आज सोशल मीडिया मे कोई भी बात कुछ ही घंटों मे वायरल हो जाती है, फिर चाहे सच हो या अफवाह। एक तरफ सोशल मीडिया के हजारों फायदे हैं, तो दूसरी तरफ हज़ारों नुकसान। जहां उभरते हुये साहित्यकार, कलाकार आदि इसका भरपूर फायदा उठा कर अपनी रचनाओं को पाठकों तक पहुंचा रहे हैं और नाम व पैसे दोनों कमा रहे हैं। वहीं युवाओं का एक ऐसा वर्ग भी है जो इसमे केवल अपना समय बर्बाद कर रहा है।
आजकल बहुत से लोग लड़कियों का फोटो लगा के नकली आई डी बना कर फ़ेसबुक पर पहले ग्रूप बनाते हैं और फिर वहां से डाटा बटोर कर बिज़्नेस ऑफर भेजने लगते हैं। कुल मिलाकर सोशल मीडिया के इस मकड़जाल में लोग अपना टाइम खराब करते हैं और कई बार जाने-अनजाने मे ठगी या ब्लैक मेलिंग का शिकार बन जाते हैं। कोलंबिया यूनिवर्सिटी के ग्रेजुएट स्कूल ऑ़फ जर्नलिज़्म में डिजिटल मीडिया प्रोग्राम के डीन प्रोफे़सर श्रीनिवासन का कहना है कि “ज़रूरत से ज़्यादा चीज़ें साझा न करें, सोशल मीडिया पर अपना सारा समय न लगाएं। स्मार्ट और सुरक्षित तरीके से आप सोशल मीडिया को आइडिया के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं, आपने सुबह के नाश्ते में क्या खाया जैसी मूर्खतापूर्ण चीजें पोस्ट करने या फिर गेम खेलने से कहीं आगे।”
यदि भारत में सोशल नेटवर्किंग की बात करें तो कुछ लोग सोशल कम और एंटी सोशल ज़्यादा नज़र आने लगे हैं। आजकल उत्तर भारत में सोशल मीडिया का इस्तेमाल या तो हिन्दू बनाम मुस्लिम पोस्ट दिखाने में हो रहा है या मोदी बनाम केजरीवाल के बारे में लिखने में। जबकि सोशल नेटवर्किंग का असली मतलब है अपने मित्रों सहकर्मियों और रिश्तेदारों आदि से जुड़े रहना। लेकिन लोगों ने सोशल नेटवर्किंग का दूसरा ही मतलब निकाल लिया। सोशल नेटवर्किंग पर सबसे ज़्यादा जो चीज़ शेयर की जाती है वो हैं फोटो।
फोटो शेयर करने से पहले बहुत से यूज़र एक बार भी नहीं सोचते कि फोटो रियल या फेक। फोटोशॉप्ड फोटो यानी असली फोटो से एडिट करके बनाए गए फोटो की बात करें तो लोगों ने पीएम मोदी को भी नहीं छोड़ा। गलतियां दोनों तरफ के लोगों ने की, मोदी विरोधियों ने भी और मोदी प्रशंसकों ने भी। मोदी विरोधियों ने एक फोटो को एडिट किया और उसमे दाऊद के पास बैठे व्यक्ति को हटाकर मोदी को बिठा दिया, एक अन्य फोटो में मोदी को बिकनी पहने हुई राखी सावंत के पास बैठे हुए दिखाया गया।
यदि मोदी प्रशंसकों की बात करें तो वह भी पीछे नहीं रहे। उन्होंने एक फोटो में ओबामा को वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के ज़रिए मोदी का भाषण सुनते
हुए दिखाया जबकि अलसी फोटो में ओबामा कम्प्यूटर स्क्रीन पर शेयर मार्केट देख रहे हैं उसमे मोदी का नामो निशान ही नहीं है। इसी तरह एक फोटो में लड़की की पीठ पर मोदी के चेहरे का टैटू दिखाया गया लेकिन हकीकत में लड़की की पीठ पर किसी और का ही टैटू था।
सोशल नेटवर्किंग पर फ़र्ज़ीवाड़ा करने वालों ने ओबामा और महात्मा गांधी को भी नहीं बख्शा। भारत की एक घटना पर ओबामा का ट्वीट दिखाया गया लेकिन वह ट्वीट ओबामा न होकर किसी फ़र्ज़ी ट्विटर अकाउंट का था। क्योंकि उसमे ओबामा की स्पेलिंग Obama न होकर Qbama (‘ओ’ के स्थान पर ‘क्यू’ ) थी और फोन्ट ऐसा इस्तेमाल किया गया था जिसे आसानी से न पहचाना जा सके। इसी तरह से महात्मा गांधी का भी एक फोटो देखने को मिला जिसमे उन्हें एक महिला के साथ डांस करते हुए दिखाया गया है जबकि उस फोटो में महात्मा गांधी न होकर एक ऑस्ट्रेलियन कलाकार हैं जिसने उन जैसा रूप बनाया हुआ है।
इन सारे फोटो की हकीकत तब सामने आई जब इनसे लोगों ने शिकायतें दर्ज कराई और इनकी जांच की गई। इसी प्रकार कुछ फेक नयूज़ के भी मामले देख गए और जांच करने पर पता चला कि यह अफवाह थी। जैसे अमिताभ बच्चन की मौत की खबर सोशल नेटवर्किंग पर एकदम वायरल गई, लोगों ने शेयर कमेंट लाइक सब कुछ किया। इसी तरह की घटनाएं कई हॉलीवुड सेलेब्रिटीज़ के साथ भी हुई।
प्रसिद्ध मुद्दे की बात करें तो मोदी बनाम केजरीवाल, जिसमे लोग बिना सच्चाई जाने ही मोदी और केजरीवाल के समर्थन और विरोध में फोटो और न्यूज़ आंकड़े वगैरह शेयर करते हैं जो कई बार हकीकत से बिल्कुल जुदा होते हैं। आज सोशल नेटवर्किंग पर हम जो भी कहते हैं, करते हैं वो हमारी मानसिकता का एक हिस्सा होता है।
मैने अपनी फेसबुक वाल पर एक वीडियो शेयर किया जिसमे एक बकरी एक बैल से लड़ रही है और वह तब तक लड़ती रही जब तक बैल को वहां से भगा नहीं दिया। वीडियो का एक मात्र मकसद था कि अपनी परेशानियों से तब तक लड़ते रहो जब तक कि वह हल न हो जाए। लेकिन वीडियों को देख कर एक मित्र ने कमेंट किया ‘modi vs kejriwal’। किसी भी चीज़ को हम किस नज़र से देखते हैं ये हमारी मानसिकता पर निर्भर करता है।
भारत में आकड़ों पर नजर डालें, तो लगभग 168.7 मिलियन यूजर सोशल नेटवर्किंग साइट्स का प्रयोग करते हैं। लेकिन इनमें से ज़्यादातर को यह नहीं पता है कि इन नेटवर्किंग साइट्स पर आपत्तिजनक कमेंट्स या फोटो के गलत उपयोग या फोटो के साथ छेड़-छाड़ करने पर उन्हें आईटी एक्ट सेक्शन 66 के तहत जेल भी जाना पड़ सकता है। इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी एक्ट सेक्शन 66, 2000 को 2008 में संशोधित किया गया था। आईटी एक्ट की धारा 66 (ए) के तहत वह अपराध आते है जो डिजिटल और इन्टरनेट के माध्यम से किए जाते हैं इन्हें ही साइबर क्राइम कहा जाता है।
अगर आप सोशल मीडिया साईट्स के जरिए किसी के बारे में अफवाहें फैलाते हैं, धार्मिक भावनाएं भड़काते हैं या कोई ऐसी चीज जिससे किसी को ठेस पहुंचती है, तो कड़ी कार्रवाई की जा सकती है। कोई ऐसी जानकारी जिसकी सत्यता के प्रमाण ना हो, लेकिन फिर भी उसे किसी को चिढ़ाने या परेशान करने, खतरे में डालने, बाधा डालने, अपमान करने, चोट पहुंचाने, धमकी देने, दुश्मनी पैदा करने, घृणा या दुर्भावना के मकसद से भेजा जाए तो वह अपराध की श्रेणी में आता है। इसमें दोषी पाए जाने पर 3 साल तक कैद की सजा का प्रावधान है।
इसी तरह अगर कोई शख्स इंटरनेट या फिर मोबाइल आदि के जरिए अश्लील सामग्री सर्कुलेट करता है, तो ऐसे मामले में आईटी ऐक्ट की धारा-67 के तहत केस दर्ज किए जाने का प्रावधान है। ऐसे मामले में दोषी पाए जाने पर 3 साल तक की कैद के साथ 5 लाख रुपए का जुर्माने की सज़ा हो सकती है। ये मामला गैर जमानती श्रेणी में रखा गया है।
आईटी ऐक्ट की धारा- 66 ए का दायरा काफी व्यापक है। इसका एक उदाहरण है 2013 में बाला साहब ठाकरे के निधन के कारण मुंबई बंद किए जाने को लेकर एक लड़की ने फेसबुक पर टिप्पणी की थी और दूसरी लड़की ने उसे केवल लाइक किया था, जिसके बाद दोनों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। इस कानून में एक खामी है कि कौन सा कमेंट आपत्तिजनक है या नहीं इसकी कोई परिभाषा तय नहीं की गई है। जिसके कारण यूजर को पता नहीं चल पाता है कि उन्हें सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर कैसा कमेंट करना या क्या लाइक करना चाहिए।
ऑनलाइन क्राइम का शिकार होने वाले देशों में चीन टॉप पर है। चीन के करीब 83 फीसदी इंटरनेट यूजर्स कंप्यूटर वायरस, आइडेंटिटी की चोरी, क्रेडिट कार्ड से जुड़ी धोखाधड़ी के शिकार हो जाते हैं। साइबर क्राइम का शिकार होने वाले देशों में चीन के बाद भारत और ब्राजील संयुक्त रूप से दूसरे नंबर पर हैं। इन दोनों देशों के 76 फीसदी इंटरनेट यूजर्स साइबर अपराधों का शिकार बनते हैं। तीसरे नंबर पर अमेरिका है जहां शिकार बनने वाले लोग 73 पर्सेंट हैं।