उत्तराखंड के पौढ़ी गढ़वाल जिले के श्रीनगर में पर्वतीय क्षेत्र का सबसे बड़ा राजकीय बेस अस्पताल है. वैसे तो अस्पताल में मौजूद सभी विभाग किसी तरह संचालित किए जा रहे हैं, लेकिन कैंसर विभाग की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है. यहां न तो विभाग में दवाइयां हैं और ना ही मशीनें.
गरीब मरीजों में कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के इलाज के लिए स्थापित इस विभाग की तुलना अगर गंभीर हालत में आईसीयू में पड़े मरीज से की जाए तो कोई गलत नहीं होगी.
ठीक हो रहे मरीजों की हालत फिर बिगड़ी
दरअसल, विभाग में पिछले लंबे समय से आवश्यक दवाइयां उपलब्ध नहीं होने से कुछ ठीक हुए मरीजों की स्थिति फिर खराब हो गई है. सूत्रों के अनुसार, पिछले कुछ समय में इस वजह से 5 गरीब मरीजों ने दम भी तोड़ दिया है. विभाग में आवश्यक जांचों की व्यवस्था भी न होने से मरीजों को दूसरे शहर भेजा जा रहा है. जहां गरीब मरीज परेशान हैं, वहीं अस्पताल प्रशासन की लापरवाही से विभागीय डॉक्टर भी परेशान हैं
मात्र तीन डॉक्टर ही हैं यहां
मात्र एक सीनियर और दो जूनियर डॉक्टरों के भरोसे चल रहे कैंसर विभाग में रेडिएशन ट्रीटमेंट के लिए टैलीथैरेपी और ब्रेकेथैरेपी मशीनें कई बार शासन को प्रस्ताव भेजे जाने के बावजूद नहीं आ सकी हैं. हद तो यह है कि रेडियोथैरेपी मशीन को स्थापित करने के लिए अस्पताल प्रशासन जगह तक उपलब्ध नहीं करा सका है.
विभाग में न तो कीमोथैरेपी देने के लिए आवश्यक मशीनें हैं और ना ही मरीजों के लिए आवश्यक पैलियेटिव केयर यूनिट ही है. प्रशिक्षित स्टाफ की कमी भी झेल रहे विभाग के पास जनजागरूकता शिविर चलाने के लिए भी जरूरी स्टाफ नहीं है.
डाॅक्टरों के 14 पद, 11 पड़े हैं खाली
विभाग में मात्र एक प्रोफेसर का पद ही भरा हुआ है. एसोसिएट प्रोफेसर का एक पद और असिस्टेंट प्रोफेसर के दो पद हैं. ये तीनों ही पद खाली पड़े हैं. सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर के चारों पद खाली पड़े हैं, जबकि जूनियर रेजिडेंट डॉक्टर के 6 में से 4 पद खाली पड़े हैं.
‘मशीन जब आएगी, लगा दी जाएगी’
राजकीय बेस अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक सुरेश जैन का कहना है कि दवाएं तो हम लोकल परचेस से खरीदते रहते हैं. रेडियोथैरेपी की मशीन के लिए सरकार को लिखा है. जैसे ही मशीन आएगी, लगा दी जाएगी.
खास बात ये है कि अस्पताल का कैंसर विभाग पूर्व में कई ऐसे कैंसर मरीजों को नया जीवन दे चुका है, जिन्हें देश के नामचीन अस्पताल अंतिम स्थिति बताकर लौटा चुके थे. ऐसे में डॉक्टरों, दवाइयों और आवश्यक जांचों का अभाव झेलता कैंसर विभाग खुद रोग की जकड़ में आकर दम तोड़ता नजर आ रहा है.