लखनऊ. गर्मी बढ़ने के साथ ही प्रदेश में बिजली की डिमांड बढ़ती जा रही है। उत्तर प्रदेश में भारी बहुमत से जीतकर आई योगी सरकार ने 2018 तक यूपी की जनता को 24 घंटे बिजली देने का वादा किया है। इसके लिए केंद्र और राज्य सरकार के बीच यूपी में 24 घंटे बिजली
आपूर्ति को लेकर ‘पावर फॉर ऑल’ एमओयू साइन हुआ। यूपी सरकार ने कहा, अब से हर जिला मुख्यालय पर 24 घंटे, तहसील स्तर पर 20 घंटे और गांव में 18 घंटे बिजली दी जाएगी। उन्होंने कहा कि नवंबर 2018 तक पूरे प्रदेश में 24 घंटे बिजली उपलब्ध कराई जाएगी। लेकिन एक अहम सवाल मुंह बाए खड़ा है कि क्या प्रदेश सरकार सच में यूपी की जनता को 24 घंटे बिजली दे पाएगी या फिर ये सिर्फ जुमलेबाजी ही साबित होगा।
केन्द्रीय ऊर्जा मंत्रालय के आंकड़ों की मानें तो उत्तर प्रदेश में 2011-12 के दौरान बिजली की मांग और आपूर्ति के बीच का अंतर 11.3 प्रतिशत था, जो 2015-16 में 12.5 प्रतिशत हो गया है। राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा के मुताबिक, 2011-12 में बिजली की कुल मांग 81,339 मिलियन यूनिट और आपूर्ति 72,116 मिलियन यूनिट थी। 2015-16 में कुल मांग 1,06,370 मिलियन यूनिट थी, जबकि सप्लाई 93,052 मिलियन यूनिट थी।
इसलिए नहीं बढ़ रहा बिजली का उत्पादन
प्रदेश में बिजली की आपूर्ति का अंतर कम होने के बजाय बढ़ने की सबसे बड़ी वजह पावर प्लांटों की संख्या न बढ़ना है। नए प्लांट लगाने के लिए 2009-10 के दौरान 9 एमओयू साइन किए गए। इसमें से एक को छोड़कर कोई भी जमीन पर नहीं उतर पाया। इतना ही नहीं जो नए प्लांट शुरू किए जाने थे, उनसे आपूर्ति होने में भी देरी हुई। 2016 में यूपी को ललितपुर पावर प्लांट और बारा पावर प्लांट से से बिजली मिलनी शुरू हुई है।
इंटरनेट पर मौजूद आंकड़ों की मानें तो उत्तर प्रदेश में लगभग 22 हजार मेगावाट क्षमता के पावर प्लांट मेंटिनेंस और कोयले की कमी की वजह से बंद पड़े हैं। इतना ही नहीं, ट्रांसमिनशन लाइनों की हालत ठीक नह होने के कारण केंद्र से भी उत्तर प्रदेश को बिजली नहीं मिल पा
रही है। उत्तर प्रदेश एनर्जी रेगुलेटरी कमीशन के सूत्रों के अनुसार प्रदेश के ऊर्जा उत्पादन संयंत्र अपनी क्षमता से लगभग 40 प्रतिशत कम बिजली पैदा करते हैं। इसके अलावा लगभग सभी संयंत्रों की एक-दो इकाइयां तकनीकी कारणों से या कोयले अथवा गैस न मिल पाने के चलते हफ्तों बंद रहती हैं।
यूपी को चाहिए ज्यादा बिजली
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण ने 2013 की रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश को बिजली का सबसे भूखा प्रदेश क़रार दिया गया था। उस रिपोर्ट के मुताबिक अगस्त 2013 में उत्तर प्रदेश को कुल 82450 लाख यूनिट बिजली की आवश्यकता थी और उत्तर प्रदेश पॉवर कारपोरेशन लिमिटेड केवल
72790 लाख यूनिट बिजली सप्लाई कर पाया, यानी 9660 लाख यूनिट बिजली की कमी रही।
सूबे पर बिजली का अतिरिक्त बोझ
इंटरनेट पर मौजूद आंकड़ों के मुताबिक, यूपी में बिजली के कुल एक करोड़ 45 लाख उपभोक्ता हैं, जिन पर कुल बिजली का भार 3 करोड़ 90 लाख किलोवाट है, जबकि प्रदेश के सभी सब स्टेशनों की कुल क्षमता करीब 2 करोड़, 50 लाख किलोवॉट बैठती है और बिजली वितरण कंपनियां कर्ज के बोझ तले दबी हैं। इतना ही नहीं सूबे के बिजली ढांचे में एक करोड़ 40 लाख किलोवॉट का अतिरिक्त बोझ है। इसके अलावा प्रदेश में सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा के स्रोतों का भी अपेक्षाकृत विकास नहीं हुआ है। फरवरी 2017 के आंकड़ों के अनुसार देश में वैकल्पिक ऊर्जा में 26.54 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
कर्ज में डूबी हैं बिजली वितरण कंपनियां
मार्च 2015 के अंत तक सरकारी बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम्स) का बकाया कर्ज 4.3 लाख करोड़ रुपए था। इसके अलावा 3.8 लाख करोड़ का घाटा भी शामिल था। पिछले वित्तीय वर्ष में ही 60 हजार करोड़ का घाटा उनके खाते में जुड़ा था। इस पर चौंकाने वाला तथ्य यह
है कि कुल बिजली का 32 फ़ीसद हिस्सा चोरी और बिलिंग की खामियों की वजह से बर्बाद हो जाता है।