nti-news-rape-cases-india-why

हैवानियत की घटनाओं के बाद ही बदलेगा समाज?

(दीपा धामी )

सवाल ये है कि क्या समाज में बदलाव के लिए किसी लड़की के साथ हैवानियत होना जरूरी है? क्या ऐसी वारदातों के बाद ही हम महिलाओं के अधिकारों और उनकी सुरक्षा के प्रति जागरूक होंगे? आखिर हमारी न्यायिक व्यवस्था, उस बलात्कार के बारे में कब जागेगी, जो घरों के भीतर होते आए हैं?

आईपीसी की धारा 375, बलात्कार के बारे में है. इसमें एक बात से छूट है. जिन शादीशुदा महिलाओं का उनके पति बलात्कार करते हैं, उन्हें कानूनी सुरक्षा नहीं हासिल है. क्योंकि आईपीसी में शादीशुदा रिश्ते में जबरदस्ती सेक्स करने को बलात्कार नहीं माना जाता. इस छूट का इतिहास काफी पुराना है. हमने ये बात अंग्रेजों की परंपरा से उठाई है और आज तक उसे ढो रहे हैं. सत्रहवीं सदी के ब्रिटिश जज सर मैथ्यू हेल ने कहा था, ‘किसी पति को अपनी पत्नी के साथ जबरदस्ती करने पर बलात्कारी नहीं कहा जा सकता. शादी करने पर कोई भी महिला अपने पति को अपने साथ जिस्मानी संबंध बनाने की इजाजत देती है. इससे वो मुकर नहीं सकती’.

इसी तरह उन्नीसवीं सदी के ब्रिटिश कानूनविद् लॉर्ड हेल्सबरी ने भी कहा था कि, ‘किसी भी आदमी को अपनी पत्नी से बलात्कार का मुजरिम नहीं कहा जा सकता. शादी के बाद कोई महिला अपने पति के साथ हमबिस्तर होने को रजामंदी देती है. ये बात शादी का अटूट हिस्सा है’. भारत में जुर्म के कानून यानी दंड संहिता बनाने वाले लॉर्ड मैकाले ने बलात्कार के जुर्म के लिए सजा का प्रावधान, 1860 के आईपीसी की धारा 359 और 360 में किया था. इसमें भी वैवाहिक बलात्कार को किसी सजा से छूट दी गई थी. इस मामले में सजा का सिर्फ एक आधार था, वो था रजामंदी की उम्र. पहले के कानून के मुताबिक इसके लिए लड़की की उम्र दस साल होनी चाहिए थी. आज ये उम्र पंद्रह साल है. लेकिन अब उम्र की पाबंदी का कोई मतलब नहीं. अगर किसी पति को अपनी पत्नी से जबरदस्ती की इजाजत है, तो ये उस महिला के मानवाधिकार के खिलाफ है.

About न्यूज़ ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया

News Trust of India न्यूज़ ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया

Leave a Reply

Your email address will not be published.

ăn dặm kiểu NhậtResponsive WordPress Themenhà cấp 4 nông thônthời trang trẻ emgiày cao gótshop giày nữdownload wordpress pluginsmẫu biệt thự đẹpepichouseáo sơ mi nữhouse beautiful