पिछले दिनों तमिलनाडु से दिल्ली आये 170 सूखा पीड़ित किसानो ने जंतर-मंतर पर उनके आत्महत्या कर चुके किसान साथियो के नर कंकालों के साथ अनिश्चितकालीन हड़ताल पर थे। मुद्दा था प्रति एकड़ मिलने वाली सूखा राहत की राशि का अपर्याप्त होना। वहीं नव निर्वाचित उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने अपने चुनाव घोषणा पत्र के तहत प्रदेश के किसानों के लिए एक लाख तक की कर्ज़माफी का ऐलान किया है। इसका फायदा तक़रीबन 94 लाख छोटे और सीमांत किसानों को मिलेगा। इस तरह की कर्ज़माफी कई राज्यों द्वारा की जाती रही है, इसी तर्ज़ पर 2007 में UPA की सरकार ने भी किसानों के साठ हजार करोड़ के कर्ज़ माफ़ करने का ऐलान किया था।
पिछले कुछ सालों में कर्ज़माफी का मुद्दा एक चुनावी मुद्दा भी बनता जा रहा है। जहां पूर्व में तमिलनाडु में AIADMK की सरकार बनने पर चुनावी घोषणा के तहत कुल 5780 करोड़ की कर्जमाफ़ी की गई थी, वहीं पंजाब के विधान सभा चुनाव में पहले भी इस तरह की घोषणाएं की गयी। उत्तर प्रदेश में कर्ज़माफ़ी के बाद अब महाराष्ट्र में भी यह सवाल तूल पकड़ता जा रहा है। ऐसे में एक बुनियादी सवाल है कि कर्ज़माफी कहां तक जायज़ है? हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस तरह की कर्जमाफ़ी से किसानों को राहत मिलती है पर क्या इससे बेहतर विकल्प भी मौजूद हैं?
जहां तक कर्ज माफ़ी के आर्थिक पहलू का सवाल है, तो RBI के गवर्नर ने इसे देश की मौद्रिक नीति के लिए सही नहीं माना है। उनका कहना है कि इससे लोगों में कर्ज अदायगी न करने के आदतों को बढ़ावा मिलता है। उत्तर प्रदेश सरकार के उन किसानो में जिनके कर्ज़ माफ़ किए गए हैं, 7 लाख ऐसे किसान शामिल हैं जिनके कर्ज को बैंको ने गैर निष्पादक आस्तियों (non performing assets) की सूची में शामिल कर रखा था। ऐसे में ये सवाल लाज़मी है कि क्या ये किसी अनुचित व्यवहार को बढ़ावा तो नहीं दे रहा है?
केवल कर्ज़माफी किसानों की समस्याओं का समाधान नहीं है, बल्कि इसके लिए एक वृहत कार्य योजना लागू करनी होगी। इनमें भी कई मुद्दों पर खासा ध्यान देने की ज़रूरत है। जहां तक खाद्य पदार्थो के न्यूनतम समर्थन मूल्य का प्रश्न है तो पिछले दिनों आलू के किसानों को मंडी में उचित मूल्य नहीं मिल पाया, वहीं उड़ीसा के टमाटर के किसान को भी यही हाल था। ऐसे में सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य की नीति को व्यापक करना होगा साथ ही किसान उत्पादों में वायदा कारोबार (फॉरवर्ड ट्रेडिंग) करना होगा। गन्ना किसानों के लिए राहत की बात ये है कि उत्तर प्रदेश सरकार की घोषणा के तहत किसान को उसकी पैदावार के पैसे का भुगतान 14 दिन के अंदर करना होगा। जबकि 2014 -15 और 2015 -16 के बकायों का भुगतान अगले दो महीनो के भीतर कर दिया जायेगा। यह एक सराहनीय कदम होगा पर ज़रूरत है कि इसे ग़म्भीरतापूर्वक लागू किया जाए।
कुछ बुनियादी समस्याओं की बात करें तो सिंचाई के लिए नदी जोड़ों परियोजना पर अभी भी सरकार किसी ठोस रणनीति को लागू नहीं कर पाई है। 2017 के पूर्वानुमान में मानसून के सामान्य से निम्न रहने की आशंका है, वहीं देश के प्रमुख बांधो में पानी का स्तर काफ़ी नीचे है जो चिंन्ता का विषय है। वहीं हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्र जहां किसान सिंचाई के लिए नलकूपों (ट्यूबवेल) का प्रयोग करते है वहां भूजलस्तर (groundwater level) में काफ़ी कमी आई है।
ऐसे में सरकार को चाहिए कि वो मौजूदा और आने वाली समस्याओं से निपटने के लिए एक पूर्ववर्ती कार्ययोजना का खाका तैयार कर ले। नहीं तो यही वो बुनियादी समस्याएं हैं जिनके कारण किसान कर्ज के दुष्चक्र में फंसते चले जाते हैं। इसके अलावा अन्य मुद्दे जैसे उन्नत बीज, मिट्टी की गुणवत्ता की जांच, ड्रिप सिंचाई तकनीक, कृषि आधारभूत संरचना, बीटी फसलों से जुड़े मुद्दे पर भी अभी काफी काम किया जाना बाकी है। ऐसे में कर्ज़माफी किसानों के लिए एक तत्काल राहत का विकल्प हो सकती है पर किसानों की बुनियादी समस्याओं का निदान ही एक तार्किक विकल्प है।