nti-news-uttarakhand-women-living-in-cowshed

माहवारी के दौरान गौशाला में रहने को मजबूर है महिलाये

(बबिता शाह लोहानी )

अरे तुमने अचार क्यों छू लिया ?, तब तक किचन के आसपास भी न फटकना… तो तब तक स्कूल जाना बंद कर दो… कैसी लड़की हो तुम दुकान पर पैड लेने चली गई… तुम घर में सबके सामने ‘ऐसी बातें’ कर लेती हो…। और न जाने क्या क्या… युवतियों को अपने मासिक दिनों में ऐसा बहुत कुछ सुनने को मिलता है, शहरों में कुछ स्थितियां बदली हैं लेकिन ग्रामीण और खासकर कुछ इलाकों में माहवारी के दिन आज भी महिलाएं अपवित्र मानी जाती हैं।

माहवारी को लेकर अभी भी लोगों में अंधविश्वास भरा हुआ है। ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो अभी भी महीने के उन दिनों में महिलाओं को अछूत मानते हैं। ऐसा ही हाल उत्तराखंड के कुछ गाँवों की महिलाओं का था। उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र के पिथौरागढ़ और बागेश्वर ज़िले के कई गाँवों में महावारी के दौरान महिलाओं की स्थिति बहुत दयनीय हो जाती है।

रजस्वला महिलाओं को यहां 5 से 7 दिन गायों के बाड़े में सोना पड़ता है और ये महिलाएं अलग प्लेट में खाना खाती हैं। माहवारी के दौरान वे किसी को छू नहीं सकतीं। पहली बार माहवारी होने पर लड़कियां अपने परिवार के किसी पुरुष को देख भी नहीं सकतीं। वहां ऐसा माना जाता है कि अगर किसी रजस्वला महिला ने किसी दूसरी महिला या पुरुष को छू लिया या उसे खाना दे दिया तो वह बीमार पड़ जाएगा।

सिर्फ यही नहीं, यहां महिलाओं को नदी का पानी छूने की भी आज़ादी नहीं है। इन दिनों में नदी से पानी निकालने के लिए भी महिलाएं दूसरों की मदद लेती हैं। माहवारी के पहले तीन दिन वे नहा नहीं सकतीं। वो किसी धार्मिक समारोह में शामिल नहीं हो सकतीं और मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकतीं। कुछ महिलाएं तो छठे दिन अपने ऊपर गौमूत्र छिड़कती हैं, ताकि उनका शुद्धिकरण हो सके। यहां की महिलाएं हर महीने इस तरह के मानसिक शोषण से गुजरती थीं, जब तक बृंदा नागार्जन ने इन महिलाओं को इस मानसिक स्थिति से बाहर निकालने का जिम्मा नहीं उठाया था।

शुरुआती दिनों में वह एक गाँव में रुकीं और यहां उन्हें जिस सच्चाई के बारे में पता चला वह उनके लिए व्यथित करने वाली थी। उन्होंने देखा कि ज़्यादातर गाँवों में माहवारी को समाज में सिर्फ अंधविश्वासों से जोड़कर देखा जा रहा है। महिलाएं इससे जुड़े कई नियम और परंपराओं पर विश्वास करती हैं जो कहीं न कहीं उनकी सेहत के साथ उनके मानिसक विकास में भी बाधा की तरह काम करते हैं।

इन गाँवों के लोगों का विश्वास है कि माहवारी के दौरान महिलाओं को कई तरह की परंपराओं का पालन करना होता है। अगर वो ऐसा नहीं करेंगी तो पूरे गाँव को भगवान को गुस्सा आ जाएगा और उन पर किसी जंगली जानवर का हमला या कोई प्राकृतिक आपदा आ सकती है। बृंदा ने देखा कि गाँव की महिलाओं के पास सैनिटरी नैपकिन तक नहीं होते हैं। वे आज भी इस दौरान कपड़े का इस्तेमाल करती हैं।

 

About न्यूज़ ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया

News Trust of India न्यूज़ ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया

Leave a Reply

Your email address will not be published.

ăn dặm kiểu NhậtResponsive WordPress Themenhà cấp 4 nông thônthời trang trẻ emgiày cao gótshop giày nữdownload wordpress pluginsmẫu biệt thự đẹpepichouseáo sơ mi nữhouse beautiful