जब नरेंद्र मोदी प्रधान मंत्री बने थे तब देश भर में यह आशंका थी कि अब भाजपा हिन्दुत्व का अपना एजेंडा थोपेगी, लेकिन नरेंद्र मोदी ने हिन्दुत्व से जुड़े मसलों पर ज्यादा तब्बजुह नहीं दी और अप्रत्यक्ष रूप से हिन्दुत्व की बात करते रहे, तो लगा था कि बात आई गई हो गई लेकिन जैसे ही योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्य मंत्री बनाया गया तो अब वे तमाम बातें हो रहीं हैं जिनका कि डर था.
जाहिर है भाजपा इस खुश या गलत फहमी में है कि उसे उत्तर प्रदेश में वोट हिन्दुत्व के चलते मिले हैं. आदित्यनाथ तो धड़ल्ले से मंदिर, बीफ और वंदे मातरम का राग अलाप रहे हैं पर साध्वी उमा भारती की बैचेनी के अपने अलग माने हैं जो एक महीने से भी कम वक्त में 2 दफा यह कह चुकी हैं कि वे राम मंदिर के लिए जान देने और फांसी चढ़ने को भी तैयार हैं.
बकौल उमा चूंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है इसलिए वे इस विषय पर ज्यादा नहीं बोलेंगी. अब इससे ज्यादा और बोलने को तो यही बचता है कि चलो अयोध्या और फाबड़े गेंती उठाकर मंदिर की नींव खोदना शुरू कर दो, आगे जो होगा सो आडवाणी जी देखेंगे. धर्म के नाम पर मार काट मचे, हिंसा हो, बैर फैले जैसी बातें उमा के लिए कतई चिंता की नहीं जो 24 साल पहले दहाड़ती रहतीं थीं कि एक धक्का और दो, बाबरी मस्जिद तोड़ दो.
दरअसल में भाजपा के अंदर उमा भारती की हैसियत दोयम दर्जे की हो चली है, लेकिन आदित्यनाथ की ताजपोशी के बाद उन्हें मध्य प्रदेश के सीएम पद का सपना दोबारा दिख रहा है. इस गफलत के चलते भाजपा का नया शेप वे नहीं देख पा रहीं हैं कि वह भगवा कांग्रेस बन चुकी है, जिसका मकसद जैसे भी हो जनता को उलझाए रखना है. इस नए रूप में भाजपा एक मुंह से विकास की तो दूसरे मुंह से हिन्दुत्व की बात कर रही है और 2019 तक यह सिलसिला जारी रहेगा. ऐसे में उमा का मंदिर राग उसे तकलीफ देह ही साबित हो रहा है.
फ्री हेंड आदित्यनाथ को दिया गया है और उमा समझ रहीं हैं कि पूरी संत बिरादरी को यह डिस्काउंट मिला हुआ है. बार बार मंदिर के लिए फांसी चढ़ने की बात वे कहती हैं तो कोई चिड़िया भी चूं नहीं करती, उलट इसके आदित्यनाथ के मवेशी भी सुर्खियां बन जाते हैं. जाहिर है वे अपनी तुलना अपने से जूनियर आदित्यनाथ से करने की बीमारी का शिकार हो चली हैं जो एक तरह की हीनता ही है. राम मंदिर निर्माण अब महज शिगूफा बन कर रह गया है, आम लोगों की दिलचस्पी उसमें नहीं रही है, इसलिए इसे अब अभियान भाजपा नहीं बनाएगी लेकिन बात जरूर करती रहेगी.
उमा का बीच में टांग फसाना भाजपाइयों को रास नहीं आ रहा है, जिनकी हालत घर की शादी में अपनी अहमियत रीति रिवाजों और रस्मों की जानकार होने की बिना पर यह जताने की रह गई है कि नहीं पहले माता पूजन होगा फिर मंडप डलेगा. बैचेनी और उग्र तात्कालिक प्रतिक्रिया देना उमा की 2 पुरानी कमजोरियां हैं, जिन्हें अब राम के अलावा कुछ नहीं दिख रहा तो उनकी मंशा से कोई इत्तफाक भी नहीं रख रहा. बच्चों जैसे पैर पटककर एक हद से ज्यादा वे ध्यान अपनी तरफ खींच पाएंगी ऐसा लग नहीं रहा. इस पर भी तकलीफ यह कि इन दिनों मोदी से भी बड़े नायक बने आदित्यनाथ उनके नाम का जिक्र तक नहीं करते.