लखनऊ. केंद्र की नरेंद्र मोदी कैबिनेट ने बुधवार को वीवीआईपी कल्चर के खिलाफ एक बड़ा फैसला लिया है। अब सड़कों पर लालबत्ती लगी गाड़ियां फर्राटा भरती नहीं दिखेंगी। आने वाली 1 मई से अब सिर्फ 5 लोग ही यानी राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा स्पीकर ही लाल बत्ती का इस्तेमाल कर सकेंगे।
हालांकि, राज्य में यह फैसला लागू करना वहां की सरकारों पर छोड़ दिया गया है। लेकिन माना जा रहा है कि इस फैसले को अपने राज्यों में लागू करने का दबाव भाजपा शासित राज्यों पर ज्यादा रहेगा।
यहां सबसे ज्यादा लाल बत्ती वाले
इस फैसले का असर सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में दिखेगा, क्योंकि देश में सबसे ज्यादा मंत्री इसी प्रदेश से बनते हैं। मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश सरकार में 22 कैबिनेट मंत्री और 24 राज्य मंत्री हैं, जबकि योगी मंत्रिमंडल का विस्तार अभी होना है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक, कुल विधायकों की संख्या में से 15 फीसदी को ही मंत्रीपद दिया जा सकता है। उत्तर प्रदेश में विधायकों की संख्या सबसे ज्यादा 403 है। ऐसे में सबसे ज्यादा मंत्री भी इसी प्रदेश से आएंगे। इसके अलावा केंद्रीय कैबिनेट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को छोड़कर उत्तर प्रदेश के करीब दर्जन भर मंत्री शामिल हैं, जो अब तक लाल बत्ती का इस्तेमाल करते रहे हैं।
लाल बत्ती फ्लैशर के साथ
मंत्रियों के अलावा राज्यपाल राज्यपाल, मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष, विधान परिषद सभापति, उच्च न्यायालय इलाहाबाद के मुख्य न्यायमूर्ति, नेता प्रतिपक्ष,
उच्च न्यायालय इलाहाबाद के न्यायाधीशगण, लोक आयुक्त उत्तर प्रदेश फ्लैशरयुक्त लाल बत्ती लगा सकते हैं।
लाल बत्ती बिना फ्लैशर के
राज्य विधान परिषद के उप सभापति, विधानसभा के उपाध्यक्ष, प्रदेश के राज्यमंत्री एवं उप मंत्री, मुख्य सचिव, राज्य निर्वाचन आयुक्त, अध्यक्ष अल्पसंख्यक आयोग, अध्यक्ष अनुसूचित जाति एवं जन जाति आयोग, अध्यक्ष लोक सेवा आयोग एवं महाधिवक्ता उत्तर प्रदेश बिना फ्लैशरयुक्त लाल बत्ती लगा सकते हैं।
इनको मिलती है नीली बत्ती
अब तक अध्यक्ष राजस्व परिषद, औद्योगिक विकास आयुक्त, सभी प्रमुख सचिव एवं सचिव, सभी पुलिस महानिदेशक, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक को नीली बत्ती मिलती है। वहीं, मंडल स्तर पर मंडलायुक्त, क्षेत्रीय पुलिस महानिरीक्षक, परिक्षेत्रीय पुलिस उप महानिरीक्षक और जिला स्तर पर डिस्ट्रिक्ट जज एवं उनके समकक्ष न्यायिक सेवा के अधिकारीगण, जिला मजिस्ट्रेट, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक व पुलिस अधीक्षक जो जिले के प्रभारी हों, मुख्य चिकित्सा अधिकारी, अपर जिला मजिस्ट्रेट, नगर मजिस्ट्रेट, उप जिला मजिस्ट्रेट, कार्यकारी मजिस्ट्रेट, प्रभारी निरीक्षक, थानाध्यक्ष, क्षेत्राधिकारी, अपर पुलिस अधीक्षक, प्रवर्तन संबंधी ड्यूटी पर तैनात परिवहन, आबकारी, व्यापार कर विभाग के अधिकारी तथा वन विभाग के संबंधित प्रवर्तन अधिकारी नीली बत्ती लगाते रहे हैं। दिसंबर 2006 में आए हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार चीफ मेट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट, चीफ जुडीशियल मजिस्ट्रेट भी नीली बत्ती लगा सकते हैं।
इनको मिलती है पीली बत्ती
अभी तक मोटर व्हीकल एक्ट के तहत पीली बत्ती कमिश्नर इनकम टैक्स, रिवेन्यू कमिश्नर, डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक आदि लगाते हैं।
पंजाब में लाल बत्ती पूरी तरह बैन
पंजाब के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने पहली पहली ही कैबिनेट मीटिंग में लाल बत्ती के इस्तेमाल को पूरी तरह बैन करने का फैसला लिया था। फैसले के मुताबिक, राज्य का कोई भी अफसर, मंत्री या विधायक अपनी गाड़ी पर लाल बत्ती नहीं लगा सकेगा।
लाल बत्ती पर पहला केजरी ‘वार’
दिल्ली सरकार ने सबसे पहले मंत्रियों की गाड़ियों से लाल बत्ती हटवाई। साल 2014 से सिर्फ उप राज्यपाल, हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और जज ही फ्लैशर के साथ लाल बत्ती का इस्तेमाल कर सकते हैं। वहीं दिल्ली के आर्मी जनरल ऑफिसर कमांडिंग फ्लैशर के बिना लाल बत्ती का इस्तेमाल कर सकते हैं। बता दें कि सबसे पहले अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने जनता से वादा किया था कि अगर उनकी सरकार बनी तो वो लालबत्ती कल्चर खत्म कर देंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने भी दिया था आदेश
दिसंबर 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में लाल बत्ती के सीमित इस्तेमाल की पैरवी की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि लाल बत्ती की गाड़ियों का इस्तेमाल केवल संवैधानिक पदों पर बैठे और अतिविशिष्ट व्यक्ति ही कर सकते हैं। न्यायालय ने कहा कि पुलिस, एंबुलेंस और आपातकालीन सेवाओं के वाहनों को नीली बत्ती का इस्तेमाल करना चाहिए। उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा था कि राज्य सरकारें लाल बत्ती के लिए अपनी सूची को नहीं बढ़ा सकतीं।