प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को लागू हुए एक साल से अधिक समय बीत गया है और अब इसकी खामियां भी उजागर होने लगी हैं। यह योजना पिछले साल जनवरी में शुरू की गई थी। मॉनसून के रुझान का फसल बीमा के निर्धारण पर असर पड़ता है। यही वजह है कि निजी बीमा कंपनियां जोखिम को कवर करने के लिए बेहद सतर्क रुख अपना रही हैं जो एंटी सेलेक्शन के सिद्घांत यानी जोखिम तय होने के बाद बीमा खरीदने के चलन पर आधारित है।
इस योजना के तहत खरीफ मौसम के लिए पंजीकरण करने की अंतिम तारीख 31 जुलाई के आसपास होती है जब मॉनसून का रुझान साफ हो चुका है। ऐसे में अगर इस साल कमजोर मॉनसून का पूर्वानुमान रहता है तो बीमा कंपनियों को भारी दावों का सामना करना पड़ सकता है। खासकर पुनर्बीमा कंपनियां इन दावों का समर्थन करने को तैयार नहीं हैं।
नैशनल इंश्यारेंस कंपनी के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक सनत कुमार ने कहा, ‘जोखिम के बारे में पता होने के बाद हम जोखिम उठाने को तैयार नहीं हैं। हम चाहते हैं कि पंजीकरण के लिए बहुत कम समय दिया जाए ताकि हम पर इसका असर न पड़े। हमने अपनी इस राय से राज्य और केंद्र सरकारों को अवगत करा दिया है।’
नोटबंदी के कारण पिछले साल नवंबर-दिसंबर में वित्तीय सेवाओं पर पड़े प्रभाव को देखते हुए सरकार ने 2016-17 की रबी फसल के लिए बीमा योजना में पंजीकरण की समयसीमा 31 दिसंबर, 2016 से बढ़ाकर 10 जनवरी, 2017 कर दी थी। अलबत्ता तब तक दक्षिण भारत में सूखे की स्थिति स्पष्टï हो चुकी थी। बीमा कंपनियों के मुताबिक विस्तार अवधि के दौरान करीब दो-तिहाई प्रीमियम जमा हुआ। अब आलम यह है कि तमिलनाडु जैसे राज्यो में दावों का अनुपात 300 फीसदी से अधिक रहने की संभावना है। इसे देखते हुए पुनर्बीमा कंपनियों ने कट ऑफ तिथि के बाद मिले दावों का भुगतान करने का विरोध किया है।
आईसीआईसीआई लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस के प्रमुख (दावे) संजय दत्ता ने कहा, ‘फसल बीमा में बहुत जोखिम है। यह बीमा कवर का सबसे अप्रत्याशित रूप है और इसके व्यापक प्रभाव हैं। बीमा कंपनियां एंटी सेलेक्शन से चिंतित है। यह गंभीर बीमारी का पता लगने के बाद बीमा कवर लेने जैसा है। पुनर्बीमा कंपनियां इसे किसी तरह स्वीकार नहीं करती हैं। हमने विभिन्न स्तरों पर इस मामले को उठाया है।’
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत मौसम की मार के कारण बुआई की विफलता के मामले में बीमा कंपनी को कुल बीमित राशि के 25 फीसदी का भुगतान करना पडेगा। जब सामान्य से कम मॉनसून का अनुमान रहता है तो बीमा कंपनियां सूखे की संभावना वाले इलाकों में बीमा कवर देने से कतराती हैं। पिछले खरीफ सत्र में महाराष्टï्र से करीब 4000 करोड़ रुपये का प्रीमियम जमा हुआ था जबकि दावे के लिए 2000 करोड़ रुपये के लिए किए गए थे। यानी पिछला साल बीमा कंपनियों के लिए अच्छा रहा। सूत्रों की माने इस साल कमजोर मॉनसून के पूर्वानुमान के चलते कई निजी बीमा कंपनियां ने महाराष्टï्र से किनारा कर लिया है।