गौर हो कि पिछली रावत सरकार के समय विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लागू होने से पहले जारी किये गए 44 खनन पट्टों को वर्तमान सरकार ने निरस्त कर दिया था। एक मई को सरकार ने हरिद्वार, देहरादून, नैनीताल व ऊधम सिंह नगर में खनन भंडारण के लाइसेंस को निरस्त करते हुए शासनादेश जारी किया था। जिसके बाद याचिकाकर्ता एमएस इंटरप्राइजेज इस मामले को लेकर कोर्ट की शरण में गये।
याचिका में कहा गया है कि सरकार की ओर से एक मई को शासनादेश जारी कर खनन, भंडारण के लाइसेंस निरस्त कर दिये गए हैं और नौ मई को शासन ने समस्त पट्टों को स्थगित कर दिया। सरकार का फैसला असंवैधानिक और राजनीति से प्रेरित है। बिना सुनवाई का मौका दिए पट्टे निरस्त किये गए हैं। दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की एकलपीठ ने एक मई को जारी शासनादेश निरस्त कर दिया है।
गौर हो कि राज्य सरकार ने 15 जनवरी यानी चुनावों से 15 दिन पहले तक दिए गए खनन पट्टों को निरस्त कर दिया था। जानकारी के मुताबिक, राज्य सरकार ने पाया है कि खनन के पट्टे हरीश रावत सरकार ने अपने करीबियों को दिए थे इसलिए राज्य सरकार ने ये फैसला लिया है।