आगरा। प्रधानमंत्री ने गरीबों को आवास देने की योजनाएं शुरू की, तो बिल्डरों की चांदी हो गई। आगरा में गरीबों के हक के मकान बिल्डर डकार गए। आगरा विकास प्राधिकरण के जिन अधिकारियों के कंधों पर अफोर्डेबल हाउसिंग योजना को पूर्ण अमलीजामा पहनाने की
जिम्मेदारी थी उन अधिकारियों को तो बिल्डरों की ओर से किए निर्माण कार्य की जानकरी तक नहीं है। इससे ज्यादा हास्यास्पद क्या हो सकता कि एडीए के उच्च अधिकारियों को बिल्डर द्वारा चिन्हित की गई जमीन की भी जानकरी नहीं है।
शासन से मंजूरी मिलने के बाद भी कई साल बीत चुके है, लेकिन गरीब को अपने सपनों का आशियाना नही मिंल सका। उत्तर प्रदेश राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद अधिकारियों ने एक बार फिर अफोर्डेबल आवासीय योजना की सुध ली गई है। सूबे में गरीबों कों आवास मुहैयाा
कराने के लिए प्रदेश सरकार ने 2014 में अफोर्डेबल हाउसिंग नीति को लांच किया था। 2014 में लांच की गई योजना को बिल्डरों ने पलीता लगा दिया है। योजना के तहत प्रदेश सरकार से मिल रही योजना का लाभ तो बिल्डरों ने लिया, लेकिन आवास बनाने में आनाकानी कर रहे है। जबकि नियमों की ओर देखा जाए तो एक साल के अंदर निर्माण कार्य आरंभ हो जाना चाहिए था।
एडीए सचिव एस के गौड़ का कहना है कि आवासों की जरूरत को देखते हुए प्रदेश में 24 लाख आवासों के निर्माण का लक्ष्य तय किया गया था। इसी के चलते 2014 में अफोर्डेबल हाउसिंग नीति बनाई। इस नीति में बिल्डरों को कई सहूलियत दी। प्रदेश भर में 42 बिल्डरों को
अफोर्डेबल हाउसिंग के लिए चुना गया। जिसमें आगरा से भी 6 बिल्डरों को आवास बनाने के लिए स्वीकृति दी गई। आगरा के बिल्डरों में एमआर बिल्डर, गणपति बिल्डर, तुलसी इ्रंफा और राम रघु बिल्डर को आवास बनाने का जिम्मा सौंपा गया। ये हाउसिंग योजना 2 से 4 एकड़ में स्वीकृति की गई। इन प्रोजेक्ट के तहत 2100 आवासों का निर्माण किया जाना था। लेकिन, सरकारी सुविधाओं का लाभ उठाकर बिल्डरों ने इस योजना में आवासों का निर्माण नहीं किया।
योजना के मुताबिक 2017 तक 75 फीसदी काम पूर्ण हो जाना चाहिए था। लेकिन, साइटों पर पत्थर तक नहीं लग सका। आवास एवं नियोजन विभाग के सचिव ने पत्र के माध्यम से इन बिल्डरों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए है। इन आवासों में से 30 फीसदी दुर्बल आय, वहीं 60 फीसदी मकान अल्प और मध्यम वर्ग के लोगों को मुहैया कराने जाने थे ।