लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच ने मीट बैन की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि यह लोगों की फूड हेबिट और लाईफ स्टाईल से जुड़ा हुआ मामला है। हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार बिल्कुल अवैध बूचड़खानों को बंद करें लेकिन पूरी तरह से मीट पर बैन नहीं लगाया जा सकता। लखनऊ बैंच ने कहा कि संविधान में आर्टिकल 21 के तहत लोगों को जिन्दगी जिने और उनकी पसंद के खान-पान का अधिकार देता है।
लखनऊ बैंच ने बकरे मीट के एक व्यपारी की याचिका पर सुनवाई पर करते हुए कहा कि “यह लोगों की आजीविका, खान-पान और रोजगार से जुड़ा मामला है, इसे पूरी तरह से बंद नहीं किया जा सकता।” लखीमपुर खेरी नगर परिषद के रहने वाले इस मीट व्यपारी ने अपनी याचिका में कहा था कि वह बकरे के मीट का व्यपारी है और बार-बार अपील करने के बावजूद उसका लायसेंस रिन्यू नहीं किया जा रहा है। लाइसेंस रिन्यू नहीं होने से मीट व्यपारी पर जीविका गहरा संकट छा गया है और उसका घर चलाना मुश्किल हो गया है। यह भी
मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति अमरेश्वर प्रताप साही और न्यायमूर्ति संजय हरकौली की खंडपीठ ने कहा कि “पुरानी सरकार की असफलता को ढाल बनाकर मौजूदा सरकार अपनी मनमानी से काम नहीं कर सकती”। कोर्ट का यह फैसला ऐसे समय में आया है जब योगी सरकार सिलसिलेवार तरीके से अवैध बूचड़खानों पर ताले बंदी कर रही है।
क्या कहता है संविधान का आर्टिकल 21
“अनुच्छेद 21 के अंतर्गत “जीवन” का अर्थ मात्र एक “जीव के अस्तित्व” से कहीं अधिक है। इसमें मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार और वे सब पहलू जो जीवन को “अर्थपूर्ण, पूर्ण और जीने योग्य” बनाते हैं, शामिल हैं। इसके बाद की न्यायिक व्याख्याओं ने अनुच्छेद 21 के अंदर अनेक अधिकारों को शामिल करते हुए इसकी सीमा का विस्तार किया है जिनमें शामिल हैं आजीविका, स्वच्छ पर्यावरण, अच्छा स्वास्थ्य, अदालतों में त्वरित सुनवाई और कैद में मानवीय व्यवहार से संबंधित अधिकार शामिल है।”