समय रहते अगर सूझबूझ से अध्यापक और स्थानीय लोगों के साथ पुलिस राहत और बचाव कार्य न चलाती तो हादसा कितना बड़ा हो सकता है इस बात से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि 300 से ज्यादा बच्चे उस वक्त घटनास्थल पर मौजूद थे जबकि 30 से ज्यादा अध्यापक भी बच्चों के साथ स्कूल में ही खाने का इंतजार कर रहे थे।

मामले की गंभीरता को देखते हुए सरकार ने आपदा सचिव को मौके के लिए रवाना कर दिया। शैलेष बगोली ने मौके पर राहत और बचाव कार्य का जायजा लिया।
बारिश से तबाही का सिलसिला देहरादून के बाहर भी नहीं रुका। उत्तरकाशी के धरासू बैंड में भी एक 5 साल का मासूम शंकर पानी की तेज लहरों में बह गया। बताया जाता है कि शंकर स्कूल से अपने घर जा रहा था कि तभी पैर फिसलने से उफनती अलकनंदा में वह जा गिरा। मौके पर पहुंची रेस्क्यू टीम ने तलाश किया लेकिन शंकर कहीं नहीं मिला। शंकर की तलाश कर रही रेस्क्यू टीम को नदी में ही एक दूसरी लाश जरूर मिल गई।

बच्चों के साथ पहाड़ों में यह पहली घटना नहीं है। इससे पहले भी स्कूल जाने वाले बच्चों के साथ इस तरह के हादसे होते रहे हैं। फिलहाल एसडीआरएफ और गोताखोर शंकर की तलाश में लगे हुए हैं।
हैरानी की बात यह है कि प्रदेश में हर मानसून में हालात ऐसे बनते हैं कि इन मासूमों की जान पर बन आती है और राज्य के शिक्षा मंत्री अजीबोगरीब बयान दे रहे हैं। जब हमने शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे से सवाल किया कि मानसून के दौरान स्कूल जाने वाले कई बच्चे नदियों बल्लियों और ट्रॉलियों के सहारे शिक्षा ग्रहण करने जाते हैं और उनके साथ हादसे हो जाते हैं ऐसे में शिक्षा महकमा क्या कर रहा है। इस पर मंत्री अरविंद पांडे ने कह दिया कि वह कोई शक्तिमान नहीं है कि हर जगह मौजूद रहेंगे। हर व्यवस्था को बनने में समय लगता है और अभी उनको पदभार संभाले हुए 3 महीने का ही वक्त हुआ है।
हालांकि, उन्होंने बच्चों के अभिभावकों से ये ज़रूर कहा कि ऐसे मौके पर बच्चों के स्कूल न भेजें क्योंकि जिंदगी के बढ़कर कुछ भी नहीं। जो भी हो लेकिन हर मानसून में बारिश प्रदेश में भारी नुकसान पहुंचाती है लेकिन हमारी सरकारों की तैयारियां बारिश से लड़ने की आज भी कम है।