देहरादून। उत्तराखंड के वन विभाग में सामानों की खरीदो फरोख्त में बड़ा घपला सामने आया है। विभागीय अफसरों ने करीब एक करोड़ तीस लाख के कार्य व खरीद बिना टेंडर के किए और ज्यादातर भुगतान भी नकद कर दिया। विभाग में घोटाले का पता उनके आंतरिक आॅडिट में चला है। अब वित्त नियंत्रक ने दून वन प्रभाग में फरवरी, 15 से मार्च 2016 तक हुए इस घोटाले की रिपोर्ट मुख्य सचिव और सचिव वित्त को भेजी है।
बिना तकनीकी मंजूरी के हुआ काम
गौरतलब है कि वित्त नियंत्रक ने अपनी रिपोर्ट में इस बात पर सवाल उठाए गए हैं कि जिन कामों के लिए तकनीकी मंजूरी लेनी थी उसे बिना मंजूरी के ही काम शुरू दिया। प्रोजेक्टों के टेंडर अलग-अलग टुकड़ों में निकाले गए जिससे घोटालों को अंजाम दिया जा सके। इस तरह से टेंडर निकालने के चलते पैसों का जहां दुरूपयोग हुआ और विभाग को होने वाला फायदा भी नहीं मिला। वन विभाग के रेंज अफसरों ने अपने स्तर से ही लाखों रुपये का भुगतान तक कर दिया। बता दें कि पांच लाख रुपये से अधिक के काम कराने के लिए शासन स्तर पर टीएसी की स्वीकृति जरूरी है। थानो रेंज ने ऐसा नहीं किया और 25 लाख के निर्माण कार्यों को टुकड़ों में बांट दिया। विभाग ने कैंपा के मद में मंथन सभागार में टाइल्स लगाने पर लगभग 12 लाख रुपये खर्च कर दिया, इसमें भी टेंडर नहीं मांगे गए।
बारिश में भी आग बुझाने का काम हुआ
वित्त नियंत्रक की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि रेंजरों ने बजट ठिकाने लगाने के लिए बरसात और सर्दियों के मौसम में भी आग बुझाने के लिए 2.05 लाख रुपये के खर्च दिखाए हैं। इस मद में दून वन प्रभाग को ढाई लाख रुपये मिले थे। आपको बता दें कि फायर सीजन 15 फरवरी से 15 जून तक होता है, लेकिन रेंजरों ने सितंबर और जनवरी में प्रतिमाह 46,500 रुपये के हिसाब से वाहन किराये पर लेकर आग बुझाने का दावा किया है। आग बुझाने में इस्तेमाल किए गए वाहनों के लिए कोटेशन नहीं मांगे गए। इन वाहनों का उपयोग किसने किया, लॉगबुक में इसका जिक्र तक नहीं किया गया है।
अब अधिकारियों का कहना है कि आंतरिक ऑडिट में जो भी सवाल उठाए गए हैं, उस बारे में जवाब मांगा जाएगा। वैसे, बगैर बिल के कोषागार से बिल पास नहीं होता है।