(सुनील सरीन, NTI न्यूज़ ब्यूरो, नई दिल्ली ) घड़ी की सुईं की तरह दौड़ता यह शरीर भी कभी-कभी एक सुईं जैसा ही हो जाता है। सुईं ‘1’ से ‘2’ की ओर बढ़ती है, ‘2’से ‘3’ की ओर और हम बिस्तर से उठकर वाशरूम की ओर बढ़ते हैं और फिर वाशरूम से दफ्तर की ओर। दिन खत्म होते-होते घड़ी की ये ...
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