पिथौरागढ़। बागेश्वर और पिथौरागढ़ जिलों की सीमा पर धरमधर क्षेत्र के महरूड़ी गांव में बने कस्तूरी मृग अनुसंधान केंद्र को वहां से हटाकर नैनीताल भेजे जाने के विरोध में इलाके के लोग लामबंद हो रहे हैं. सरकार इस केंद्र को दुर्लभ जीवन का हवाला देकर नैनीताल स्थानान्तरित करना चाहती है. जबकि स्थानीय लोग इस केंद्र को अपनी पहचान और रोजी रोटी का ज़रिया बताते हुए सरकार के फैसले का विरोध कर रहे हैं. धरमघर से लेकर बेरीनाग, चौकोड़ी और पांखू समेत आधा दर्जन गांवों के लोगों ने इसके खिलाफ बड़े आंदोलन का एलान किया है. इस केंद्र के लिये अपनी ज़मीन देने वाले स्थानीय लोग इसे चिड़ियाघर में तब्दील करने की मांग मानने की बजाय वन विभाग को सौंप कर नैनीताल भेजे जाने की कवायद से बेहद आक्रोशित हैं.
दुर्लभ प्रजाति में शामिल कस्तूरी मृग के इस प्रजनन केंद्र में फिलहाल 20 मृग हैं. 1972 में केंद्रीय आयुर्वेदिक विज्ञान अनुसंधान परिषद ने कस्तूरी मृग अनुसंधान केंद्र खोलने का प्रस्ताव रखा तो यहां के गांव वालों ने खुशी-खुशी इसके लिए अपनी 20 नाली भूमि दान में दे दी. आज यह केंद्र 40 नाली भूमि पर फैला हुआ है. सरकार अब वर्षों बाद प्रजनन बाधित होने से कस्तूरी मृगों की संख्या नहीं बढ़ पाने को आधार बना कर इसे नैनीताल स्थानांतरित करने की कवायद कर रही है. केंद्र पर सालाना करीब 25 लाख रुपये खर्च हो रहे हैं. फिलहाल यहां एक प्रभारी समेत 13 कर्मचारी 20 कस्तूरी मृगों की देखभाल के लिए कार्यरत हैं. इस केंद्र को 2004 में वन विभाग को हस्तांतरित करने की पहल हुई थी लेकिन आदेश नहीं होने के चलते कार्यवाही आगे नहीं बढ़ सकी. पिछले 12 वर्षों से समय -समय पर इसके हस्तांतरण प्रक्रिया की खबर आती-जाती रही है. इसका नुकसान यह हुआ कि इन कस्तूरी मृगों से कस्तूरी नहीं निकाली जा सकी जिससे सरकार को लाखों का नुकसान उठाना पड़ रहा है. इस समय कस्तूरी का बाजार भाव करीब 80 हजार रुपया प्रति ग्राम है. नर मृग से मिलने वाली कस्तूरी का इस्तेमाल इत्र और मिर्गी, दमा, हिस्टीरिया, निमोनिया, दिल की बीमारी जैसी दर्जनों बीमारियों की दवाएं बनाने में किया जाता है. एक मृग से पांच ग्राम कस्तूरी तीन वर्ष में एक बार निकलती है. इस तरह से अब तक चार बार से अधिक कस्तूरी निकाली जा सकती थी. लेकिन स्थानांतरण और हस्तांतरण के खेल में यह प्रक्रिया भी बाधित होती रही है. हस्तांतरण पर तो लोगों को कोई आपत्ति नहीं रही, लेकिन स्थानांतरण की खबर से वे गुस्से में हैं. रेड बुक में शामिल कस्तूरी मृग इन दिनों स्थानीय जनता और सरकार के बीच विवाद की वजह बना हुआ है.
स्थानीय लोगों का कहना है कि कस्तूरी मृग केंद्र के कारण आए दिन जिस तरह देश-विदेश से यहां पर्यटक आते हैं उसने उनके लिये छोटे स्तर पर ही सही रोजगार के मौके खोले हैं. कई परिवार घर चलाने लायक रोजी-रोटी जुटा लेते हैं. यही वजह है कि स्थानीय लोग इस केंद्र के विस्तार के लिए अब भी अपनी जमीन देने को तैयार हैं. कई विशेषज्ञों का मानना है कि कस्तूरी मृग के लिए महरुड़ी की जलवायु अनुकूल है, वरना इन मृगों की संख्या 20 तक नहीं पहुंच पाती. उनका कहना है कि नैनीताल में इस तरह की जलवायु शायद ही मिल पाए. फिर भी अगर इस केंद्र को जबर्दस्ती स्थानांतरित किया गया तो लोग आंदोलन की चेतावनी दे रहे हैं.
इस वक्त पूरे देश में पांच कस्तूरी मृग केंद्र हैं. हिमालय क्षेत्र में कस्तूरी मृग की सैबेरिया कस्तूरी, जंगली कस्तूरी, काला कस्तूरी जैसी विशेष प्रजातियां पायी जाती हैं. इंटरनेशनल यूनियन ऑफ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेज ने इसे रेड डाटा बुक में शामिल किया है. भारत सरकार के इंडियन वाइल्ड लाइफ बोर्ड ने कस्तूरी मृग को उन 13 वन्य प्राणियों में शामिल किया है जिनकी नस्ल धीरे-धीरे खत्म हो रही है. कस्तूरी मृग अपनी बेशकीमती सुगंधित कस्तूरी की वजह से तस्करों के निशाने पर रहे हैं. इसी को देखते हुए भारत सरकार ने वन्य जंतु संरक्षण अधिनियम के तहत इसके शिकार पर रोक लगाई है. इंडियन वाइल्ड लाइफ बोर्ड 1952 ने साफ तौर पर चेतावनी दी है कि यदि कस्तूरी मृग के बचाव के लिए जल्द इंतजाम नहीं किया गया तो यह सुंदर और सुगंधित प्राणी देश और धरती से विलुप्त हो जाएगा.