी करके उन्होंने ठीक नहीं किया. यही सोचकर उन्होंने कुछ दिन बाद फिर उस विद्यार्थी को अपने पास बुलाया और कहा, ‘बहुत सोच-विचार करके मैंने अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए आपको पत्रिका का 13वां संपादक नियुक्त करने का फैसला किया है.’
लेकिन यह क्या! खुश होने की बजाय छात्र ने ऐतराज जता दिया, ‘अरे मुझे 13वां संपादक नहीं बनना, मुझे तो 12 संपादकों में ही जगह चाहिए.’ फादर को यह नागवार लगना लाजिमी था. उन्होंने बच्चे को फिर बाहर भेज दिया.
शुरू से ही थे मेधावी
करीब महीने भर बाद एक दिन प्रार्थना के तुरंत बाद जब फादर अपने कक्ष की तरफ लौट रहे थे तो वह बच्चा हाथ में लैपटॉप थामे फिर उनके सामने आया और बोला, ‘फादर, मेरे साथ चलिए, मैं आपको कुछ दिखाना चाहता हूं.’ फादर बच्चे के साथ अपने कक्ष में पहुंचे तो बच्चे ने अपना लैपटॉप खोलकर उन्हें दिखाया. 12वीं क्लास के उस बच्चे का काम देखकर फादर की आंखें खुली की खुली रह गईं. बच्चे के लैपटॉप में खुद के डोमेन के साथ स्कूल पत्रिका का पूरा संस्करण ई-एक्सरे नाम से तैयार था.
डोमेन, फादर ने पूछा, ‘यह तुमने कैसे किया?’ बच्चे ने बताया, ‘मैंने अपने चाचा के क्रेडिट कार्ड से पत्रिका के लिए एक डोमेन खरीदा है. अब हम हर साल अपनी पत्रिका ऑनलाइन तैयार कर सकेंगे और दुनिया में कहीं भी काम कर रहे जेवियर एल्युमनाई हमारी यह पत्रिका पढ़ सकेंगे.’ फादर ने तुरंत अपनी टेबल की दराज में से 6000 रुपये निकाले और बच्चे को देते हुए कहा, ‘यह पैसे अपने चाचा को लौटा देना और अब इस पत्रिका के तुम ही संपादक हो.’
12वीं कक्षा का यह बच्चा था, देश की सबसे बड़ी शिक्षा प्रौद्योगिकी कंपनियों में शुमार ‘अनएकेडमी’ का संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी गौरव मुंजाल और स्कूल की वह पत्रिका महज 15 साल की उम्र में उसका पहला स्टार्ट-अप थी.
आज 32 साल की उम्र में गौरव और उनके दो साथियों रोमन सैनी और हिमेश सिंह ने 26,000 करोड़ रुपए की संपत्ति वाली एडटेक कंपनी ‘अनएकेडमी’ खड़ी कर दी है. आइएएस जैसी प्रतिष्ठित नौकरी छोड़कर आए रोमन और हिमेश ने अनएकेडमी को स्थापित करने में गौरव का कदम-कदम पर साथ दिया है.
वो वक्त जब जिंदगी में आया टर्निंग पॉइंट
गौरव की जिंदगी में टर्निंग पॉइंट उस वक्त आया जब उन्होंने 2006-07 में मुंबई की नरसी मोंजी इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज (एनएमआइएमस) में बीटेक कंप्यूटर साइंस में दाखिला लिया. गौरव के पिता डॉ. ईश मुंजाल बताते हैं, ‘हमने बैंक से 8 लाख रुपए का एजुकेशन लोन लेकर एनएमआइएमएस में गौरव का दाखिला करवाया और चार साल बाद गौरव ने खुद यह लोन चुकाया.’
एनएमआईएमएस में पढ़ते हुए ही गौरव ने अनएकेडमी यूट्यूब चैनल और ‘फ्लैट डॉट टू’ जैसे स्टार्ट-अप बनाए. शुरुआती पांच साल तक अनएकेडमी यूट्यूब चैनल ही रहा. 2014 में जब रोमन को आइएएस की नौकरी मिली तब गौरव और रोमन अनएकेडमी पर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियों वाले वीडियो अपलोड करते थे.
तब अनएकेडमी के 24,000 सब्सक्राइबर थे. 2015 में जब रोमन नौकरी छोड़कर पूरी तरह से गौरव के साथ जुड़े तब अनएकेडमी के एक लाख सब्सक्राइबर बन चुके थे. 10 दिसंबर 2015 को अनएकेडमी को कंपनी के तौर पर शुरू किया गया.
एनएमआईएमएस में कैंपस प्लेसमेंट के दौरान ही गौरव को 16 लाख रुपये के सालाना पैकेज पर नौकरी मिल गई. लेकिन उन्होंने एक साल बाद ही अपना खुद का स्टार्ट-अप फ्लैट डॉट टू बनाकर नौकरी छोड़ दी. फ्लैट डॉट टू बनाने में 25 लाख रुपए का खर्चा आया जिसके लिए गौरव ने एक इन्वेस्टर को तैयार किया. गौरव मुंजाल की कुल संपत्ति करीब 1,500 करोड़ रुपये है.
फ्लैट डॉट टू सफल नहीं हो पाया. कुछ समय बाद ही उसे बेंगलूरू की कॉमन फ्लोर कंपनी ने दो करोड़ रुपये में खरीद लिया. कॉमन फ्लोर में ही गौरव को नौकरी भी मिल गई. लेकिन नवंबर 2014 में गौरव कॉमन फ्लोर छोड़कर अनएकेडमी को खड़ा करने के लिए जी-जान से जुट गए. 2015 में अपनी स्थापना के सात साल बाद ही अनएकेडमी आज बायजूज के बाद भारत की दूसरी सबसे बड़ी एडटेक कंपनी है.
कंपनी की आगे की योजनाएं भी कम दिलचस्प नहीं हैं. अनएकेडमी की रिसर्च टीम लिंक्डइन जैसा प्लेटफॉर्म बना रही है जिसमें बिना रिज्यूम बनाए लोग जॉब ऑप्शन पा सकेंगे. इस कंपनी के नाम के लिए गौरव ने ऑनलाइन सुझाव मांगे तो सबसे ज्यादा पसंद ‘अनप्रोफाइल’ नाम को किया गया. इसके अलावा अनएकेडमी ने कोटा में हाल ही में अपने दो ऑफलाइन एजुकेशन सेंटर खोले हैं. भविष्य में कंपनी ऐसे ही सेंटर जयपुर, बेंगलूरू, चंडीगढ़, अहमदाबाद, पटना, पुणे और दिल्ली में भी खोलने जा रही है.