पर्वतीय राज्य उत्तराखंड की बीजेपी सरकार कुमाऊं क्षेत्र के रामनगर से कालागढ़ होकर गढ़वाल क्षेत्र के कोटद्वार को जोड़ने वाले कंडी मार्ग के निर्माण को लेकर गंभीर नज़र आ रही है. लोगों में एक बार फिर उम्मीद जगी है कि बरसों से पर्यावरण के नाम पर कुछ पर्यावरणविदों के कानूनी दाव-पेंच में उलझी ये मांग अब साकार हो पायेगी. ये विडंबना है कि हिमालयी राज्य उत्तराखंड के विकास का एक बड़ा हिस्सा दुनिया के पर्यावरण को बचाने या फिर वन कानूनों के नाम पर अवरुद्ध कर दिया जाता है. कुछ ऐसा ही कुमायूं और गढ़वाल को बिना यूपी में जाये एक दूसरे से जोड़ने वाले कंडी मार्ग के साथ भी हुआ.
राज्य गठन के बाद से ही कुमाऊं और गढ़वाल मण्डलों को जोड़ने वाली रामनगर कोटद्वार रोड को बनाने की मांग पुरजोर तरीके से होने लगी थी. प्रदेश की अब तक की सभी सरकारों ने कंडी रोड के निर्माण को लेकर अपनी दिलचस्पी दिखाई. राज्य के हर चुनाव में यह मुद्दा पार्टियों के घोषणा पत्रों में नजर भी आया. लेकिन कार्बेट पार्क की सीमा से होकर आने वाली यह सड़क आम जनता के इस्तेमाल में नहीं आ पायी. सरकार की शुरुआती कोशिशें सफल हो पाती कि इससे पहले अप्रैल 2001 में कुछ व्यक्तियों और संस्थाओं ने सुप्रीम कोर्ट में सड़क निर्माण पर रोक लगाने संबंधी याचिका दायर कर दी. 9 अप्रैल 2001 को कोर्ट ने कटान के साथ ही सड़क निर्माण पर भी रोक लगा दी. सुप्रीम कोर्ट के स्थगन आदेश से तमाम स्थानीय लोग न सिर्फ मायूस हुए बल्कि उन्होंने सड़क निर्माण के लिये आंदोलन हेतु एक समिति का गठन भी किया. दिलचस्प यह है कि उस दौरान कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इस सड़क का विरोध करते हुए प्रधानमंत्री को पत्र लिखे तो सूबे में कांग्रेस की तत्कालीन एनडी तिवारी सरकार भी हक्की-बक्की रह गई थी.
भारतीय वन्य जीव बोर्ड की स्थायी समिति ने इस सड़क को कार्बेट पार्क से बाहर यूपी की सीमा में होते हुए बनाने का सुझाव दिया. यह भी प्रस्ताव था कि सड़क यूपी का ही भूभाग रहेगा लेकिन इसका रखरखाव उत्तराखण्ड करेगा. लेकिन यूपी सरकार से सामंजस्य स्थापित न होने के कारण सड़क निर्माण पर सहमति नहीं बन पायी. बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने ही इसे अपने चुनावी घोषणा पत्रों में जगह दी. लेकिन सड़क निर्माण में आड़े आ रहे कानूनी पेंचों और यूपी, उत्तराखण्ड और केंद्र की सरकारों के बीच संतुलन के अभाव में कंडी रोड मात्र चुनावी वादे तक ही सिमट कर रह गयी. 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद दोनों राज्यों में प्रचंड बहुमत के साथ बीजेपी के काबिज होने और केंद्र में भी बीजेपी सरकार होने से अब जनता को कंडी मांर्ग के बनने और आम यातायात के लिये खुलने की उम्मीद बंधी है. उत्तराखण्ड के सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपनी पहली प्रेस वार्ता में ही कंडी मार्ग के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया. वन मंत्री और कोटद्वार के विधायक हरक सिंह रावत ने भी पीडब्ल्यूडी और वन विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक कर उनको इस बाबत आवश्यक निर्देश दिए. लेकिन जानकारों का कहना है यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित होने और कार्बेट पार्क की सीमा के अंदर होने के कारण कई कानूनी पेंचों में फंसा हुआ है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट से स्टे भी मिल चुका है. ऐसे में सरकार अगर इस सड़क के निर्माण की कार्यवाही प्रारंभ करती है तो उसे पहले सुप्रीम कोर्ट की सेंट्रल इम्पावर्ड कमेटी से आदेश लाना पड़ेगा.
गौरतलब है कि ब्रिटिशकाल में आम लोग नेपाल की सीमा से लगे बनबसा और टनकपुर से हरिद्वार तक आवागमन के लिए इसी कंडी मार्ग का उपयोग करते थे. लेकिन वन विभाग ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए इसे आम यातायात के लिए बंद कर दिया था. पुराने लोग बताते हैं कि एक दौर में व्यापार, शिक्षा और रोजगार के साथ ही तीर्थयात्राओं के लिए भी इसी मार्ग का उपयोग किया जाता था. वन कानूनों और वन्यजीव सुरक्षा का मामला सामने आने पर इस सड़क को एलीवेटेड रोड बनाने का प्रस्ताव भी दिया गया था। जिसमें रामनगर के लालढांग से कोटद्वार तक 20 किमी का फ्लाईओवर ब्रिज यानी एलिवेटेड बनाने का प्रस्ताव दिया गया था। जिसके पीछे तर्क था कि पार्क सीमा से गुजरने के बावजूद इससे वन्य जीवों का दखल नहीं पड़ेगा। लेकिन इसे बनाने में काफी मोटे बजट की आवश्यकता होने के अलावा कड़े वन कानूनों के कारण यह प्रस्ताव भी परवान नहीं चढ़ सका। जानकारों का मत है कि कॉर्बेट पार्क के दक्षिणी हिस्से पर इस सड़क को बनाने के लिए ज़रूरी भूभाग को डिनोटिफिकेशन करके पार्क की सीमा से हटा दिया जाना चाहिए. मानवीय जरूरतों को ध्यान में रखते हुए ऐसा कई पार्कों में किया जा चुका है.