जम्मू-कश्मीर में एयर गन के रूप में जानी जाने वाली पैलेट गन्स का इस्तेमाल कश्मीर में होता रहेगा. इस तरह सीमा पर स्थित इस राज्य के लोगों विशेषकर प्रदर्शनकारियों के समूहों में इस गन का भय बना रहना तय है. भीड़ को तितर-बितर करने के लिए इस्तेमाल की जानी वाली इस गन के इस्तेमाल पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने इंकार कर दिया है. रोक लगाने के बजाय सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार का वह आश्वासन स्वीकार कर लिया कि इस गन का इस्तेमाल गैर-कानूनी रूप से जमा हुई भीड़ या प्रदर्शन को तितर-बितर करने के अंतिम उपाय के रूप में किया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट में भारत सरकार ने कहा कि ऐसा करने से पहले वह रबर बुलेट आदि के इस्तेमाल पर विचार किया जाएगा. यह मुद्दा राज्य में विशेषकर घाटी में लंबे समय से ज्वलंत मुद्दा बना हुआ है. रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक साल में विभिन्न प्रकार के प्रदर्शनों और मार्च, जिसमें से कुछेक सिविल सोसायटी के कार्यकर्ताओं के थे, पर पैलेट गन की फायरिंग से 100 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और कई घायल हो चुके हैं.
पैलेट गन आग्नेयास्त्र नहीं
भारत के एटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जेएस केहर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस संजय किशन कौल की बेंच को बताया कि पैलेट कोई गोली नहीं है बल्कि एयर गन से फायर की जानी वाली एक नॉन-स्फैरिकल प्रोजेक्टाइल है. साथ ही मानकों के अनुसार यह लोगों को मारने के लिए इस्तेमाल होने वाली गन नहीं है क्योंकि यह 50 एटमॉसफेयर के दबाव पर काम करती है जबकि आग्नेय अस्त्र हजार एटमॉसफेयर पर काम करते हैं. इसी तरह इनकी गति में भी भारी अंतर है. लेकिन असली मुद्दा इसके प्रयोग से लोगों में होने वाला असंतोष और इसके बाद इसके मुकाबले में पाकिस्तान की शह पर किया जाना वाला पथराव है.
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने यह मुद्दा कोर्ट सुप्रीम कोर्ट के सामने पेश करते हुए मांग की थी कि राज्य में पैलेट गन के प्रयोग को बंद किया जाना चाहिए क्योंकि इसके प्रयोग से भारी असंतोष होता है और जिस तरह से इसका प्रयोग शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे लोगों पर किया जा रहा है वह चिंताजनक है.
रोहतगी ने बताया कि पैलेट गन के उपयोग के पीछे किसी को मारने की मंशा नहीं होती है, बल्कि इसका उपयोग सिर्फ बेकाबू भीड़ और प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए होता है जिससे राज्य में इस तरह की सामूहिक बगावत की आशंकाओं से निपटा जा सके. उन्होंने एक विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट की ओर भी ध्यान दिलाया जिसमें पैलेट गन की जगह अन्य उपाय के इस्तेमाल की बात कही गई है.
राज्य में व्यापक असंतोष और आलोचना के बाद पिछले साल जुलाई में यह कमेटी बनाई गई थी. इसके बाद केंद्रीय गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर ने लोकसभा को दिए एक लिखित जवाब में बताया था कि समिति ने अपनी रिपोर्ट सब्मिट कर दी है और इसमें कहा गया है कि दंगाइयों को तितर-बितर करने के लिए पावा-चिली या चिली शैल तथा आंसू और धुआं शैल के इस्तेमाल की अनुशंसा की गई है.
मंत्री ने यह भी कहा कि अगर ये उपाय असरदार साबित नहीं हुए तो पैलेट गन का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. रोहतगी ने कहा कि अब पैलेट गन का इस्तेमाल अंतिम उपाय के रूप में करने की ही सरकार की मंशा है. जबकि जेकेएचबीए की याचिका में कहा गया है कि पैलेट गन का उपयोग का दुरुपयोग हो रहा है, न कि अंतिम उपाय के रूप में. यह याचिका एक साल तक कई मौतों के बाद दाखिल की गई थी और इसको सुप्रीम कोर्ट ने इसको रेगुलर सुनवाई के लिए अनुमति दी है.