सदियों से समय की धार पर चलती हुई नारी अनेक विडम्बनाओं और विसंगतियों के बीच जीती रही हैं। लेकिन इसके बावजूद महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं। अगर हम शिक्षा के विषय में बात करें तो पुरुषों की अपेक्षा, महिलाओं में अशिक्षा का स्तर ज़्यादा है किन्तु अगर शिक्षित नारी की शिक्षित पुरुष से तुलना की जाए तो वह उनसे कहीं आगे है। विज्ञान, व्यापार, अंतरिक्ष, खेल, राजनीति हर क्षेत्र में भारतीय नारी ने नए-नए कीर्तिमान स्थापित कर समाज के हर वर्ग को प्रेरित करती रही हैं।
आज हम एक ऐसी ही प्रेरक महिला व्यक्तित्व से आपको रूबरू करा रहें हैं जिन्होंने कठिन परिश्रम और निरंतर संघर्ष की बदौलत अपनी नर्क बन चुकी जिंदगी को सफलता के ऐसे पायदान पर बिठाया कि आज औरों के लिए प्रेरणास्रोत बन गई हैं। आज हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले के कोतमा में जन्मीं और पली-बढ़ी अनीता प्रभा नाम की एक पुलिस अधिकारी के बारे में। एक मध्यम-वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाली अनीता ने 25 साल की उम्र में वो कर दिखाया, जो ज्यादातर छात्रों का सपना होता है। बचपन से ही पढ़ाई में होनहार अनीता ने 10वीं में 92 फीसदी अंक हासिल करते हुए जिंदगी में कुछ बड़ा करने के अपने सपने को पहली उड़ान दी। लेकिन घर में जल्दी शादी होने की परम्परा ने उनके सपनों पर पानी फेर दिया।
अनीता हार नहीं मानी और अपनी जिद पर माता-पिता को झुकने को मजबूर कर दिया। आगे की पढ़ाई के लिए वह ग्वालियर में अपने भाई के घर रहने लगी और वहीं से 12वीं की परीक्षा पास की। 12वीं पास करते ही एक बार फिर माता-पिता का दबाव शुरू हो गया। लेकिन इस बार तमाम जिद के बावजूद अनीता को अपने से 10 वर्ष ज्यादा उम्र के इंसान से शादी करनी पड़ी।
शादी तो हो गई लेकिन अनीता का लक्ष्य अब भी कायम था। ससुराल में तमाम नई जिम्मेदारियों को बखूबी निभाते हुए उन्होंने अपनी पढ़ाई को भी जारी रखा। लेकिन एक बार फिर अनीता को भाग्य का साथ नहीं मिला और ग्रेजुएशन के फाइनल ईयर में पति के एक्सीडेंट के कारण वह एग्जाम नहीं दे सकीं। लेकिन अगले साल फिर से परीक्षा देते हुए प्रथम श्रेणी से उतीर्ण हुईं। अनीता को उस वक़्त धक्का लगा जब तीन साल में ग्रेजुएशन पूरी ना करने के कारण उन्हें प्रोबेशनरी बैंक ऑफिसर पोस्ट के लिए रिजेक्ट कर दिया गया।
हर नई कठिनाईयों को जीवन की एक परीक्षा मानते हुए अनीता ने अपने हौसले को कभी कम होने नहीं दिया। पति के एक्सीडेंट की वजह से घर की आर्थिक हालात भी चरमरा गई और ऐसी स्थिति में सारा दारोमदार अनीता के कंधे ही आ गया। अनीता ने क्विक ब्यूटीशियन का कोर्स कर पार्लर में काम करने लगीं।
बिना स्थायी नौकरी, बिना खुशहाल जीवन और बिना परिवार वालों के सहयोग के अनिता स्वतंत्र और आत्मनिर्भर जीवन के लिए हमेशा सरकारी नौकरी पाने की अपनी लालसा को बरकरार रखीं और साल 2013 में विवादों से घिरे व्यापमं की फॉरेस्ट गार्ड की परीक्षा दी। चार घंटे में 14 किलोमीटर पैदल चलकर अनीता इस परीक्षा में बैठीं और जब परीक्षा का रिजल्ट आया तो उनके संघर्ष को कामयाबी मिली। दिसंबर 2013 में उन्हें बालाघाट जिले में पोस्टिंग मिल गई।
अनीता का लक्ष्य इतना ऊँचा था कि वह एक बार फिर व्यापमं की सब-इंस्पेक्टर पोस्ट की परीक्षा में शामिल होने का निश्चय की। हालांकि वे फॉरेस्ट गार्ड की नौकरी करती रहीं, लेकिन इस परीक्षा के फिजिकल टेस्ट में वे फेल हो गईं। हार नहीं मानने वाली अनीता दूसरी बार फिर से परीक्षा में बैठी और कठिन फिजिकल टेस्ट पास कर सब-इंस्पेक्टर के लिए चुन ली
गईं, जबकि दो महीने पहले ही उन्हें ओवरी में ट्यूमर के कारण सर्जरी करवानी पड़ी थी। फिर उन्होंने बतौर सूबेदार जिला रिजर्व पुलिस लाइन में जॉइन किया। इसी दौरान पति के साथ डिवोर्स का केस भी कोर्ट पहुंच गया।
अनगिनत संघषों का सामना करते हुए आगे बढ़ने वाली अनीता को अब सिर्फ और सिर्फ अपना लक्ष्य ही दिखाई दे रहा था। पुलिस ट्रेनिंग के दौरान ही मध्यप्रदेश स्टेट पब्लिक सर्विस कमीशन परीक्षा के रिजल्ट आए, जिसमें वे पहले शामिल हुई थीं, यहाँ डीएसपी रैंक के लिए उनका चयन हो गया। पहले ही प्रयास में महिलाओं की सूची में वह 17वें स्थान पर आईं और सभी
कैटेगरी में वे 47वें नंबर पर रहीं। हालांकि, अनीता डीएसपी पोस्ट से भी संतुष्ट नहीं थीं और ऊंची पोस्ट डिप्टी कलेक्टर के लिए एमपीपीएससी एग्जाम की तैयारी में एक बार फ़िर से जुट गई। अप्रैल 2016 में उन्होंने यह परीक्षा पास कर ली और इसका इंटरव्यू हाल ही मार्च 2017 में हुआ है। वे रिजल्ट का इंतजार कर रही हैं।
सफलता की झड़ी लगाने वाली अनीता की उम्र अभी महज़ 25 वर्ष है। अनीता की जिंदगी में ना उसे अपने माता-पिता का साथ मिला, ना ही पति का और भाग्य भी ना जानें कौन-कौन से दिन दिखाए। हर परिस्थिति में यह लड़की अकेले डटकर मुकाबला की और अपने लक्ष्य का पीछा कभी नहीं छोड़ा। महिला सशक्तिकरण की एक नई परिभाषा गढ़ने वाली अनीता के जज़्बे को सच में सलाम करने की जरूरत है।