देहरादून: प्रदेश में नई आबकारी नीति को लेकर अभी तक असमंजस बरकरार है। गुरुवार को हुई कैबिनेट बैठक में पहले आबकारी नीति के मसले को उठाए जाने की पूरी तैयारी थी लेकिन एक वक्त पर इस बिंदु को एजेंडे से बाहर कर दिया गया। सूत्रों की मानें तो प्रदेश में शराब की दुकानों को लेकर लगातार उग्र हो रहे विरोध के कारण सरकार ने यह कदम उठाया।
आबकारी प्रदेश के राजस्व का सबसे अहम जरिया है। बीते वर्ष सरकार को आबकारी से तकरीबन दो हजार करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ था। प्रतिवर्ष आबकारी के राजस्व में लगभग दस फीसद का इजाफा किया जाता है। इस वर्ष आबकारी से तकरीबन 2350 करोड़ रुपये के राजस्व का अनुमान लगाया गया है।
यह सारी व्यवस्थाएं प्रतिवर्ष आबकारी नीति में संशोधन कर की जाती हैं। अमूमन प्रतिवर्ष मार्च अथवा अप्रैल मध्य तक संशोधित आबकारी नीति जारी की जाती है। इस बार चुनावों के चलते इसमें कुछ समय लगा। दरअसल, नई सरकार के सामने पहली चुनौती सुप्रीम कोर्ट की ओर से राष्ट्रीय व राज्य राजमार्गों के 500 मीटर के दायरे से शराब की दुकानों को हटाने के आदेश से हुई। इन दुकानों को अन्यत्र शिफ्ट करने का काम तो शुरू हुआ लेकिन आबादी वाले क्षेत्रों में दुकानें आने के कारण इसका तीव्र विरोध हो गया।
विपक्ष भी इस मसले पर लगातार सरकार को घेरे हुए है। ऐसे में सरकार इस मसले पर संभल-संभल कर कदम आगे बढ़ा रही है। इसके लिए सरकार ने पड़ोसी राज्यों की नीतियों का भी अध्ययन किया। सरकार नीति में कुछ संशोधन करने के लिए इसे कैबिनेट में लाने की तैयारी कर रही थी, लेकिन ऐन वक्त पर अचानक ही कदम पीछे खींच लिए। सूत्रों की मानें तो सरकार अभी किसी नए विवाद को जन्म नहीं देना चाहती। सरकार की मंशा अभी संचालित हो रही दुकानों को व्यवस्थित करने की है। इसके बाद ही आगे कोई कदम उठाया जाएगा।