देहरादून : सत्ता का नशा अच्छे-अच्छों को बदल कर रख देता है। प्रचंड बहुमत के साथ सत्तासीन होने वाली भाजपा पर यह कहावत लागू होने लगी है। विपक्ष में रहते हुए भाजपा को जो अधिकारी भ्रष्ट बेईमान और नाकाबिल लगते थे, सत्ता में आते ही उसे वे अधिकारी दूध
के धुले, ईमानदार और सुयोग्य नजर आने लगे हैं।
उत्तराखंड पावर कारपोरेशन लिमिटेड (यूपीसीएल) के प्रबन्ध निदेशक के पद पर बीसीके मिश्रा की नियुक्ति इसका ताजा उदाहरण है। भाजपा सरकार ने कुछ दिन पहले ही उन्हें यूपीसीएल का प्रबन्ध निदेशक नियुक्त किया है। हैरानी की बात यह है कि ये वही बीसीके मिश्रा हैं, जो कांग्रेस पार्टी की सरकार के दौर में भाजपा नेताओं को फूटी आंख नहीं सुहाते थे। लेकिन अब यही मिश्रा भाजपा की आखों का तार बन गए हैं। विवादित छवि के मिश्रा पर भष्टाचार के गंभीर आरोप हैं। भाजपा खुद कई बार उनकी जांच किए जाने की मांग कर चुकी है। मगर अब भाजपा ने उन्हें कुर्सी पर बैठा कर साफ कर दिया है कि भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस का उसका दावा खालिस झूठा है।
वीसीके मिश्रा और विवाद
विवादों और मिश्रा का आपस में बहुत पुराना रिश्ता रहा है। यूजेवीएन में ईडी के पद पर 10 वर्ष पूर्व हुई नियुक्ति से लेकर मनेरी भाली परियोजना में रेत-बजरी खरीद में करोड़ों की अनियमतिता, 56 बिजली परियोजनाओं के आवंटन में भ्रष्टाचार समेत कई मामलों के विवाद
मिश्रा से जुड़े हुए हैं। 56 बिजली परियोजना के आवंटन घोटाले में उनकी संदिग्ध भूमिका को देखते हुए पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने उन्हें साल 2013 में बर्खास्त किया था। बहुगुणा के पद से हटने के बाद सीएम बने हरीश रावत ने आते ही मिश्रा पर कृपा बरसाई और उन्हें बहाल कर दिया। इसके बाद इस साल की शुरुआत में हरीश रावत उनका कद बढा कर उन्हें यूपीसीएल का एमडी बनाने की पूरी तैयारी कर चुके थे, लेकिन तब भाजपा के विरोध और मिश्रा की विवादित छवि को देखते हुए उन्होंने अनुमोदन की फाइल वापस लेकर हाथ पीछे खींच लिए। लेकिन त्रिवेंद्र रावत सरकार ने आते ही बीसीके मिश्रा को प्रबंध निदेशक बनाकर कसर पूरी कर दी है।
यूपीसीएल बना भ्रष्टाचार का अड्डा
उत्तराखंड पावर कारपोरेशन लिमिटेड (यूपीसीएल) अपने गठन के वक्त से ही भ्रष्टाचार का अड्डा बना हुआ है। पिछले 16 वर्षों में अंतरिम सरकार सहित 5 सरकारें आ चुकी हैं, लेकिन ऊर्जा निगमों में हो रहे भ्रष्टाचार पुर कोई भी सरकार अंकुश नहीं लगा सकी। हाल ही में
यूपीसीएल में रिक्त चल रहे प्रबंध निदेशक के पद पर त्रिवेंद्र सरकार ने आते ही बीसीके मिश्रा की ताजपोशी कर दी। इसके पीछे सरकार की मंशा क्या है यह तो मालूम नहीं है, लेकन एक ऐसे व्यक्ति को एमडी बना दिया गया है, जिसके साथ भ्रष्टाचार के आरोप साथ-साथ चलते हैं।
यूपीसीएल को काबिल और ईमानदार एमडी की नितांत आवश्यकता थी। प्रबंध निदेशक के लिए पिछले लगभग एक वर्ष से शासन में कसरत चल भी रही थी। यूपीसीएल में निवर्तमान एमडी एसएस यादव का कार्यकाल जनवरी 2016 में पूरा हो गया था। लेकिन सरकार के चहेते यादव को एक नही तीन-तीन बार एक्सटेंशन दिया गया।
29 नवंबर को नाटकीय ढंग से यादव ने इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद शासन ने एमडी के पद के लिए फिर तीसरी बार विज्ञप्ति प्रकाशित की। तब विज्ञप्ति में कई बदलाव किए गए, ताकि चहेते अफसर की ताजपोशी हो सके। 26 दिसंबर को लिए गए साक्षात्कार में 10
अभ्यर्थियों ने आवेदन किया था, लेकिन 31 दिसंबर को मुख्यमंत्री हरीश रावत ने यूजेवीएनएल के निदेशक (आपरेशन) बीसीके मिश्रा को यूपीसीएल की कमान सौंपने की मंजूरी दी थी, लेकिन तब विपक्षी दल भाजपा ने इसका विरोध किया। विरोध को देखते हुए तब तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने मिश्रा की नियुक्ति रोक दी थी।