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गैंगरेप पीड़िता कैसे बनी बेसहारा महिलाओ की रहनुमा

मीडिया में आए दिन बलात्कार की घटनाओं को दिखाया जाता है। इन सभी कहानियों में कहीं न कहीं पीड़ितों के ऊपर ही उँगली उठाई जाती है और उन्हें ही नीचा दिखाया जाता है।
बलात्कारी से एक भी सवाल नहीं किये जाते परन्तु इसकी शिकार महिलाओं को कठिन सवालों के घेरे में लेकर उलटे उन्हीं पर आरोप लगा दिए जाते हैं। भारत में बलात्कार की शिकार महिलाओं को इस कलंक के साथ ताउम्र गुजारना पड़ता है, यह एक बड़ी विडंबना है।

बलात्कार की शिकार महिलाओं को फिर से अपना जीवन शुरू करना बेहद ही मुश्किल भरा होता है। कोई भी बलात्कार की शिकार महिला के साथ किसी तरह से भी जुड़ना पसंद नहीं करता, फिर से उसके जीवन को संवारना तो दूर की बात है। यहाँ न्याय मिलना तो मुश्किल है ही साथ ही साथ कलंक का दर्द बढ़ता जाता है और इससे उनकी जिंदगी नर्क के समान हो जाती है। सुनीता कृष्णन एक ऐसी शख्सियत हैं जिसने पीड़ितों के पुनर्वास के लिए कड़ी मेहनत की।

सुनीता कृष्णन जो खुद इसकी पीड़िता हैं और इसलिए बलात्कार की शिकार महिलाओं की दुर्दशा को अच्छे से समझ पाती हैं। सुनीता जब 15 वर्ष की थीं तब आठ आदमियों द्वारा उनका गैंग-रेप हुआ था। सुनीता इन सब को काफी पीछे छोड़ आयी हैं और वे रेप की शिकार महिलाओं को राहत और पुनर्वास प्रदान करती हैं। प्रत्यक्ष रूप से वे अपने शब्दों में गुस्सा भरकर कहती हैं कि न्यायतंत्र ज्यादा कुछ नहीं करती, मिडिया असवेंदनशील होती है। समाज भी उनके लिए, जिनके साथ यह घटना होती है, उदासीन हो जाता है।

सुनीता का जन्म बैंगलोर के एक मलयाली परिवार में हुआ। उनके पिता सर्वेयर थे और इस वजह से उन्हें देश के हर जगह पर घूमने के मौके मिले। वे बचपन से ही सामाजिक कामों से जुड़ी हुई हैं। उनके माता-पिता उनके इस काम में भरपूर सहयोग देते हैं। बलात्कार की इस घटना ने उनकी पूरी जिंदगी ही बदल डाली। शिकार होने और कलंक का सामना करने के बावजूद सुनीता अपनी अंतरात्मा की ताकत से इन सब से उबर पायी और तभी “प्रज्वला फाउंडेशन” का जन्म हुआ।

सुनीता का प्रज्वला केंद्र न केवल एक घर है बल्कि आशा है उन मानव-तस्करी की शिकार तमाम महिलाओं और लड़कियों की, जो अपने लिए पुनर्वास के लिए सहारा ढूंढ़ रही हैं। 1996 में अपने भाई जोस वेटिकटील के साथ मिलकर प्रज्वला ने यह शुरुआत की। उन्होंने हैदराबाद में सबसे पहले एक वेश्यालय को स्कूल में तब्दील कर सेक्स वर्कर के बच्चों के लिए पढ़ने की सुविधा उपलब्ध कराई। उन्हें बहुत डराया और धमकाया गया और एक बार तो उन पर हमला किया गया जिससे उनका बायां कान क्षति ग्रस्त हो गया। इन सब के बावजूद उन्होंने अपना काम जारी रखा और 8000 लड़कियों का पुनर्वास किया।

आज प्रज्वला में 200 कर्मचारी काम करते हैं परन्तु सुनीता पूरा समय स्वयं सेवक के रूप में काम करती हैं। वर्क-शॉप आयोजित कर और लिख कर वे अपने आप को अनुप्रेरित बनाये रखती हैं। वे अपने पति के साथ मिलकर फ़िल्में भी को-प्रोड्यूस करती हैं। उनकी फ़िल्में जो, सेक्स-गुलामी पर थी, सराही गई और वकालत के लिए एक उदाहरण बनी।

सुनीता की लड़ाई अभी पूरी नहीं हुई और वे अपने रास्ते में आए हर चुनौती के लिए तैयार हैं। सुनीता ने अभी पांच रेपिस्ट को सजा दिलाने के लिए शेम द रेपिस्ट मुहिम चलाई हैं। वे उग्र और मुखर बात कहने के लिए जानी जाती हैं। वे एक सक्रिय वक्ता हैं और बहुत सारे राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करने वाली महिला हैं। सुनीता कृष्णन को समाज सेवा के क्षेत्र में उनकी अथक कोशिशों के लिए 2016 में देश के चौथे सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया है।

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