पहाड़ों से लगभग 30 प्रतिशत क्षेत्र कवर होता है। इसलिए भूकंप, भूस्खलन और चट्टानों के गिरने जैसी प्राकृतिक आपदाओं से लाखों लोगों को जान और संपत्ति का नुकसान होता रहा है। इनसे होने वाले नुक्सान को कम करना हमारे हाथ में है क्या, ये आज एक बड़ा सवाल बन गया है। इसके लिए जरूरी है कि पहाड़ों पर हो रहे निर्माण कार्यों पर गौर किया जाए। इस बात का खास तौर ध्यान रखा जाए कि इन निर्माण कार्यों से पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे। आपदा से जुड़े क्षेत्रों में काम करने वाले कुछ बड़े बिल्डर्स इसका उपाए लेकर सामने भी आ रहे हैं। इसमें प्री इंजीनियर्ड बिल्डिंग सबसे सुरक्षित विकल्प के तौर पर सामने आया है।
प्री इंजीनियर्ड बिल्डिंग और सस्टेनेबल तरीकों से निर्माण कर भारत को COP27 और G20 के लक्ष्यों तक पहुंचाने में बड़ा कदम भी हो सकता है। साथ ही प्राकृत आपदा के परिणामों को भी कम कर सकते हैं। पिछले दिनों उत्तराखंड के जोशीमठ से लेकर तमाम क्षेत्रों में जमीन की दरारों के बाद इसी तरह के निर्माण की कमी महसूस की गई थी। इस विशेष रिपोर्ट में जानिए पहाड़ों से जुड़े हर पहलू।
प्री इंजीनियर्ड बिल्डिंग प्राकृतिक आपदा प्रभावित क्षेत्रों में निर्माण के लिए एक संगठित और मजबूत विकल्प हैं। इन संरचनाओं को पर्यावरण की आवश्यकताओं के अनुसार ढाला जा सकता है। जैसे भूकंप और हवा की रफ्तार जैसे की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए। पारंपरिक निर्माणों की तुलना में इन संरचनाओं का आधार हल्का होता है, जिससे इन्हें तैयार करने के बाद जमीन पर 50 प्रतिशत तक कम दबाव पड़ता है। इसके अलावा, ऐसे निर्माण जमीन के खिसकने की स्थिति में पारंपरिक निर्माणों से अधिक स्थिर होते हैं।
समय की बचत के साथ प्रदूषण में भी कमी
इस तरह के निर्माण करने वाली कंपनी ईपैक प्रीफैब के निदेशक निखिल बोथरा ने बताया, जरूरी है कि सरकार और निजी क्षेत्र मिलकर प्री इंजीनियर्ड निर्माण को बढ़ावा दें। खासकर ऐसे क्षेत्रों में जो भू-प्रकृति आपदाओं जैसे लैंडस्लाइड के लिए अत्यधिक खतरनाक होते हैं। ऐसी तकनीकों को भारत में अपनाना एक टिकाऊ निर्माण की ओर एक महत्वपूर्ण कदम होगा, खासकर पहाड़ी क्षेत्रों में। दूसरी तरफ 50 प्रतिशत तक की समय बचत, निर्माण के दौरान प्रदूषण पर रोक, बिना पानी के निर्माण, चुनौती भरी जगहों पर निर्माण और अपने लचीलापन के साथ, PEBs आपदाग्रस्त क्षेत्रों में सुरक्षित निर्माण करना संभव हो पाएगा।
जियोसिंथेटिक से सस्टेनेबल इंफ्रास्ट्रक्चर
सस्टेनेबल इंफ्रास्ट्रक्चर, वो निर्माण जो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सस्टेनेबल और पर्यावरण लक्ष्यों को केंद्र में रखते हुए तैयार किया जाता है। इंफ्रास्ट्रक्चर पूरे लाइफ-साइकिल के दौरान सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करता है। विश्व में होने वाले कुल कार्बन उत्सर्जन में लगभग 40 प्रतिशत निर्माण उद्योग से होता है। भारत में ज्यादातर अनसस्टेनेबल इंफ्रा मैटेरियल्स जैसे कंक्रीट, सीमेंट का उपयोग किया जाता है, जो कि इस उद्योग से होने वाले कार्बन उत्सर्जन के लिए काफी हद तक जिम्मेदार हैं।
ऐसे निर्माणों के फायदे
मैकाफेरी इंडिया के प्रबंध निदेशक विक्रमजीत रॉय का कहना है, आज समय की मांग है कि हम रोड, ब्रिज, टनल, रेलवे, एयरपोर्ट आदि के निर्माणों के दौरान जियोसिंथेटिक मैटेरियल्स की ओर रुख करें। इससे हमें न केवल सस्टेनेबल इंफ्रास्ट्रक्चर के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करेगा, बल्कि हमें इंफ्रा-4.0 के फेज में भी ले जाएगा। ये संरचनाएं केवल लागत-प्रभावी ही नहीं हैं, बल्कि पर्यावरणीय रूप से भी टिकाऊ हैं। ये संरचनाएं कार्बन का उत्सर्जन नहीं करतीं, ऊर्जा के प्रति अत्यधिक कार्यक्षमता वाली हैं, और पूरे निर्माण प्रक्रिया के दौरान कम से कम पानी का उपयोग करती हैं। PEB का उपयोग करने से निर्माण का समय 50 प्रतिशत तक कम हो जाता है, जिससे क्षेत्र में अस्थिरता नहीं बढ़ती है।
सुरक्षित निर्माण के कुछ उदाहरण
पहाड़ों पर ऐसे निर्माण में एक अहम निर्माण है, रामबान जिले में अमरनाथ यात्री निवास। ईपैक ने इस यात्री निवास का निर्माण किया गया है। यहां, नाजुक और चुनौतीपूर्ण भौगोलिक स्थिति के कारण पारंपरिक निर्माण संभव नहीं था। अब, यहां श्रद्धालुओं के लिए 17 ब्लॉक हैं, जिसमें हर एक में 6 डॉर्मिटरी हैं। यहां कुल 216 तीर्थयात्रियों ठहर सकते हैं। ये यात्री निवास एक विस्तृत और सुरक्षित सुविधा है जो सीआरपीएफ और सेना की मदद से 24 घंटे संचालित होती है। वहीं दूसरी ओर मैकाफेरी इंडिया ने अटल टनल में हिमस्खलन के रोकधाम के लिए और बद्रीनाथ रुट पर पड़ने वाले लम्बागढ़ और 7 अन्य स्थानों पर भूस्खलन के लिए समाधान दिया है। साथ ही जम्मू कश्मीर में चेनाब ब्रिज के पास रेलवे स्टेशन के निर्माण के लिए पर्यावरण के अनुकूल ऐसी तकनीक से निर्माण किया है, जिसके चलते 80 प्रतिशत तक कार्बन एमिशन पर काबू किया जा सका है।