त्रिवेंद्र से इस तरह के कदम जल्द उठाये जाने की उम्मीद सभी कर रहे थे। कहा जाने लगा था कि रफ्तार के मामले में वह योगी से कहीं पीछे हैं। उन्होंने सबको न सिर्फ चुप कर दिया बल्कि काफी हद तक गलत भी साबित कर दिया कि वह दब्बू या सुस्त मुख्यमंत्री हैं। सच्चाई तो यह है कि उत्तराखंड के इतिहास में एक साथ इतने ज्यादा अफसर कभी निलंबित नहीं हुए, जितने उन्होंने किए। जिन अफसरों पर कार्रवाई की गई उनमें बहुचर्चित अफसर दिनेश प्रताप सिंह, अनिल कुमार शुक्ल, सुरेन्द्र सिंह जंगपांगी, जगदीश लाल, भगत सिंह फोनिया और एनएस नगन्याल शामिल हैं। आरोपितों में शामिल हिमालय सिंह मर्तोलिया रिटायर हो चुके हैं। भूमि अध्याप्ति अधिकारी के तौर पर अफसरों ने कृषि भूमि को अकृषि दिखा कर मोटा चूना सरकारी खजाने को लगाया, ऐसा पांडियन रिपोर्ट में कहा गया है। इतना ही नहीं जांच में यह भी तथ्य उभर कर सामने आया कि कई मामले बैक डेट्स पर हुईं।
कई ऐसे प्लाट भी थे, जिनको अकृषि दिखाया गया, लेकिन सटेे लाइटमेपिंग में उनमें कृषि होती साबित हुई। अकृषि भूमि पर खेती होती है तो उसका मुआवजा कृषि भूमि के तौर पर ही मिलने का प्रावधान है। अफसरों ने इसकी क्यों अनदेखी की, इस पर हैरत जताई जा रही है और भ्रष्टाचार की गंध को सूंघा जा रहा है। त्रिवेंद्र ने शक जताया कि इस मामले में उप जिलाधिकारी दफ्तर, तहसील, चकबंदी, सब रजिस्ट्रार, राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के लोग भी संलिप्त हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि सरकार के पास मुआवजा बंटवारे में हुए घपले के दस्तावेजी सबूत हैं।
उन्होंने मामले की जांच सीबीआई को सौंप भी दी। इसमें शक नहीं कि घोटाला कांग्रेस राज का होने और इसके बहुत बड़ा होने के साथ ही केंद्र में भी बीजेपी सरकार होने के चलते सीबीआई इस मामले की जांच की राज्य सरकार की सिफारिश स्वीकार कर लेगी। माना जा रहा है कि एनएच-74 घोटाला प्रदेश का अब तक का सबसे बड़ा घोटाला साबित हो सकता है। खासतौर पर यह देखते हुए कि इसमें अकृषि भूमि के स्वामियों को 20 गुना ज्यादा कीमत दी गई। इतना ही नहीं कांग्रेस के कुछ लोगों ने अलग बैंक अकाउंट खोल कर उसमें जो चंदा लिया, उसको देने वाले भी वही हैं, जिनकी जमीनों को लेने की एवज में सोने के भाव गलत ढंग से पैसा दिया गया। सीबीआई जांच में दूध का दूध और पानी का पानी हो सकता है। तब कई बड़े चेहरे बेनकाब हो जाए तो अचम्भा नहीं होगा।
हैरानी की बात यह है कि यह घोटाला सामने आने के बाद कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत यह मांग कर रहे हैं कि राज्य गठन के बाद से जो भी घोटाले हुए हैं, उन सभी की जांच की जानी चाहिए। कांग्रेस खुद पांच साल सरकार रही और खुद हरीश मुख्यमंत्री रहे। सवाल उठता है कि उन्होंने तब खुद क्यों नहीं जांच की? उनको किसने जांच बिठाने से रोका था? एनएच-74 घोटाले के बारे में भी उनको बिलकुल भनक नहीं लगी, इसका ताज्जुब है। त्रिवेंद्र के लिए बढिय़ा यह रहा कि जब तक वह मुख्यमंत्री बने, पांडियन रिपोर्ट आ गई। इसके बाद उनके लिए आगे कदम उठाना बस जिगर की बात रह गयी थी।
पांडियन ने हालांकि शासन स्तर पर जांच कराने की सिफारिश की थी, लेकिन त्रिवेंद्र इससे कहीं आगे बढ़े और सीबीआई जांच करा दी। त्रिवेंद्र मीडिया और आम लोगों में अपनी प्रतिष्ठा और छवि आक्रामक और कड़े तेवर वाला साबित करने में जुटे हुए दिख रहे हैं। यही वजह है कि उनकी सख्ती के बाद रामनगर में अवैध खनन रोकने के दौरान वनकर्मी की कुचल कर हत्या के मामले में गिरफ्तारी हो गई और संबंधित ईएफओ को मुख्यालय से सम्बद्ध कर दिया गया। अवैध खनन के कारण सरकार को अरबों रुपयों का नुक्सान उठाना पड़ रहा है। त्रिवेंद्र ने इसे रोकने के लिए सख्त कदम उठाने के निर्देश अफसरों को दिए हैं। धीरे-धीरे ही सही लेकिन त्रिवेंद्र रंगत में आने लगे हैं। वह और पार्टी के बड़े लोग जानते हैं कि उनका उठाया हर एक कदम सरकार और बीजेपी की छवि को निखारेगा या फिर खराब करेगा। यही वजह है कि वह जल्दबाजी या हड़बड़ी में कोई फैसला करने से बच रहे हैं।
उनकी तारीफ की जानी चाहिए कि कुछ मामलों में वे खासी परिपक्वता दिखा रहे हैं। मसलन, नौकरशाही में तबादले उन्होंने आनन-फानन करने के बजाए उनके रिकाड्र्स का अध्ययन किया जा रहा है।सबसे चौंकाने वाला फैसला रहा सचिव दीपक कुमार को केंद्र सरकार के लिए कार्यमुक्त कर दिया जाना। सूचना प्रौद्योगिकी सचिव दीपक पर हाल ही में लैपटॉप की खरीद में निश्चित प्रक्रियाओं का अनुपालन न करने का आरोप लगा था। वह भारतीय टेलिकॉम सेवा के अफसर हैं और प्रतिनियुक्ति पर उत्तराखंड में
तीन साल से थे।