हिन्दी इंग्लिश की तरह सेक्सी नहीं

-श्रद्धा शर्मा

जैसे-जैसे इंसान की भाषा बदलती है, वैसे-वैसे उसकी इच्छाएं, ज़रूरतें और ज़िंदगी को देखने-सोचने-समझने का नज़रिया भी बदलता है। मैं भी कहीं बदल न जाऊं, इसलिए मैंने अपनी भाषा को कभी खुद से दूर नहीं होने दिया। कहते हैं न अपनी मिट्टी और अपनी भाषा कभी दिल से नहीं जुदा होते, तो मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही है।

ये झूठ होगा, यदि मैं ये कहूं कि मैं बहुत अच्छे से हिन्दी लिख सकती हूं। हिन्दी लिखने की आदत तो स्कूल के दिनों से ही बदल गई थी। इंग्लिश में लिखना, इंग्लिश में बोलना, स्कूल इंग्लिश में, कॉलेज इंग्लिश में, नौकरी इंग्लिश में और इन सबके बीच इस सोच का साथ चलना कि अच्छे से इंग्लिश बोलने और लिखने से ही सबकुछ मिलेगा या फिर कहूं तो इंग्लिश ही ज़िंदगी में आगे बढ़ने का सबसे ज़रूरी माध्यम बन गई। लेकिन अब दु:ख होता है। जब हिन्दी लिखने बैठती हूं, तो उस तरह नहीं लिख पाती, जिस तरह लिखना चाहती हूं। हिन्दी से जुड़ी ढेरों यादें हैं मेरे पास, जिन्हें मैं शब्द देना चाहती हूं। मेरी मां मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा रही हैं और उनका हिन्दी भाषा से लगाव इतना ज्यादा था, कि वो लगाव मुझसे भी कभी दूर नहीं हुआ। मैं अंग्रेजीमय होने के बावजूद सपने हिन्दी में देखती हूं, सोचती हिन्दी में हूं और मुस्कुराती भी हिन्दी में ही हूं। इसलिए जब मुझे कहा गया, कि मैं हिन्दी का संपादकीय लिखूं, तो सच कहूं, दिल को बड़ा सुकून मिला। लेकिन इतने सालों बाद फिर से इस तरह हिन्दी लिखना आसान नहीं है। ऊपर से मात्राओं और शब्दों का चुनाव, वो भी एक बड़ी चुनौती है, इस भाषा के साथ। फिर सोचा कि चलो छोड़ो, लिखना है तो लिखना है, मगर ऐसा क्या लिखूं कि अपने हिन्दी पाठकों से कनेक्ट कर पाऊं। मैं ऐसा कुछ नहीं लिखने वाली कि हिन्दी की दुनिया में तहलका मच जाये। मैं कुछ सिंपल-सा ही लिख देना चाहती हूं, इस वादे के साथ कि हर दिन न सही, लेकिन समय-समय पर हिन्दी में कुछ न कुछ ज़रूर लिखूंगी और आपसे यहीं साझा करूंगी।

हमारी हिन्दी आधुनिकता के तंत्र में कहीं खो रही है और इस आधुनिक समय में हिन्दी के लिए स्पेस कम होता जा रहा है। अजीब बात है कि आधुनिकता शोर मचा कर और सनसनी फैलाकर ध्यान आकर्षित कर रही है, साथ ही ज्ञान का पर्याय होने का दंभ भी भर रही है। लेकिन जहां तक मुझे लगता है, ऐसी आधुनिकता का कोई स्थाई चरित्र नहीं बन पाया है अब तक। आज की आधुनिकता कल तक बासी हो जाती और एक नई आधुनिकता उस पर हावी हो जाती है, लेकिन हमारी हिन्दी सभी आधुनिकताओं की बाधाओं को पार करते हुए बड़ी सहजता से हर रूप-रंग में ढलती हुई आगे बढ़ जाती है। इन सबके बावजूद जैसा कि मैं कुछ समय से देख पा रही हूं, कि हिन्दी फिर से लौट रही है। मेरे आसपास के लोग हिन्दी बोलने में गर्व महसूस करने लगे हैं और हिन्दी सीखने की उनकी इच्छा मेरा उत्साहवर्धन करती है। सच कहूं तो बहुत गौरवान्वित महसूस करती हूं, जब हिन्दी में कुछ लिखने और बोलने का मौका मिलता है। हिन्दी कविताएं पढ़ती हूं, हिन्दी कहानियां सुनती हूं, हिन्दी सिनेमा देखती हूं और अपने पास से गुज़र जाने वाली हर हिन्दी चीज़ से कोई न कोई नई हिन्दी सीख कर लौटती हूं।

हम हिन्दीवालों को अपनी भाषा में गर्व होना चाहिए। ऐसा क्यों है, कि हम हिन्दी वाले घर में सबकुछ हिन्दी में करते हैं और बाहर आते ही इंग्लिश वाले हिरो-हिरोईन बन जाते हैं। हिन्दी के माध्यम से हमारा ये उद्देश्य है कि हम हर घर में पहुंचे। हमारे आसपास जो-जो इंग्लिश में हो रहा है, हम वो सबकुछ हिन्दी में भी लेकर आयें। हिन्दी की कहानियां, हिन्दी के किस्से, हिन्दी स्पीकर्स, आंत्रेप्रेन्योर, प्रगति, प्रोत्साहन, दिलचस्प, डॉक्ट्रोलॉजी, वुमनिया, सबकुछ हिन्दी में होगा। ये पहले से तय है, हम गलतियां काफी करेंगे, ज़ोर-शोर से करेंगे, क्योंकि हम हिन्दी के एक्सपर्ट्स नहीं हैं, ऐसे में हमारी सारी उम्मीद हमारे पाठकों पर आकर टिक जाती है, कि जो हमें पढ़ रहे हैं वे कॉन्ट्रिब्यूट भी करें। वे हमारे साथ लिखें और हमें मजबूती से खड़े होने में मदद करें, क्योंकि तभी तो हम कह पायेंगे, ‘हिन्दी हैं हम वतन है, हिन्दुस्तां हमारा…’

हिन्दी इंग्लिश की तरह सेक्सी नहीं लेकिन मजबूती से टिके रहने की ताकत तो रखती है, इसलिए आप हमारी गलतियों को एक ओर रख हमारा उत्साहवर्धन करें और हमारी प्यारी भाषा हिन्दी को आगे बढ़ने का मौका दें।

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