वाराणसी। मोक्षदायिनी गंगा की गोद से काशी में सोना-चांदी भी निकलता है, वह भी प्रतिदिन चार-पांच लाख रुपये से अधिक का। इसकी बदौलत सैकड़ों परिवार पलते हैं। यह सोना-चांदी या तो पार्थिव शरीरों का होता है, जो अंतिम संस्कार के बाद राख में मिल जाता है या फिर श्रद्धाभाव से कुछ लोग आभूषण तक गंगा मइया को चढ़ा देते हैं। इसकी ताक में घाटों पर बैठे रहते हैं कई लोग। राख छानते हैं, गोता लगाते हैं और कीमती धातु निकाल लेते हैं।
सामान्य दिनों में काशी के मणिकर्णिका व हरिश्चंद्र घाट पर प्रतिदिन लगभग 100 से 150 पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार किया जाता है। भारतीय परंपरा में जब किसी विवाहिता की मृत्यु होती है तो अंतिम संस्कार के दौरान परिवार वाले पार्थिव शरीर को दुल्हन की तरह सजाते हैं। उस पर सोने-चांदी के आभूषण भी होते हैं। इसकी ताक में बैठे लोगों की मणिकर्णिका व हरिश्चंद्र घाट पर खास निगाह रहती है कि कौन सा पार्थिव शरीर महिला का है।
किसी महिला का जब दाह संस्कार होता है तो शरीर पर मौजूद सोने-चांदी के आभूषण गलकर राख में मिल जाते हैं। इसके बाद जब घाट पर सिर्फ चिता की राख बचती है, तब मल्लाह और डोमराज के परिवार के सदस्य अपना काम शुरू करते हैं। सबसे पहले महिला के दाह संस्कार के बाद बची राख को एक जगह एकत्र किया जाता है। अढ़िया में राख को लेकर मल्लाह गंगा में उतरते हैं। राख पानी में घुल जाती है और बचता है कोयला व कुछ कंकड़। इन्हीं के बीच खोज होती हैं सोने-चांदी की।
दक्षिण भारतीयों पर विशेष नजर: बताते हैं कि प्रतिदिन अमूमन एक दर्जन से अधिक दक्षिण भारतीय महिलाएं सिर्फ आस्था के नाम पर अपने गले व हाथों में पहने आभूषण निकालकर गंगा में चढ़ा देती हैं। जैसे ही वह आभूषण फेंकती हैं, नदी में मौजूद मल्लाह तेजी से गोता लगाते हैं और वह आभूषण निकाल लेते हैं। चौधरी बताते हैं, ‘राख के बीच से सोना निकालना इतना आसान नहीं है। कभी-कभी तो पूरे दिन मेहनत के बाद भी कुछ नहीं मिलता तो किसी दिन चार-पांच ग्राम सोना बमुश्किल मिल जाता है।’