दिल्ली समेत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के उत्तराखंड आंदोलनकारी छले गए हैं। उनको छलने वाले कोई बाहरी नहीं बल्कि उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत हैं जिन्होंने चुनाव से ठीक पहले दिल्ली में आंदोलनकारियों के चिन्हीकरण के लिए समिति तो बना दी लेकिन बाकी कार्यवाही पूरी नहीं की, जिससे मामला जहां का तहां है।
उत्तराखंड की पूर्ववर्ती हरीश रावत सरकार ने 90 के दशक में हुए उत्तराखंड राज्य आंदोलन के आंदोलनकारियों की पहचान के लिए अक्टूबर 2016 में दिल्ली में एसडीएम अनुराग आर्य को तैनात किया था। इसके अलावा 10 सदस्यीय आंदोलनकारी चिन्हीकरण समिति बनाई गई थी। इस समिति में उत्तराखंड जनता संघर्ष मोर्चा से देवसिंह रावत, उत्तराखंड राज्य लोकमंच से बृजमोहन उप्रेती, उत्तराखण्ड जनमोर्चा से रवीन्द्र बिष्ट, उत्तराखंड महासभा से अनिल पंत, उत्तराखंड क्रांति दल से प्रताप शाही, उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति से मनमोहन शाह के साथ ही समाजसेवी के तौर पर बीना बिष्ट, नंदन सिंह रावत व खुशहाल सिंह बिष्ट रखे गए। पत्रकारों की ओर से हरीश लखेड़ा को शामिल किया गया था।
समिति का गठन करते हुए कहा गया था कि दिल्ली को एक जिला मान कर चिन्हीकरण का काम आगे बढाया जाएगा। दिल्ली में डीएम स्तर के अफसर को तैनात करके आंदोलनकारियों को दिल्ली में ही प्रमाण पत्र मिल जाएंगे। क्योंकि एक जीओ के अनुसार डीएम को अपने विवेक से आंदोलनकारी मान लेने का अधिकार दिया गया था लेकिन रावत सरकार का यह कदम चुनावी लाभ के लिए ही था। एक तो डीएम स्तर के अफसर को तैनात नहीं किया गया । दूसरा पुराने जीओ को समय पर फिर से जारी नहीं किया गया। जो समिति गठित की गई थी उसका भी नोटिफिकेशन नहीं किया गया।
इस समिति में दिल्ली से उत्तरांचल आंदोलन संघर्ष समिति यानी भाजपा के एक भी नेता को शामिल नहीं किया गया, जबकि पत्रकार हरीश लखेड़ा लगातार कहते रहे कि भाजपा की आंदोलन में सक्रिय भागीदारी रही है और जगदीश ममगांई, हरीश अवस्थी ( अब आप में शामिल) या पीसी नैनवाल किसी में से भी एक को शामिल किया जाना चाहिए लेकिन किया नहीं गया। उत्तराखंड राज्य लोकमंच से बृजमोहन उप्रेती जो कि दिल्ली प्रदेश कांग्रेस पर्वतीय सेल के चेयरमैन भी हैं वे एक भी बैठक में नहीं आए।
समिति ने लगभग 350 लोगों के नाम तय किए। उत्तराखंड में चुनाव नतीजे आने से पहले यह काम कर लिया गया था। दिल्ली में डीएम स्तर का अफसर नहीं होने से एसडीएम अनुराग आर्य को चिन्हित आंदोलनकारियों के नाम उत्तराखंड में संबंधित जिलों के डीएम को भेजने पड़े। अब उत्तराखंड मेें सरकार भी बदल गई है और मामला जिलों के डीएम के रहमोकरम पर निर्भर है कि उनको मानते हैं या नहीं। वे नाम डीएम के पास कब तक पड़े रहेंगे कोई कह नहीं सकता है।
इस तरह दिल्ली -एनसीआर के आंदोलनकारी भी छले गए हैं वे आहत हैं।