लेकिन आरटीआई कार्यकर्ता दीपक जोशी द्वारा लगाया गई आरटीआई के जरिए मिली जानकारी के बाद एसडीएम की जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि 120 खेल मैदानों में 61 खेल मैदानों की भौतिक जांच की गई है, जिसमें करीब 15 से 20 खेल मैदान बने ही नहीं हैं और जो खेल मेदान रिपोर्ट में दर्शाए गए हैं वो नदी किनारे, प्राथमिक विद्यालय के मैदानों पर बने हुए दिखाये गए हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ मैदान तत्कालीन प्रधान द्वारा अपने मकान के पीछे ही कुछ भूमि को समतल कर दर्शाया दिये गये हैं। एसडीएम की जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि उनके द्वारा 61 खेल मैदानों का भौतिक सत्यापन किया है जिसमें से 25-30 मैदान कहीं भी नहीं मिले, जो मैदान बने भी हैं उनमें न चाहरदीवारी है, न समतलीकरण हुआ है काफी गड़बड़ियां हैं। शेष 59 खेल मैदान का कोई अता-पता ही नहीं है। जबकि युवा कल्याण विभाग ने आरटीआई में ये जवाब दिया है कि उनके द्वारा 120 खेल मैदान बना दिए गए हैं।

जांच अधिकारी द्वारा अपनी जांच रिपोर्ट के माध्यम से अंतिम में यह कहा गया है कि युवा कल्याण विभाग द्वारा कोई भी अभिलेख उपलब्ध नहीं कराए गए। जिसके लिए कई बार पत्राचार भी किया गया। विभाग से अभिलेख उपलब्ध नहीं होने पर यह स्पष्ट करना संम्भव नहीं है कि जो मैदान बने हैं उनकी स्थिति लागत के अनुसार तथा व्यय की गयी धनराशि के अनुसार सही है या नहीं।

वहीं, इस घोटाले में सबसे बड़ी बात ये सामने आई है कि 1 करोड़ 20 लाख रुपये को बिना माप पुस्तिका के बनाए ही निकाल दिया गया। ना ही इन खेल मैदानों का ऑडिट किया गया है और आरटीआई में मांगी गई माप पुस्तिका के बदले खेल मैदानों का एस्टीमेट दे दिया गया।
आरटीआई में जिस अधिशासी अभियंता द्वारा माप पुस्तिका बनाये जाने का नाम दिया गया है। उनका लिखित तौर पर कहा गया है कि इन खेल मैदानों का मापन उनके द्वारा नहीं किया गया है और ना ही विभाग द्वारा उन्हें कोई माप पुस्तिका उपलब्ध करायी गयी है।
अब जिला युवा कल्याण विभाग का घोटाला जिलाधिकारी मंगेश घिडिल्याल के संज्ञान में आते ही जिलाधिकारी ने कहा कि इस मामले में जांच पहले ही हो चुकी है। वास्तव में अगर इस मामले में गड़बड़ी पायी गयी है और सरकारी धन का दुरुपयोग किया गया है तो जो भी उस समय के दोषी होंगे उनके खिलाफ 15 दिन के भीतर आगे की कार्रवाई की जाएगी।
गौर हो कि जिला युवा कल्याण विभाग में कांग्रेस की हरीश रावत सरकार के समय हुआ ये इकलौता घोटाला नहीं है बल्कि इससे पहले पीआरडी जवानों के नाम से ऐसे लोगों के लिए वेतन निकाले जाने का मामला सामने आया था जो बागेश्वर दफ्तर तो क्या पूरे जनपद में ही नहीं थे। ये पूरा 13 लाख रुपयों का घोटाला था।