रिहायशी इलाकों में लगे मोबाइल फोन टावर को लेकर अक्सर सवाल उठते रहते हैं. इससे निकलने वाले खतरनाक रेडिएशन से लोगों के स्वास्थ पर बहुत बुरा असर पड़ता है ये बात कई रिसर्च में सामने आ चुकी है. मोबाइल फोन टावर को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला दिया है जिसके बाद उम्मीद की जा सकती है मोबाइल फोन टावर किसी जगह पर लगाने से पहले दूरसंचार कंपनिया हज़ार बार सोचें.
दरअसल सुप्रीम कोर्ट में हरीश नाम के एक व्यक्ति ने याचिका दाखिल कर ये अपील की थी कि जिस मोबाइल फोन टावर के इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन से उन्हें कैंसर हुआ है उसे वहां से हटा दिया जाए. एक अंग्रेजी अखबार की ख़बर के अनुसार उसने कोर्ट को इस बात पर राजी कर लिया कि इसी मोबाइल फोन के टावर के कारण उसे कैंसर हुआ है
क्या है पूरा मामला
हरीश चंद तिवारी ग्वालियर के दल बाजार इलाके में प्रकाश शर्मा नाम के व्यक्ति के घर पर काम करते हैं. हरीश का आरोप है कि साल 2002 से पड़ोसी के छत पर अवैध रूप से लगाया गया बीएसएनएल का मोबाइल फोन टावर उन्हें 14 साल से हानिकारक रेडिएशन का शिकार बना रहा है, जिस कारण उन्हें कैंसर हुआ है. हरीश ने पिछले साल इसे हटाने को लेकर शिकायत की थी.
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश
हरीश ने कोर्ट को बताया कि वो जिस घर में काम करता है उससे ये टावर मात्र 50 मीटर की दूरी पर है. हरीश की अपील पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने बीएसएनएल के इस टावर को सात दिन के अंदर बंद करने के आदेश दिेए हैं.
भारत में ऐसा पहली बार होगा जब कोर्ट के आदेश के बाद ऐसे मामले में कोई मोबाइल टावर हटा दिया जाएगा. दूरसंचार मंत्रालय ने पिछले साल अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल कर बताया था कि इस समय देश में 12 लाख से अधिक मोबाइल फोन टावर हैं. जिनमें से मात्र 212 टावरों में रेडिएशन तय सीमा से अधिक पाया गया. जिसके बाद कोर्ट ने सभी टावरों पर 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था.