पेशे से वो टीचर नहीं हैं, फिर भी वो बच्चों को पढ़ाने का काम करती हैं। जिस जगह वो पढ़ाती हैं, वो कोई स्कूल नहीं है बल्कि सड़क किनारे का एक फुटपाथ है। पिछले चार सालों से वडोदरा (Vadodara, Gujarat) के फुटपाथों पर गरीब बच्चों (underprivileged children) को पढ़ाने का काम कर रही डॉक्टर जुइन दत्ता (Juin Dutta) ने अपनी इस मुहिम को नाम दिया है ‘पाठशाला’ (Pathshala)। फिलहाल वो एक और मुहिम से जुड़ी हैं और वो है ऐसे गरीब बच्चों को हॉस्टल की सुविधा (hostel facility to underprivileged children) देना। ताकि ये बच्चे एक जगह रहकर अच्छे तरीके से पढ़ाई कर सकें और देश की तरक्की में अपनी भागीदारी निभा सकें। डॉक्टर जुइन फिलहाल इन बच्चों को अंग्रेजी और कम्प्यूटर की जानकारी देती हैं। साथ ही कई तरह की गतिविधियां कराती हैं ताकि इन बच्चों में पढ़ाई को लेकर रूझान बना रहे।
वडोदरा, गुजरात (Vadodara, Gujarat) की रहने वाली डॉक्टर जुइन दत्ता (Juin Dutta) ने वडोदरा से पीएचडी की पढ़ाई पूरी की है। साल 2006 से एक सामाजिक संस्था ‘स्रोतस्विनी ट्रस्ट’ (Srotoshwini Trust) से जुड़ी जुइन कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेती थी। इस वजह से वो चाहती थी कि वो समाज के उस वर्ग के लिये कुछ काम करें जो पिछड़ गया है, अशिक्षित रह गया है। यही वजह रही कि उन्होने करीब 11 सालों तक विभिन्न स्कूलों में कोआर्डिनेटर के तौर पर काम किया। इसके बाद उन्होने तय किया कि वो अब स्लम और फुटपाथ में रहने वाले बच्चों को शिक्षित करने का काम करेंगी। जिससे कि वो एक जिम्मेदार नागरिक बन सकें। इसलिए उन्होने साल 2013 में नौकरी छोड़कर स्लम और फुटपाथ में रहने वाले बच्चों को पढ़ाने का काम शुरु किया और अपनी इस मुहिम को नाम दिया ‘पाठशाला’ (Pathshala)। इस मुहिम में उनके साथ कुछ दोस्त भी शामिल हुए। जुइन ने अपने इन दोस्तों के साथ मिलकर ‘पाठशाला’ (Pathshala) की नींव रखी। आज ये प्रोजेक्ट ‘स्रोतस्विनी ट्रस्ट’ (Srotoshwini Trust) के तहत काम करता है।
डॉक्टर जुइन ने ऐसे गरीब बच्चों (underprivileged children) को पढ़ाने के लिये सबसे पहले ऐसे बच्चों को चुना जिनके माता पिता मजदूरी करते हैं। इसके बाद उन्होने साल 2014 में फुटपाथ में रहने वाले बच्चों को पढ़ाने का काम शुरू किया। तब से लेकर अब तक वो अपने साथियों के साथ रोजाना ढाई घंटे इन बच्चों को पढ़ाने का काम करती हैं। ये वो बच्चे हैं जो अब तक कुछ छोटा मोटा काम धंधा करते थे या फिर इधर उधर घूम अपना समय खराब करते थे, लेकिन आज ये बच्चे फुटपाथ में पढ़कर बेसिक शिक्षा हासिल कर रहे हैं। इस वक्त डॉक्टर जुइन बडोदरा में दो फुटपाथ स्कूल (footpath school in Vadodara) चला रही हैं इसके अलावा एक स्कूल स्लम में चल रहा है। डॉक्टर जुइन बताती हैं कि पिछले साल बडोदरा पुलिस ने ऐसे गरीब बच्चों (underprivileged children) को शिक्षित करने के लिए एक प्रोजेक्ट शुरू किया था। जिसमें उन्होंने ऐसे बच्चों को शिक्षित करने का काम ‘पाठशाला’ को सौंपा था। साथ ही पढ़ाई के लिये उनको जगह भी उपलब्ध कराई थी। करीब 10 महीने तक ये काम काफी अच्छे तरीके से चला, लेकिन उसके बाद वहां के कमिश्नर का तबादला हो गया। इस वजह से ये प्रोजेक्ट भी रूक गया। हालांकि कुछ वक्त बाद बडोदरा के महाराजा शाहजीराव यूनिवर्सिटी (Maharaja Sayajirao University) में उनको 5 कमरे इन बच्चों को पढ़ाने के मिले हैं। जहां पर हर रोज सुबह 8:15 से 11:15 तक इन बच्चों की क्लास लगती है। इस समय वहां पर करीब 100 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। इनमें से कुछ बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ने के लिये भी जाते हैं। जबकि कुछ बच्चों का दाखिला उन्होने प्राइवेट स्कूल में कराया है। इन बच्चों की पढ़ाई का सारा खर्च डॉक्टर जुइन की संस्था ‘पाठशाला’ (Pathshala) ही उठाती है।
इसके अलावा फुटपाथ पर लगने वाली ‘पाठशाला’ (Pathshala) की कक्षाओं में आने वाले बच्चे नियमित तौर पर आयें इसका खास ख्याल रखा जाता है। इसके लिये ‘पाठशाला’ से जुड़े सदस्य हर रोज स्लम में रहने वाले बच्चों के घर जाते हैं और उनको वहां पर तैयार कर अपनी कक्षा में लाने का काम करते हैं। हालांकि इन बच्चों को इस बात की छूट होती है कि पढ़ाई के बाद वो अपने रोज मर्रा के काम धंधे में लग सकते हैं। डॉक्टर जुइन ने बताया कि
हम इन बच्चों को काम करने से नहीं रोक सकते हैं, क्योंकि ये इनकी जीविका के लिए जरूरी है। इसलिए जब तक हम इनका पूरा खर्च नहीं उठा सकते, तब तक हम इन बच्चों के माता-पिता को उन्हें काम पर भेजने के लिए मना भी नहीं कर सकते हैं।
‘पाठशाला’ (Pathshala) के तहत ना सिर्फ बच्चों को पढ़ाने का काम हो रहा है बल्कि साल 2013 बडोदरा की संजय नगर स्लम कॉलोनी में एक लाइब्रेरी और एक्टिविटी सेंटर भी चल रहा है। इस काम को डॉक्टर जुइन ने ‘पाठ भवन’ का नाम दिया है। जहां पर आने वाले बच्चों को ग्रुप डिस्कशन, अंग्रेजी और कम्प्यूटर की शिक्षा दी जाती है। यहां पर 35 से 40 छात्र हर रोज आते हैं। ये वो बच्चे हैं जो स्कूल जाने के अलावा यहां पर किताबों को पढ़ने और एक्टिविटी करने के लिए आते हैं। डॉक्टर जुइन आगे बताती हैं कि
इस लाइब्रेरी और एक्टिविटी सेंटर को खोलने के पीछे हमारा उद्धेश्य है कि इन बच्चों को स्कूली शिक्षा के अलावा कम्प्यूटर और दूसरी गतिविधियां सीखाई जा सके, क्योंकि ये बच्चे गरीब घरों से आते हैं और इनके घर में पढ़ाई का माहौल नहीं होता है। इस कारण इनकी अंग्रेजी और दूसरे विषय कमजोर रह जाते हैं।
‘पाठशाला’ (Pathshala) मुहिम के तहत जरूरत पड़ने पर बच्चों को हॉस्टल की सुविधा भी दी जाती है। इसके लिए उन्होने एक किराये का मकान लिया है। यहां पर रहने वाले सभी बच्चे प्राइवेट स्कूल में पढ़ने के लिए जाते हैं, लेकिन इन बच्चों की संख्या गिनती में है। इन बच्चों को पढ़ाने के लिए हॉस्टल में एक टीचर भी आती है। डॉक्टर जुइन कहती हैं कि
हम तब तक इन बच्चों का सारा खर्च खुद उठायेंगे जब तक कि वो अपने पैरों पर खुद खड़े ना हो जायें। साथ ही हमारी ये भी कोशिश है कि हमें कहीं से आर्थिक मदद मिल जाये जिससे हम ऐसे ही और जरूरतमंद बच्चों को ये सुविधा दे सकें।
अब डॉक्टर जुइन और उनकी टीम की योजना है कि वो ऐसे सौ गरीब बच्चों को हॉस्टल की सुविधा दें। इसके लिये बडोदरा से करीब 20 किलोमीटर दूर लसुन्दरा गांव (Lasundra village) में इन लोगों ने जमीन खरीदी है। जहां पर भवन बनाने के लिए इनको फंड की सख्त जरूरत है। यही वजह है कि इसके लिये उन्होने क्राउड फंडिंग प्लेटफॉर्म ‘इम्पेक्ट गुरू’ के जरिये लोगों से मदद की अपील की है। अगर कोई भी व्यक्ति या संगठन डॉक्टर जुइन के इस काम में मदद करना चाहता है तो वो वेबसाइट पर जाकर उनकी आर्थिक मदद कर सकता है।