nti-news-understanding-suicidal-tendency

सुसाइड को जज करने से पहले उसकी टेंडेंसी समझे

(मेघा सरीन, मनोचिकित्सक )

अगर हिम्मत नहीं थी तो मरने क्यूं आया?”
“अगर इतनी ही हिम्मत है तो मर क्यूं रहा है?”

इन दो पंक्तियों में एक गूढ़ विमर्श छुपा हुआ है। हमारे समाज में आत्महत्या को लेकर जितने विचार नहीं है उससे ज़्यादा भ्रांतियां है। हम लोग इस विषय पर बोलने को आतुर हैं, पर समझने को अग्रसर नहीं। जीवन में सभी को कभी न कभी ये ख्याल आता है कि आखिर इस ज़िंदगी का मतलब क्या है? क्यूं जी रहा हूं मैं? ज़िंदगी बेज़ार लगती है और मौत आसान रास्ता। पर हम में ज़्यादातर लोग इस रास्ते को अख्तियार नहीं करते, शायद मौत का डर या शायद ज़िंदगी का मोह, शायद घरवालों की चिंता या शायद दुनिया का ख़याल, बहुत से कारण होते हैं कि पांव ठिठक जाते हैं।

हमारे समाज की बड़ी अजीब विडंबना है, हम लोगों को उनके फैसलों के लिए जज करते हैं। खासतौर पर उनके लिए जिनके आत्महत्या का प्रयास विफल हो जाता है। सुसाइड किसी के मन की कमज़ोरी है या जुझारूपन की कमी ये निश्चित करने का अधिकार किसी को भी नहीं। “मेरे सामने भी तो आई थी ये समस्या लेकिन मैंने तो आत्महत्या नहीं की”, ये वो बेहूदा वक्तव्य है जो टूटे हुए इंसान को और तोड़ने का काम करता है।

जीवन की आशा जिसमें खो गयी हो, उस पर सवाल उठाकर आप सिर्फ उसको और नीचे ही गिरा सकते हैं। सुसाइड का तो आधार ही ये है कि जब इंसान को जीने का कोई रास्ता नहीं दिखता (हालांकि रास्ते होते हैं)। ज़रूरी नहीं कि आत्महत्या सोच समझ के की जाए, कई बार ये तैश में आकर या क्षणिक असंतुलन का भी परिणाम होता है, पर ऐसा भी नहीं कि आत्महत्या मूर्खता है। किसी के लिए उसका जूता खो जाना भी बहुत बड़ा दुःख है, निर्भर करता है व्यक्ति की मनोवृत्ति क्या है।

समस्या तो ये भी है कि हमारे समाज में मनोरोगी को पागल और मनोचिकित्सक को पागलों का डॉक्टर मान लिया जाता है। तो अगर आपको समस्या भी है तो आप बताएंगे नहीं और बताएंगे नहीं तो आपकी कुंठा आपको अन्दर ही अन्दर खा जाएगी। फिर जो आत्महत्या करने जाएगा वो महज एक खोखला शरीर होगा।

आत्महत्या करने वाला व्यक्ति वास्तव में अपनी अस्मिता को खो चुका होता है या अपने अस्तित्व से संघर्ष कर रहा होता है। अपनी काया को नष्ट करने का एक अभिप्राय ये भी है कि हम अपनी काया को अपना अस्तित्व मानकर बैठे है। मैं यहां आत्मा-परमात्मा के विषय में बात नहीं कर रहा बल्कि उस सच की और इशारा कर रहा हूं जो कई सालो पहले Sartre ने कहा था- “हम स्वयं को को चेतना के रूप में देखते हैं और दुसरे हमें काया के रूप में।”

आशय ये है कि जब हम आत्महत्या करने जा रहे हैं तो हम अपने अस्तित्व को भुला बैठे हैं। हमें दिखती है तो बस एक काया। सुसाइड को जज करने से पहले उसे समझने की ज़रुरत है। हम सब को सहारा चाहिए अपना, दूसरो का, कम से कम भगवान का। जब व्यक्ति आत्महत्या के लिए प्रेरित होता है तो वास्तव में वो अपना ही सहारा नहीं बन पाता और इसलिए सुसाइड हर समय एक नया विमर्श खड़ा कर देता है- सुसाइड करना क्या वास्तव में इंसान के अपने शरीर पर हक को प्रमाणित करता है? या वास्तव में ये वो पल है जब मानव अपने आप पर ही हक खो बैठता है। प्रश्न विकट है, इस पर बात करने की ज़रूरत है आरोप लगाने या विवाद करने की नहीं।

 

About न्यूज़ ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया

News Trust of India न्यूज़ ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया

Leave a Reply

Your email address will not be published.

ăn dặm kiểu NhậtResponsive WordPress Themenhà cấp 4 nông thônthời trang trẻ emgiày cao gótshop giày nữdownload wordpress pluginsmẫu biệt thự đẹpepichouseáo sơ mi nữhouse beautiful