नोएडाः नोएडा अथॉरिटी के चेयरमैन के रमा रमण को मौजूदा प्रदेश सरकार ने वेटिंग में डाल दिया है। उत्तर प्रदेश की सत्ता में भाजपा सरकार आने के बाद माना जा रहा था कि देरसबेर ऐसा हो सकता है। गुरुवार को प्रदेश के 20 सीनियर आईएएस अफसरों की
तबादलों की सूची जारी हुई, जिसमें रमा रमण पर ये फैसला लिया गया। प्रतीक्षा सूची में डाले जाने से अब उनकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं, क्योंकि उनके कार्यकाल के दौरान नोएडा प्राधिकरण में बड़ी गड़बड़ियां और नियुक्ति संबंधी विवाद हुए बल्कि कोर्ट में भी एक दर्जन से
बड़े मामले जा पहुंचे। इन सभी में रमा रमण भी एक पार्टी हैं। मौजूदा राज्य सरकार यादव सिंह मामले की सुनवाई में तेजी लाने की बात कह चुकी है, ऐसा करने से रमा रमण की दिक्कतें और बढेंगी ही। फिर इलाहाबाद हार्इकोर्ट में दर्जनभर ऐसे मामले चल रहे हैं, जहां प्राधिकरण और उसके चेयरमैन के रूप में उनकी भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। ज्यादातर मामले नियमों को ताक पर रखकर भूमि आवंटन के हैं। कहा जा सकता है कि पूर्व प्रदेश सरकार के प्रिय आर्इएएस अफसरों में शुमार होने वाले रमा रमण के लिए दिन अब वैसे नहीं रहने वाले। आइए बताते हैं कि किन मामलों ने बढाई हैं उनकी मुश्किलें और क्यों हुआ उनका ये हाल।
एमएमआर और एनकेजी मामला
स्पोर्ट्स सिटी बनाने के लिए एमएमआर और एनकेजी इंफ्रस्ट्रक्चर को जमीन दी गर्इ थी। जब यादव सिंह प्रकरण में इन दोनों कंपनियों का नाम सामने आया तो सीबीआर्इ ने इनके खिलाफ जांच शुरू की। फिर इस प्रोजेक्ट को दोनों कंपनियों को देने को लेकर जनहित याचिका डाली गर्इ। कोर्ट ने इस पर जवाब मांगा था। इस मामले में रमा रमण को पार्टी बनाया गया है। जिसकी सुनवाई कोर्ट में लगातार चल रही है।
बड़े अधिकारी के रिश्तेदार को दी गर्इ जमीन
प्राधिकरण के एसीर्इओ के रिश्तेदार की कंपनी को जमीन अलाट की की गर्इ जबकि ये कंपनी मानकों पर खरा नहीं उतरती थी। ताज्जुब की बात ये है कि इस छोटी कंपनी को बड़े उद्योग घरानों और मीडिया हाउसों के मुकाबले तरजीह दी गर्इ। पहले ये मामला हाईकोर्ट में था और
अब सुप्रीम कोर्ट में। इस मामले में भी आर्इएएस अफसर रमा रमण को पार्टी बनाया गया है।
एनपीसीएल मामला भी रमा रमण के खिलाफ
नोएडा में बिजली बनाने वाली कंपनी एनपीसीएल को 35 हजार वर्ग मीटर जमीन गलत तरीके से दी गर्इ। जमीन देने पीछे दलील दी गर्इ कि यह जनहित के लिए दी गर्इ है। इसके लिए जमीन के रेट 40 फीसदी तक कम कर दिए गए। जबकि सच्चार्इ ये है कि 25 साल पहले ये कंपनी नोएडा में आर्इ थी। तीन से पांच वर्षों में कंपनी को पॉवर प्लांट लगा लेना था। लेकिन ऐसा अब तक नहीं हो सका है। करार का उल्लंघन होने के बाद भी प्राधिकरण की ओर से कोर्इ कार्रवार्इ नहीं की गर्इ। बावजूद इसके कंपनी को सस्ते में फिर जमीन दी गर्इ। ये मामला हार्इकोर्ट में चल रहा है।
करीब एक दर्जन चल रहे हैं केस
इसी तरह प्राधिकरण के एक दर्जन मामलों की सुनवाई हार्इकोर्ट में चल रही हैं। इन सभी में रमा रमण पार्टी हैं। आने वाले समय में उनकी लगता नहीं कि खत्म होंगी। वह समाजवादी पार्टी के नेतृत्व वाली पूर्व प्रदेश सरकार के सबसे चहेते आर्इएएस अफसरों में एक थे। तमाम
आरोपों, विवादों और मुकदमों के बावजूद वह पिछले छह – सात सालों से नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेस-वे प्राधिकरण के चेयरमैन बने हुए थे। हाईकोर्ट के हस्तरक्षेप के बाद उन्हें सिर्फ नोएडा प्राधिकरण का चेयरमैन बनाया गया था।