उत्तराखंड में शांति और सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिम्मेदार राज्य की पुलिस को एक अदद ठिकाना मयस्सर नहीं है. राज्य के कुल 389 थाने और चौकियों में से आज भी 21 चौकियों और 85 थानों के पास भवन ही नहीं हैं . पुलिस के कई थाने और चौकियां किराए के भवन या फिर ग्राम समाज की भूमि पर संचालित हो रही हैं. न रहने का ठौर और न खाने की उचित व्यवस्था. ऐसे में 24 घंटे की ड्यूटी पुलिस कर्मियों के लिए यातना से कम नहीं.
हिमाचल प्रदेश की सीमा से लगी उत्तराखंड के उत्तर काशी जिले की सीमांत पुलिस चौकी कुल्हाल का उदाहरण लें. कुल्हाल में पुलिस कर्मी विषम परिस्थितियों में रात दिन सेवाएं दे रहे हैं.
यहां सालों पूर्व हिमांचल और उत्तराखंड की सीमा पर पुल बनाने में लगे मजदूरों के लिए ठेकेदार ने जो कमरे बनाए थे, पुलिसकर्मी आज भी उसी जर्जर दड़बेनुमा कमरों में रहने को विवश हैं. हाईवे से लगी छोटी सी चौकी चौबीसों घंटे हाईवे से गुजरने वाले वाहनों के धुएं और धूल से भरी रहती है.
13 थाने-चौकियां जर्जर हालत वाले भवनों में संचालित हो रहे हैं. सबसे अधिक हरिद्ववार में चार थाने और 26 चौकियों के पास अपने भवन नहीं हैं या फिर जर्जर हैं. यही हाल पुलिस के पास अत्याधुनिक हथियारों , संसाधनों का भी है . बजट के अभाव में नए थाने, चौकियों का प्रस्ताव भी धूल फांक रहा है. राज्य के पुलिस महानिदेशक खुद कई मौकों पर पुलिस के आधुनिकीकरण की जरूरत पर बल दे चुके हैं. यही कारण है कि पुलिस ने इस वित्तीय वर्ष के बजट में 21 अरब रुपए की मांग की है .