इसके बाद अगर देखा जाए तो हरीश टीम को तोड़कर बीजेपी में चुनाव से पहले आलाकमान के बहुत नजदीक हुए विजय बहुगुणा भी शपथ ग्रहण के तुरंत बाद से उत्तराखंड की खबरों से गायब हैं। ऐसे कई नाम हैं जो इस सरकार में गुमनामी के अंधेरे में हैं। नरेंद्र नगर से मंत्री सुबोध उनियाल हों या रेखा आर्य, यशपाल हों या दूसरे नेता।
चर्चा तो ये भी है कि बहुगुणा के साथ कई विधायक पार्टी आलाकमान से भी मिले हैं। हालांकि, ये मुलाकात क्यों और कब हुई इस बात की जानकारी थोड़ी धुंधली है। कहा जा रहा है कि कई मंत्री सीएम के इस फैसले से भी दुखी हैं कि उन्होंने लगभग 40 महत्वपूर्ण मंत्रालय खुद अपने पास रखे हुए हैं जबकि जिन्होंने पूर्व की कई सरकारों में दमदार मंत्रालय चलाये हैं उनके हाथों में हल्के-फुल्के विभाग देने से भी नाराजगी बढ़ी है। निशंक हों या भगत कोश्यारी, अजय टम्टा हों या बीसी खंडूड़ी सभी सरकार के होते हुए भी नदारद हैं।
इसके साथ ही प्रदेश बीजेपी के जितने भी अध्यक्ष और दूसरे नेता हैं वो भी शांत बैठे हैं। कई बीजेपी नेताओं से बात करने पर वो ऑन वर्जन तो कुछ कहते नहीं, लेकिन इतना जरूर कह रहे हैं कि जैसा सोचा और पांच साल इंतजार किया वैसा कुछ हुआ नहीं। अब इन सब का सार अगर निकाला जाए तो ऐसा लगता है कि जल्द प्रदेश में कुछ नया देखने को मिल सकता है।