उत्तराखंड के गठन के समय से ही ये परिपाटी बन गई थी कि मुख्यमंत्री तक पहुंचने के लिए एक ख़ास दरवाज़ा बना दिया जाए और इस दरवाज़े पर बैठा दिया जाए अपना ख़ास अधिकारी. नारायण दत्त तिवारी से लेकर हरीश रावत तक सभी मुख्यमंत्रियों के पसंदीदा अधिकारी सत्ता की अलग धुरी बने रहे हैं. बेहद ईमानदार छवि के राजनेता रहे लेफ़्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) भुवन चंद्र खंडूड़ी के कार्यकाल में प्रभात कुमार सारंगी ने तो ऐसी धुनें बजाईं कि विधायकों, मंत्रियों तक को मुख्यमंत्री से मिलने के लिए सारंगी की इजाज़त लेनी पड़ती थी. ये सारंगी का ही कमाल था कि सबसे अच्छी छवि के बावजूद खंडूड़ी को आधे कार्यकाल में ही कुर्सी गंवानी पड़ी थी.
लेकिन जनसेवा के नाम पर कुर्सी संभालने वाले नेता कुछ ही समय बाद राजा बन जाते हैं और वही करते हैं जो मन में आता है और वही देखते-सुनते हैं जो मन भाता है. जैसा कि उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने एक बार कहा था कि जो राजा सही लगने वाले लोगों को पुरस्कार और गलत लगने वालों को दंड नहीं दे सकता वह राजा नहीं है. तो उत्तराखंड नए राज के नए राजा ने भी अच्छे-बुरे की परिभाषा को ताक़ पर रखकर अपने चहेते अफ़सर की ताकत बढ़ा दी है.
बीते सोमवार को विभागों में फेरबदल के नाम पर मुख्यमंत्री के अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश के विभाग बढ़ा दिए गए हैं. उन्हें लोक निर्माण और राज्य संपत्ति का भी अपर मुख्य सचिव बना दिया गया है. मुख्यमंत्री के पास मौजूद 40 विभागों का काम भी एक तरह से ओमप्रकाश ही देख रहे हैं. इन विभागों में स्वास्थ्य जैसा महत्वपूर्ण विभाग भी है जिसकी राज्य बेहद ख़राब हालत है और कम से कम इस विभाग को तो एक सक्रिय और ज़िम्मेदार मंत्री मिलना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ है.
ख़ास बात ये है कि ओनिडा अग्निकांड में ओमप्रकाश के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट का नोटिस जारी होने के बाद ये उम्मीद जताई जा रही थी कि ओमप्रकाश के पर कतरे जा सकते हैं लेकिन इसके ठीक विपरीत मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उन्हें और शक्तिशाली बना दिया. जबकि इसी मामले में नोटिस जारी होने के बाद देहरादून के एसएसपी की रेस में आगे माने जा रहे केवल खुराना का पत्ता काटकर सोमवार को ही निवेदिता कुकरेती को राजधानी का एसएसपी बना दिया गया. इसका अर्थ क्या ये नहीं निकाला जाएगा कि ढेंचा बीज घोटाले के समय तत्कालीन कृषि मंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और तत्कालीन कृषि सचिव ओमप्रकाश के बीच कुछ ऐसी समझ विकसित हुई है जिसमें किसी की भी परवाह न करना तय हो गया है, भले ही वह हाईकोर्ट क्यों न हो.
ओनिडा फ़ैक्ट्री अग्निकांड
नैनीताल हाईकोर्ट ने साल 2012 में हरिद्वार में ओनिडा कंपनी में हुए अग्निकांड में 11 लोगों की मौत के मामले की सीबीआई जांच की मांग को लेकर दायर याचिका पर राज्य सरकार, सचिव ओमप्रकाश, आईपीएस केवल खुराना एसएचओ रवींद्र डंडरियाल और सीबीआई को नोटिस भेज कर तीन सप्ताह में जवाब मांगा है. याचिकाकर्ता रवींद्र कुमार ने हाइकोर्ट से इस मामले की सीबीआई जांच की मांग करते हुए याचिका दायर की है. उनके इकलौते बेटे भी इस अग्निकांड में मौत हो गई थी. रवींद्र कुमार का आरोप है कि पुलिस शुरू से ही इस मामले में ओनिडा के मालिक और प्रबंधक को बचाने का प्रयास कर रही थी. उनका ये भी आरोप है कि मामले में बड़े लोगों के आरोपी होने के चलते पुलिस इसकी जांच में ढिलाई बरत रही है.
फरवरी 2012 में हरिद्वार स्थित ओनिडा कंपनी की फैक्ट्री में भीषण अग्निकांड हुआ जिसमें 11 लोग जिंदा जल गए थे. ओमप्रकाश उस वक्त प्रमुख सचिव, गृह थे. जांच में फैक्ट्री प्रबंधन की भारी लापरवाही सामने आई. पता चला कि फैक्ट्री में न तो अग्निशमन के कोई इंतजाम थे और न ही अग्निशमन विभाग से एनओसी ली गई थी. शुरुआती जांच पड़ताल के बाद पुलिस ने मजबूत साक्ष्यों के आधार पर जब फैक्ट्री के मालिक मीरचंदानी के खिलाफ गैरइरादतन हत्या का मुकदमा दर्ज किया तो गृह विभाग के स्तर से मामले में हस्तक्षेप किया गया. पुलिस मीरचंदानी की गिरफ्तारी कर चुकी थी लेकिन मुकदमा दर्ज करने का आदेश देने वाले हरिद्वार के तत्कालीन एसएसपी के तबादले से लेकर जांच अधिकारी तक को बदल दिया गया. इसके बाद मुकदमे से फैक्ट्री प्रबंधन का नाम निकाल दिया गया.
इस मामले में प्रमुख सचिव ओमप्रकाश के अलावा आईपीएस अधिकारी केवल खुराना की भूमिका पर भी सवाल उठे. बतौर प्रभारी डीआईजी उन्होंने ही पुलिस की जांच को ठंडे बस्ते में डाला था. अभी तक इस सब को लेकर कोई भी मुंह खोलने को तैयार नहीं था. लेकिन इस अग्निकांड में अपना इकलौता बेटा खोने वाले एक व्यक्ति की याचिका के बाद यह प्रकरण फिर जीवित हो उठा है. हाईकोर्ट ने सरकार तथा सीबीसीआईडी के साथ ही इन दो अफसरों को भी नोटिस भेजा है. पीड़ित परिवार सीबीआई जांच की मांग कर रहा है.