कानपुर। नदियां हमारे जीवन-विकास का आधार हैं, जलस्रोत हैं, जलीय जीव-जन्तु का आधार हैं। नदियों के माध्यम से प्रकृति अत्यंत जीवंत प्रतीत होती है। स्वच्छ निर्मल नदियां जब बहती हैं, तो उसकी सुन्दरता देखते ही बनती है। लेकिन आज नदियों की जो दशा है, उसे देखकर किसी का भी दुःखी होना स्वाभाविक है। आज हालात यह बन गए हैं कि नदियां अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जद्दोजहद कर रही हैं। सैकड़ों साल से 5 जिलों के किसानों और इंसानों का गला तर कर रही पांडु नदी का 20 करोड़ लीटर जल ब्लैक वाटर में तब्दील हो गया है। लोगों की मानें में इस नदी में कई दर्जन फैक्ट्रियों का केमिकल बहाया जा रहा है। इसके चलते इंसान तो दूर इस नदी के जल को पक्षु भी मुंह नहीं लगते।
पांडु नदी फर्रुखाबाद से 120 किमी का सफर प्रारम्भ कर पांच जिलों से गुजरती हुई फ़तेहपुर में गंगा नदी से मिलकर अपना अस्तित्व समाप्त कर देती है। माना यह जाता है कि इसका जन्म गंगा से ही है। पांडु नदी फर्रुखाबाद, कन्नौज, कानपुर देहात, कानपुर नगर तथा फतेहपुर जनपदों के गांवों के हज़ारों एकड़ ज़मीन को सिंचाई का साधन उपलब्ध कराने में मददगार साबित होती रही है लेकिन इसे संरक्षित करने का जो प्रयास किये जाने चाहिए थे नहीं किये गए। कल्याणपुर ब्लॉक के पनकापुर गांव के लोगों का कहना है कि पांच साल पहले इस नदी पर फैक्ट्रियों का केमिकल गिरना शुरू हुआ जो आज भी जारी। गांव के देवीप्रसाद कहते हैं कि नदी का जल सफेद होने के बजाय बिलकुल काला है। पिछले साल गांव एक दर्जन भैसों ने इसका पानी पी लिया और कुछ ही मिनटों में उनकी मौत हो गई।
कारखानों के कचरे ने बिगाड़ा हाजमा
कानपुर नगर में प्रवेश करने के बाद नदी एक बड़े गन्दे नाले में तब्दील हो गई। लगभग 6 हज़ार से ज्यादा छोटे-बड़े कल-कारखानों का औद्योगिक कचरा तमाम नालों के जरिए पांडु नदी में डाला जाने लगा। पनकी थर्मल पावर प्लांट की गर्म फ्लाई एश भी पांडु नदी में डाली जा रही है। मालूम हो कि पनकी पावर प्लांट की ‘फ्लाई एश’ प्रतिदिन लगभग 40 टन निकलती है। नदी के पानी में ‘गर्म फ्लाई एश’ के गिरने से जहां नदी में प्रदूषण को सन्तुलित करने वाले जीव-जन्तु ख़त्म हो रहे हैं वहीं नदी कि गहराई भी दिनोंदिन कम हो रही है। नदी में सीओडी नाला के जरिए घरों का कचरा सीधे गिराया जा रहा है।
नदी की धारा कई मीटर सिकुड़ी
नदी को अतिक्रमण कारियों ने ज़बरदस्त क्षति पहुंचाई है यही वजह है कि कई स्थानों पर नदी का स्वरूप एक नाले जैसा हो गया है जब भी औसत से अधिक बारिश होती है नदी का पानी कई गांवों में भर जाता है। मेहरबान सिंह का पुरवा के पास बर्रा, जरौली में पांडु नदी के तट तक अवैध कब्जे हैं। भूमाफिया ने अवैध रूप से नदी के डूब क्षेत्र को मिट्टी और राख से पाटकर धारा
से तीन-चार मीटर दूर तक बाउंड्री बना ली है। प्लाटिंग करने के साथ ही धड़ल्ले से मकान भी बनवा रहे हैं। मेहरबान सिंह का पुरवा के निकट नदी के किनारे तमाम लोग पक्के मकानों में रह रहे हैं। अवैध निर्माण से नदी की धारा कई मीटर सिकुड़ गई है।
नदी बन गई नाला
पनकी पावर हाउस की राख, रावतपुर से निकला रफाका नाला, दादा नगर, गोविंद नगर, बर्रा होते हुए इसी नदी में मिल रहे हैं। नदी का आकार और पानी का रंग देखकर यह किसी बड़े नाले जैसी दिखती है। साउथ सिटी के सभी बड़े नाले, सीओडी नाला, मुंशीपुरवा, बाबूपुरवा, किदवई नगर, यशोदानगर, पशुपति नगर, मछरिया, धोबिनपुलिया, बंबा, हंसपुरम,
गल्ला मंडी होते हुए बिनगवां में इसी नदी में गिर रहे हैं। समाजसेवी राजेंद्र खरे कहते हैं कि पांडु नदह जैसे ही कानपुर की सरहद पर दस्तक देती है वैसे ही उस पर अतिक्रमण शुरू कर दिया जाता है। अगर राज्य सरकार जल्द ही कोई ठोस निर्णय नहीं लेती तो यह नदी कुछ समय बाद गुम हो जाएगी।