‘कंधे पर चढ़ कर आगे निकल जाना’ सियासत में यह एक आम कहावत है। लेकिन उत्तराखंड की सियासत में तो ‘कंधो पर बैठकर आगे निकलने’ से भी नेता जी को कोई परहेज नहीं । जी हां! बात प्रदेश के नंबर दो कहे जाने वाले कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज की हो रही है। सरकार में ‘नंबर-वन’ भले ही इन दिनों रफ्तार न पकड़ने को लेकर चर्चाओं में हैं, लेकिन ‘नंबर टू’ महाराज पर्यटन मंत्री के तौर पर रंग बिरंगे सपने दिखाने और बड़ी-बड़ी घोषणाओं को लेकर सुर्खियों में है।
मुख्यमंत्री की रेस में त्रिवेंद्र सिंह रावत से मात खा चुके महाराज यूं तो तमाम चुनौतियों से घिरे हैं। लेकिन उनकी कार्यशैली से लगता है कि सरकार में वह खुद को ‘इक्कीस’ साबित करने की कोशिश में ज्यादा हैं, इसके चलते अब विवादों में भी आने लगे हैं । हाल ही में पर्यटन मंत्री के तौर पर कुछ दिन पहले वे यमुनोत्री धाम पहुंचे तो बकायदा आधा दर्जन कहारों वाली पालकी में बैठकर। आश्चर्य यह है कि महाराज का यूं इंसानी कंधो में पालकी में बैठकर सरकारी टूर पर जाना जब लोगों को अखरा तो उन्होंने कुतर्क गढ़ दिया। उन्होंने कहा कि वे पालकी की ‘टेस्टिंग’ कर रहे थे कि इसमें बैठने पर यात्रियों को कोई परेशानी तो नहीं हो रही। इसके बाद सतपाल महाराज ने घोषणा कर दी कि अगली बार से लकड़ी की जगह एल्युमिनियम की पालकी प्रयोग में लाई जाएगी। इसके पीछे उनका तर्क यह था कि एल्यूमिनियम लकड़ी से कोमल होता है, चुभता नहीं है ।
मंत्री जी यानी महाराज के इस तर्क में कितना सच झूठ है वो तो महाराज ही जानें, लेकिन अहम यह है कि प्रदेश का जो मंत्री पर्यटन को बढ़ाने की बात करता हो, ट्रैकिंग की बात करता हो, साहसिक पर्यटन की बात करता हो और सुरक्षित यात्रा का दावा करता हो, वह मंत्री किसी एक धाम तक भी पैदल न जा पाए, इससे दुर्भाग्यपूर्ण और क्या हो सकता है? पालकी में यमनोत्री पहुंचने से पहले सतपाल महाराज ने केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा व्यवस्थाओं का भी जायजा लिया। दिलचस्प यह है कि दोनों ही जगह वे उड़न खटोले पर सवार होकर ही गए। केदारनाथ पैदल मार्ग का उन्होंने हवाई निरीक्षण किया तो बदरीनाथ में हैलीपैड से ही सारी व्यवस्थाएं जांच-परख लीं। बहरहाल पर्यटन मंत्री बनने के बाद सतपाल महाराज तमाम सपने दिखा रहे हैं। इस बात में कोई दो-राय नहीं है कि वे देश दुनिया घूमे हुए हैं।
पर्यटन और तीर्थाटन की उन्हें दूसरों से ज्यादा जानकारी भी है। यही कारण भी है कि पर्यटन मंत्री बनने के बाद उन्होंने आईडियों और घोषणाओं की झडी लगा दी है। बुग्यालों को वर्ल्ड क्लास स्कीईंग रिजार्ट के रूप में तब्दील करना, ट्यूलिप गार्डन, कैरावेन कैंपस और ग्रीन पार्क की स्थापना करना, नेलांग घाटी में विदेशी पर्यटकों के लिए वाकिंग यार्ड विकसित करना, आदि-आदि। धार्मिक पर्यटन को बढ़ाने के लिए भी उन्होंने, शैव सर्किट वैष्णव सर्किट तथा शाक्त शर्किट बनाने के साथ ही चार-धाम यात्रा की तर्ज पर कुमाऊं में भी तीर्थ यात्रा शुरू करने की घोषणा की है। कुल मिलाकर मंत्री बनने के बाद वे इतनी घोषणाएं कर चुके हैं कि अगले पांच सालों में इनमें से एक चौथाई को भी यदि अमल में ला पाए तो उत्तराखंड का नजारा ही बदल जाएगा। बहरहाल सपने दिखाने और साकार कराने में फर्क है l
सपने कोई पहली बार नहीं दिखाए जा रहे, सोलह साल से उत्तराखंड सिर्फ सपने ही तो देख रहा है, लेकिन परिवर्तन के नाम पर कुछ भी नहीं हुआ।लेकिन हकीकत यह है कि आज भी हम परंपरागत पर्यटन से आगे नहीं बढ़ पाए हैं। पर्यटक स्थलों के नाम पर वही अंग्रेजों के जमाने के पर्यटक स्थल हैं। धार्मिक पर्यटन के नाम पर भी हम चार-धाम से आगे नहीं बढ पाए हैं। ऐसे में एक बार फिर सपने दिखाए जा रहे हैं, तो यकीन करना मुश्किल लगता है। वैसे भी जो उत्तराखंड की पगडंडियों पर जो सपने ‘पालकी’ में बैठकर दिखाए जा रहे हों, उनके पूरे होने पर किसे संशय नहीं होगा?
(साभार : योगेश भट्ट, वरिष्ठ पत्रकार)